नई दिल्ली। लड़ाकू विमानों (fighter planes) की भांति परिवहन विमानों एवं हेलीकॉप्टरों (Transport planes and helicopters) के मामले में भी वायुसेना (Air Force) विदेशों पर निर्भरता (dependency on foreign) न्यूनतम करने प्रयास कर रही है। इसके तहत अगले दस साल में सेवानिवृत्त होने जा रहे एएन-32 विमानों एवं एमआई-17 हेलीकॉप्टरों की जगह देश में निर्मित या तैयार किए गए विमानों को तरजीह दी जाएगी। कोशिश यह है कि मेक इन इंडिया (Make in India) के जरिए विमानों के मामले में भी देश को आत्मनिर्भर बनाया जाए।
लड़ाकू विमानों की कमी दूर करने के लिए वायुसेना द्वारा 123 तेजस लड़ाकू विमानों की खरीद की गई है। इसी प्रकार सुखोई को भी रूस की तकनीक से देश में तैयार किया जा रहा है। इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए एएन-32 विमानों की जगह सी-295 विमानों का उपयोग किया जाएगा। सरकार ने पिछले साल एयरबस को 56 सी-295 विमानों की आपूर्ति का ठेका दिया है, जिनमें से 40 विमानों का निर्माण देश में ही होना है। सिर्फ 16 विमान एयरबस स्पेन में तैयार करेगा।
सूत्रों की मानें तो तकनीक हस्तांतरण के जरिये और सी-295 विमानों की खरीद देश में की जा सकती है। दरअसल, यूक्रेन से खरीदे गए एएन-32 विमानों का जीवनकाल 2032 में खत्म होने जा रहा है। वायुसेना के पास करीब सवा सौ एएन-32 विमान हैं। इसी प्रकार रूस से आयातित 200 से ज्यादा एमआई हेलीकॉप्टर अभी वायुसेना द्वारा विभिन्न परिवहन कार्यों के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि एमआई के विकल्प के रूप में भारत में निर्मित लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (एलयूएच) से की जाएगी।
सूत्रों का कहना है कि एचसीएल से इन हेलीकॉप्टरों की खरीद को लेकर जल्द ही समझौता हो होगा। फिलहाल 13 एलयूएच हेलीकॉप्टर वायुसेना को मिलने वाले हैं। एलयूएच को तीनों सेनाओं में इस्तेमाल हो रहे चीता एवं चेतक हेलीकॉप्टरों का भी विकल्प के रूप में इस्तेमाल करने की योजना है।