चकमा दिया करता था चीन, भारत ने अकेले संभाला मोर्चा
चीन ने समय-समय पर सीमा पर भारत को किया परेशान
शांति स्थापित करने के समझौते का चीन ने किया उल्लंघन
ऐम्सटर्डम : बीते जून महीने में चीन और भारत की सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच कई वार्ताएं हुई हैं और पूरी तरह न सही, कुछ हद तक सीमा पर स्थिति सामान्य भी हुई है। यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज ने कहा है, पैंगॉन्ग त्सो पर सेना पीछे करने के शुरुआती चरण में चीनी फिंगर 4 से फिंगर 5 पर गए लेकिन पहाड़ी के किनारे तैनाती जारी रखी। भारत इस बात पर जोर दे रहा है कि चीन फिंगर 5 से हटकर वापस फिंगर 8 पर जाए। वहीं, चीन के प्रतिनिधि भारत से मांग कर रहे हैं कि वह फॉरवर्ड इलाकों से हटे लेकिन भारत ने तब तक हटने से इनकार कर दिया है जब तक चीन पूरी तरह से पीछे नहीं चला जाता।’
यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज का कहना है कि 2017 में डोकलाम की तरह यहां भी चीन की आक्रामकता के सामने भारतीय राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व को दृढ़ रवैया और निश्चय ने चीन को हैरान कर दिया है। भारतीय रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के हवाले से ईएफएसएएस ने कहा है, ‘दोनों पक्षों को मान्य हों, ऐसे नतीजों पर पहुंचने के लिए सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी है लेकिन फिलहाल यथास्थिति कुछ वक्त तक बनी रहेगी।’ इसका मतलब है कि सर्दी आने पर और मुश्किल मौसम के बावजूद इतनी ऊंचाई पर दोनों देश अपने रुख पर कायम रहेंगे। भारत ने बड़ी मात्रा में ताकत जुटा ली है। जैसे हर साल भारत सियाचीन ग्लेशियर में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अभ्यास करता है, उसकी तैयारी भी की जा रही है।
गलवान घाटी घटना के बाद भारत चीन के खिलाफ आर्थिक कार्रवाई की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। दो दशक बाद फिर से रंगीन टीवी के आयात पर रोक इसी दिशा में एक बड़ी कार्रवाई है। इससे पहले सरकार ने सरकारी खरीद में चाइनीज कंपनियों की एंट्री बैन कर दी थी। मतलब, केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से किसी भी तरह की सरकारी खरीद में चाइनीज कंपनियां बोली में शामिल नहीं हो सकती हैं। चीन से आने वाले FDI के नियम भी बदले जा चुके हैं। भारत हर साल हजारों करोड़ का रंगीन टीवी का आयात करता है। इसमें चीन की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है और धीरे-धीरे उसका मार्केट शेयर बढ़ रहा था।
वित्त वर्ष 2019-20 भारत ने 78.1 करोड़ डॉलर (करीब 5800 करोड़, वर्तमान मूल्य के हिसाब से) कीमत के रंगीन टीवी आयात किये। इनमें से वियतनाम से 42.8 करोड़ डॉलर (करीब 3100 करोड़ रुपये) और चीन से 29.3 करोड़ डॉलर (करीब 2100 करोड़ रुपये) हुआ। पैनासोनिक इंडिया के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मनीष शर्मा ने इस बारे में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अब उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता वाले एसेम्बल्ड टीवी सेट उपलब्ध होंगे। टीवी आयात पर रोक को लेकर विदेश व्यापार महानिदेशालय ने एक नोटिफिकेशन में कहा, कि रंगीन टेलीविजन की आयात नीति को प्रतिबंधित कैटिगरी में डाल दिया गया है। ऐसे में डीजीएफटी की मंजूरी के बिना टीवी नहीं आयात किए जा सकते हैं।
डीजीएफटी वाणिज्य मंत्रालय के तहत आता है। यह आयात प्रतिबंध 36 सेंटीमीटर से लेकर 105 सेंटीमीटर से अधिक की स्क्रीन आकार वाले रंगीन टेलीविजन सेट के साथ ही 63 सेंटीमीटर से कम स्क्रीन आकार वाले एलसीडी टेलीविजन सेट भी प्रतिबंध की कैटिगरी में हैं। भारत को टीवी का निर्यात करने वाले प्रमुख देशों में चीन, वियतनाम, मलेशिया, हांगकांग, कोरिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड और जर्मनी शामिल हैं। भले ही चीन सीमा मुद्दे की जगह द्विपक्षीय संबंध सुधारने का लालच दे रहा हो, भारत की इस तैयारी से लगता है कि वह किसी भी तरह के गंभीर टकराव की स्थिति के लिए मजबूत है। संस्थान का कहना है, ‘चीन ने समय-समय पर सीमा पर भारत को परेशान किया है और दोनों पक्षों के बीच शांति स्थापित करने के समझौते का उल्लंघन किया है।
भारत भी अब इस बात को समझ रहा है कि वह अकेले इस मुद्दे से जूझ रहा है जिसका कोई फायदा नहीं है।’ भले ही चीन भारत से ‘आसान रास्ता’ अपनाने को कह रहा हो, भारत का मानना है कि वह अब दृढ़ है और मजबूत है कि सीमा पर गंभीर टकराव के लिए खड़ा होकर चीन की अप्रत्याशित आक्रामक गतिविधियों का सामना कर सकता है। भारत को उम्मीद है कि मौजूदा टकराव को बातचीत से सुलझा लिया जाएगा लेकिन वह इस बात की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता कि अगर टकराव बढ़े तो वह अपने क्षेत्र की रक्षा कर सकता है।
थिंक-टैंक ने यहां तक कहा है कि इसलिए बेहतर होगा कि दोनों देश आपसी सहमति से समाधान निकालें जिसमें चीन सम्मान के साथ पीछे हट जाए। इसमें चीन और भारत, दोनों के करीबी दोस्त रूस की बड़ी भूमिका भी बताई गई है।
वहीं जुलाई की शुरुआत में वाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ मार्क मेडोज ने कहा था कि अमेरिका भारत और चीन के बीच विवाद में मजबूती से खड़ा रहेगा और आरोप लगाया था कि चीन के आसपास कोई भी उसकी आक्रामकता से बचा नहीं है। अमेरिका की मदद की पेशकश के बावजूद भारत ने फैसला किया है कि वह अमेरिका या किसी दूसरे देश की मदद तब तक नहीं लेगा जब तक हालात इतने गंभीर न हो जाएं।