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बसपा फिर सोशल इंजीनियरिंग की राह पर

संजय सक्सेना

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती एक बार फिर सियासी प्रयोग कर रही हैं। यह प्रयोग कोई नया नहीं है,लेकिन इस प्रयोग की ‘चमक-धमक’ बसपा 2007 में पूर्ण बहुमत से प्रदेश की सत्ता में आकर दिखा चुकी है। उस समय पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग की काफी चर्चा हुई थी। तब दलित, मुस्लिम और ओबीसी के साथ उसने ब्राह्मणों को तवज्जो देकर एक नया प्रयोग किया था, जो सफल रहा, जिसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया गया था। हालांकि, 2012 से पार्टी का जनाधार लगातार गिरता गया। ऐसे में बसपा ने कई और प्रयोग किए। विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा ने 89 मुस्लिम प्रत्याशी दिए। कई जगह ऐसे प्रत्याशी उतारे, जिनको सपा की हार का कारण माना गया। नगर निकाय चुनाव 2023 में भी बसपा ने महापौर की 17 में 11 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे। हालांकि, ये प्रयोग सफल नहीं हुए और बसपा को करारी हार झेलनी पड़ी। इस बार लोकसभा चुनाव में बसपा ने शुरुआती लिस्ट में मुसलमान चेहरे उतारे तो लगा कि पार्टी फिर दलित-मुस्लिम कार्ड खेलेगी, लेकिन अब तक सबसे ज्यादा सवर्णों पर दांव लगाया गया है।

बसपा 36 प्रत्याशियों का ऐलान कर चुकी है, इसमें 11 सवर्ण हैं। 10 एससी और 9 मुस्लिम चेहरे हैं। पश्चिम की कई सीटों पर वोटरों की संख्या को ध्यान में रखकर दलित-मुस्लिम समीकरण साधा है, जहां सवर्ण प्रभावशाली हैं, वहां सवर्ण प्रत्याशी देकर सवर्ण-दलित समीकरण को तवज्जो दी है। जानकारों का कहना है कि दलित तो बसपा का कैडर वोट है। ऐसे में अन्य वर्ग के प्रत्याशियों के जरिए उसकी कोशिश है कि मुस्लिम और दलित उसके साथ जुड़ जाएं तो फायदा हो सकता है। पांच ओबीसी को भी बसपा ने टिकट दिया है। उसने 2007 में भी यही प्रयोग किया था। इसका नुकसान एनडीए और इंडी गठबंधन दोनों को होगा। दरअसल, लगातार हार के बाद बसपा लगातार प्रयोग कर रही है। उसने 2022 और फिर नगर निकाय चुनाव में मुस्लिम कार्ड खेला, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। ऐसे में मंथन के बाद बसपा फिर एक प्रयोग करने जा रही है। मायावती लगातार एक साल से कह रही हैं कि बसपा अकेले चुनाव लड़ेगी। बैलेंस ऑफ पावर बनाने की भी बात कर रही हैं। बैलेंस ऑफ पावर का मतलब यह है कि चुनाव बाद अगर किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता तो उस हिसाब से निर्णय लिया जाएगा। वहीं, राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचाना भी बसपा का मकसद है। गठबंधन में उसे बहुत कम सीटें मिलतीं। ऐसे में कुल वोट प्रतिशत गिर सकता था। यही वजह है कि सीट केअनुसार जहां जिस जाति का प्रभाव है, उसके अनुसार टिकट दिए गए हैं।

बहुजन समाज पार्टी लोकसभा चुनाव में अपना पूरा दमखम दिखाने की कोशिश कर रही है। किसी भी चुनाव में मायावती की उपस्थिति इसलिए काफी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि उनके पास दलितों का अच्छा खासा वोट है। मायावती की पहचान एक सशक्त दलित नेता के रूप में भी होती है लेकिन चौंकाने वाली बात यह है इस बार मायावती नहीं, उनके उत्तराधिकारी आकाश आनंद ने प्रचार की शुरुआत की। मायावती के भतीजे आकाश अब बीएसपी में नंबर 2 की हैसियत पर हैं। वे पार्टी के नेशनल कॉर्डिनेटर भी हैं, आकाश आनंद इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन वे पार्टी के स्टार प्रचारक हैं। अबकी से कभी बीएसपी में नंबर दो समझे जाने वाले सतीश मिश्रा कही दिखाई नहीं दे रहे हैं। वैसे स्टार प्रचारकों की सूची में उनका नाम जरूर शामिल है। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के भतीजे आकाश आनंद के चुनावी रण में कूद चुके हैं। मायावती के उत्तराधिकारी और बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने लोकसभा चुनाव को लेकर ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। उनके निशाने पर भाजपा, सपा, कांग्रेस सभी दलों के नेता हैं। भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर रावण पर भी वह हमलावर हैं। दरअसल, मायावती के बाद आनंद दलितों का दया चेहरा बनना चाहते हैं, जबकि दलित वोट बैंक पर भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण की भी नजर है।

आकाश आनंद ने अपना चुनाव प्रचार चंद्रशेखर रावण के खिलाफ क्यों शुरू किया? इस बात का खुलासा खुद आकाश में किया। उन्होंने बताया कि यह बहन जी का आदेश है। पिछले चुनाव में नगीना में बीएसपी की जीत हुई थी। आकाश आनंद ने चंद्रशेखर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कहा कि कल तक तो वे इंडिया गठबंधन के बड़े नेता होते थे लेकिन किसी ने उनके लिए एक सीट नहीं छोड़ी। न समाजवादी पार्टी ने उनकी सुध ली और न ही कांग्रेस ने। अब वे अकेले ही चुनाव लड़ने को मजबूर हैं। सच यही है कि कांग्रेस ने उन्हें एक सीट देने का भरोसा दिया था, लेकिन समाजवादी पार्टी से उसने नगीना सीट की मांग नहीं की। बीएसपी नेता आकाश आनंद ने मंच से चंद्रशेखर रावण की जमकर्र खिंचाई की। साल भर पहले उन्होंने चंद्रशेखर रा़वण को पहचानने से इंकार कर दिया था। उस समय पत्रकारों ने उनसे चंद्रशेखर के बारे में पूछा था, तब आकाश ने कहा था कौन चंद्रशेखर, किसकी बात कर रहे हो? इशारों ही इशारों में आकाश आनंद ने कहा कि चंद्रशेखर दलितों को उकसा रहे हैं, वे दलित नौजवानों को मुकदमों में फंसा रहे हैं। चंद्रशेखर का नाम लिए बिना आकाश ने कहा कि गर्म खून की राजनीति धोखा है। बाबा साहेब अंबेडकर और कांशीराम ने मुकदमों से दूर रहने को कहा था। आकाश ने कहा कि चंद्रशेखर जगह-जगह जाकर हंगामा करता है, वो पुलिस से झगड़ा करता है, इस चक्कर में उस पर मुकदमे होते हैं। इस तरह की घटनाओं में हमारे नौजवान साथियों पर भी केस हो जाते हैं, फिर उन्हें सरकारी नौकरी तक नहीं मिलती है। उन्होंने चंद्रशेखर पर बीएसपी के उम्मीदवार को कमजोर प्रत्याशी बताने का आरोप लगाया।

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