दस्तक-विशेषबिहारराजनीतिराज्य

Bihar : मोक्ष की धरती पर अर्धकुंभ

दुनिया के पहले गणतंत्र की धरती बिहार का धार्मिक इतिहास बहुत ही समृद्ध है। राजा जनक, माता सीता जैसी बहुत सी विभूतियों से बिहार की धरती ऐतिहासिक रही है। यहां तीन बार स्वयं शक्ति ने अवतरण लिया। माता सीता, अहिल्या और समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी का अवतरण हुआ। गौतम बुद्ध को यहीं ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कुंभ भी इसे धार्मिक रूप से और समृद्ध बनाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार मिथिला के राजा विदेह के समय से ही सिमरिया गंगा नदी तट पर कल्पवास मेले की परंपरा चली आ रही है।

पटना से दिलीप कुमार

जब कुंभ लगने की बात आती है तो प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन की ही चर्चा होती है। इससे अलग बिहार की धरती पर भी एक कुंभ लगता है। बेगूसराय जिले के सिमरिया में गंगा के तट पर लगने वाले इस कुंभ की महत्ता किसी से कम नहीं है। राजा जनक से लेकर आदि शंकराचार्य से यह जुड़ा है। यहां हर साल प्रयागराज की एक महीने का कल्पवास भी लगता है। इस बार अद्र्धकुंभ भी है। साथ ही हर वर्ष की तरह इस बार भी एक महीने के कल्पवास की शुरुआत हो चुकी है। पूरे एक महीने में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। हजारों की संख्या में यहां टेंट लगाए गए हैं।

दुनिया के पहले गणतंत्र की धरती बिहार का धार्मिक इतिहास बहुत ही समृद्ध है। राजा जनक, माता सीता जैसी बहुत सी विभूतियों से बिहार की धरती ऐतिहासिक रही है। यहां तीन बार स्वयं शक्ति ने अवतरण लिया। माता सीता, अहिल्या और समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी का अवतरण हुआ। गौतम बुद्ध को यहीं ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कुंभ भी इसे धार्मिक रूप से और समृद्ध बनाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार मिथिला के राजा विदेह के समय से ही सिमरिया गंगा नदी तट पर कल्पवास मेले की परंपरा चली आ रही है। बदलते परिवेश के बावजूद मिथिलावासी अपनी इस परंपरा को नहीं भूले हैं। कार्तिक माह में बालू के ढेर पर पर्णकुटीर बनाकर एक माह तक गंगा के जल का सेवन करते हैं। इस कल्पवास की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां अमीर-गरीब, ऊंच-नीच का भेदभाव मिट जाता है। सभी मनोयोग से केवल मोक्ष और गंगा मैया की आरती में अपने को अर्पित कर देते हैं। कल्पवास में सिर्फ तकरीबन 90 खालसा 5000 से अधिक साधु-संत आते हैं। गंगा स्नान के बाद सूर्य देवता को अघ्र्य देने के साथ ही कुटीर में आकर तुलसी पौधा में जल एवं अगरबत्ती जलाकर पूजा करते हैं। शाम में गंगा आरती व दीप जलाते हैं। बहुत से लोग सीता राम सीता राम कागज पर लिखते दिख जाते हैं। पूरे मेले क्षेत्र में भजन कीर्तन व श्रीमद्भागवत व रामायण कथा का प्रवचन, आरती सुनाई पड़ती है। यहां तुलसी चौरा का विशेष महत्व है। कार्तिक माह में गंगा सेवन करने से सुख शांति व परिवार की समृद्धि आती है। यहां मिथिलांचल के समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी, सुपौल व सीतामढ़ी के अलावा नेपाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु कल्पवास के लिए पहुंचने लगे हैं।

व्यवस्था की बदहाल
इस बार छह वर्ष के अंतराल पर लगने वाले अद्र्धकुंभ भी लग रहा है। कुंभ पुनर्जागरण के प्रेरणा पुरुष करपात्री अग्निहोत्री परमहंस स्वामी चिदात्मन जी महाराज ने पिछले दिनों अद्र्धकुंभ का ध्वजारोहण किया। गंगा तट पर कुंभ ध्वज, इंद्र ध्वज, हनुमंत ध्वज और राष्ट्रीय ध्वज की विधि-विधान से मंत्रोच्चार के बीच स्थापना की गई। अद्र्धकुंभ कार्तिक पूर्णिमा तक चलेगा। इस बीच तीन पर्व (शाही) स्नान और तीन परिक्रमा का विधान है। साधु-संतों के 75 से अधिक शिविर लग चुके हैं। मेला क्षेत्र इस बार 23 एकड़ में फैल गया है। इसे सात सेक्टर में बांटा गया है। सुरक्षा व अन्य व्यवस्था के लिए 41 पुलिस कैंप भी बनााए गए हैं। 10 स्नान घाट हैं। भले ही यहां कुंभ का आयोजन किया जा रहा, लेकिन श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था ठीक नहीं है। पहले शाही स्नान में तो कीचड़ की वजह से केवल खानापूरी हो सकी। वैसे राज्य सरकार इसके लिए काम कर रही है। करोड़ों रुपये खर्च कर यहां हरकी पैड़ी की तरह गंगा घाट बनाए जा रहे हैं। 115 करोड़ की लागत से सिमरिया गंगा धाम को विकसित किया जा रहा है। बीते वर्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसका शिलान्यास किया था। रिवर फ्रंट सहित अन्य काम यहां होना है। यहां 550 मीटर में सीढ़ी का निर्माण किया जाएगा। चेंजिंग रूम, स्नान घाट, शौचालय, धर्मशाला परिसर, सुरक्षा के लिए वाच टावर, मंडप का निर्माण सहित अन्य व्यवस्था की गई है।

