नई दिल्ली : कांग्रेस की अगुआई वाली मनमोहन सिंह सरकार के दौर में हजारों फोन कॉल्स और ई-मेल्स इंटरसेप्ट किए गए थे। तब गृह मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में माना था कि केंद्र सरकार फोन कॉल्स इंटरसेप्शन के लिए हर महीने औसतन 7500 से नौ हजार आदेश जारी करती है। राहुल और पूर्व प्रधान मंत्री कांग्रेस पार्टी को अब बताना चाहिए कि वो ऐसे काम गुपचुप तरीके से क्यों करती थी और अब उन्हें सरकार के आदेश पर ऐतराज़ करने का क्या नैतिक अधिकार है? 6 अगस्त 2013 को प्रसेनजीत मंडल की आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया था कि केंद्र सरकार की तरफ से हर महीने औसतन 7500-9000 फोन कॉल्स इंटरसेप्शन के आदेश जारी किए जाते हैं। इसके अलावा हर महीने औसतन 300 से 500 ईमेल्स के इंटरसेप्शन के आदेश जारी किए जाते हैं। इसी तरह, दिसंबर 2013 के एक आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया था कि टेलिग्राफ ऐक्ट के तहत तमाम एजेंसियों को फोन कॉल्स और ईमेल इंटरसेप्शन के अधिकार मिले हुए हैं। अमृतानंद देवतीर्थ की आरटीआई के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बताया कि इंडियन टेलिग्राफ ऐक्ट के सेक्शन 5 (2) के प्रावधानों तहत लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसियां कॉल्स/इमेल्स इंटरसेप्शन के लिए अधिकृत हैं। गृह मंत्रालय ने बताया था कि 10 एजेंसियों को इंटरसेप्शन का अधिकार मिला हुआ है। आरटीआई के जवाब में इंटरसेप्शन के लिए जिन एजेंसियों का नाम लिखा है, उनमें आईबी, नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, ईडी, सीबीडीटी, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, सीबीआई, एनआईए, रिसर्च ऐंड ऐनालिसिस विंग, डायरेक्टोरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली पुलिस कमिश्नर का नाम शामिल है।
दरअसल 20 दिसंबर 2018 को गृह मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें 10 एजेंसियों को यह अधिकार देने की बात कही गई है कि वे इंटरसेप्शन, मॉनिटरिंग और डिक्रिप्शन के मकसद से किसी भी कंप्यूटर के डेटा को खंगाल सकती हैं। कांग्रेस समेत विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए उस पर जासूसी का आरोप लगा रहा है, वहीं सरकार का तर्क है पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार ने ही एजेंसियों को संचार उपकरणों की निगरानी के लिए अधिकृत किया था और ताजा आदेश में नया कुछ नहीं है। खास बात यह है कि 20 दिसंबर के आदेश में जिन 10 एजेंसियों को निगरानी के लिए अधिकृत किया गया है, 2013 की आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय ने भी उन्हीं 10 एजेंसियों का जिक्र किया है।