राजा जनक ने भी किया था यहां कल्पवास
मिथिलावासियों के कल्पवास का स्थान और मोक्ष धाम सिमरिया ही है। कहा जाता है कि अंतिम अवस्था में राजा जनक (विदेह) ने यहीं कल्पवास किया था। यहीं प्राण त्यागे थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक मास में श्रीराम, लक्ष्मण और विश्वामित्र ने पूरा एक महीना सिमरिया तट पर बिताया था। कहा जाता है कि जनकपुर से माता सीता के साथ अयोध्या जाते समय भगवान श्रीराम ने सिमरिया के गंगा तट पर विश्राम किया था। आदिशंकराचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित करने वाले मिथिला के विद्वान मंडन मिश्र और उनकी विदुषी पत्नी भारती को मोक्ष यहीं मिला। मैथिली कवि कोकिल विद्यापति को भी यहीं कल्पवास और मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने सिमरिया घाट के संबंध में अपनी काव्य रचनाओं में वर्णन किया है। सिमरिया राष्ट्रकवि दिनकर की जन्मस्थली है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग कल्पवास के लिए यहां आते हैं। कई बुजुर्ग यहीं गंगा तट पर प्राण त्याग देते हैं। मान्यता है कि यहां प्राण त्यागने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा नदी के तट पर कल्पवास की सराहना मत्स्य महापुराण में भी की गई है।

समुद्र मंथन के बाद यहां हुआ अमृत वितरण
कुंभ के शुरुआत का इतिहास समुद्र मंथन से जुड़ा है। समुद्र को मथने के लिए देवताओं और दानवों ने जिस वासुकी नाग को रस्सी और जिस मंदार पर्वत को मथनी बनाया था, वह सिमरिया से 200-250 किलोमीटर दूर बिहार के बांका जिले में है। साक्ष्यों और प्रमाणों से सिद्ध हुआ कि मिथिलांचल की भूमि ही ऐतिहासिक समुद्र मंथन की केंद्रीय भूमि रही। सिमरिया ही वह स्थान था, जहां भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर अमृत का वितरण किया था। इस रूप में सिमरिया की आदिकुंभस्थली के रूप में पुनप्र्रतिष्ठा हुई। मिथिला पंचांग, विश्वविद्यालय पंचांग (कामेश्र सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय), वैदेही पंचांग और अन्य पंचांगों में सिमरिया कुंभ का उल्लेख है। सर्वमंगला सिद्धाश्रम काली धाम के संस्थापक स्वामी चिदात्मन जी महाराज ने कुंभ पर गहन शोध किया है। उनके अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की बूंदें 12 स्थानों पर गिरी थीं। पहले इन सभी जगहों पर कुंभ लगता था।

ये स्थान सिमरिया घाट, तमिलनाडु में कुंभकोणम, रामेश्वरम, ओडिशा में जगन्नाथ पुरी, बंगाल में गंगासागर, असम में गुवाहाटी, गुजरात में द्वारका व हरियाणा में कुरुक्षेत्र हैं। धीरे-धीरे इन शहरों में कुंभ मेले के आयोजन की प्रथा बंद हो गई। इन कुंभ स्थलों को जाग्रत करने के लिए वे काम कर रहे हैं। 2011 में सिमरिया के पावन गंगा तट पर पहला अद्र्धकुंभ का आयोजन किया था। फिर 2017 में कार्तिक मास में पूर्ण कुंभ का आयोजन हुआ था। सिमरिया कल्पवास मेले को 2008 में राजकीय मेले का दर्जा मिला। 2011 में अर्धकुंभ में सिमरिया में करीब 90 लाख लोगों ने स्नान किया। 2017 में सिमरिया में महाकुंभ करीब एक करोड़ 30 लाख लोगों ने स्नान किया था।

प्रमुख स्नान की तिथियां
सिमरिया में अद्र्धकुंभ के तहत पहला पर्व (शाही ) स्नान 25 अक्टूबर को हो चुका है। इसमें चार अखाड़ा पंचदशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा, श्री उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, निर्माणी अखाड़ा से आए संत, नागा साधु व श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इसमें केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे भी शामिल हुए। दूसरा नौ नवंबर, तीसरा पर्व स्नान 23 नवंबर और चौथा 27 नवंबर को होगा। इसके साथ ही 31 अक्टूबर, आठ नवंबर और 16 नवंबर को कुंभ पर्व के बीच परिक्रमा होगी।

Related Articles

Back to top button