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सामुदायिक प्रयास और फ्यूजीकांट से केले की फसल में पनामा विल्ट पर प्रभावी नियंत्रण

लखनऊ: उत्तर प्रदेश और बिहार में केले में पनामा रोग से उत्पन्न भयावह स्थिति ने किसानों को सचेत किया और रोग के उचित निदान के लिये वैज्ञानिकों को शोध करने के लिये उत्साहित किया. उत्तर प्रदेश में सबसे पहले बीमारी  लगभग दो साल पहले सोहावल में दर्ज की गयी थी और वहाँ के किसानों द्वारा सर्वप्रथम इस बीमारी से निपटने के लिये किसान सहायता की गुहार लगायी गयी. उत्तर प्रदेश और बिहार के अन्य स्थानों के उपायों के कारगर न होने के कारण थक हार कर बैठ गये हैं.  सोहावल के किसानों ने देश-विदेश में केले की खेती के अनुभवी लोगों से संपर्क करके लोगों द्वारा सुझाए गए तरीके अपनाए जिससे केले की फसल को बचाया जा सके.

यूपी में पनामा विल्ट से केले की सुरक्षा के लिए किसानों और वैज्ञानिकों में तालमेल

अधिकतर विशेषज्ञ समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर बीमारी क्या है. बीमारी के लक्षण कई अन्य बीमारियों से मिलते जुलते होने के कारण भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई थी यानि सही निदान ना  होना इस रोग के नियंत्रण में बाधक था. यूपी में यह बीमारी बिहार के बाद पता चली और सोहावल में किसानों को काफी क्षति उठानी पड़ी. किसानों ने कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र एवं अनुभवी केला उत्पादकों से सलाह ली लेकिन बीमारी पर नियंत्रण न हो सका. इसी दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के लखनऊ स्थित केन्द्रीय लवणता के प्रधान वैज्ञानिक डा. दामोदरन एवं केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम बनाकर निदेशक डा. शैलेन्द्र राजन ने किसानों को इस समस्या से निदान दिलाने के लिये प्रयास किये. चूँकि यह बीमारी एक खेत से दूसरे खेत, सिंचाई के पानी, साइकिल, गाड़ियों के टायर, जूते में लगी मिट्टी, फावड़े-कूदाल कई तरह से एक खेत से दूसरे में फैलती  हैं. अतः सोहावल में केला उत्पादकों को संगठित करके “उत्तर प्रदेश केला उत्पादक संघ” बनाकर  जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया ताकि बीमारी के बारे में लोगों का ज्ञान बढ़े और नियंत्रण में सफलता मिल सके.

इसी दैरान विकसित आईसीएआर-फ्यूजीकांट दवा से इस बीमारी को रोकने में सफलता मिली. इसमें किसानों का योगदान सराहनीय रहा. वैज्ञानिकों एवं किसानों के सहयोग से इस भयानक बीमारी का नियंत्रण एक अनूठा उदाहरण है क्योंकि लगभग सभी देशों में बीमारी को रोकने के प्रयास असफल रहे हैं। आईसीएआर-फयूजीकांट उत्तर प्रदेश के सोहावल ही नहीं बल्कि बिहार में भी कारगर पाया गया है और वहाँ पर केला उत्पादकों के सामुदायिक संगठन को बनाकर तमाम विल्ट का नियंत्रण किया जा रहा है. वर्तमान में अधिक मात्रा में आईसीएआर-फयूजीकांट बनाने की सुविधा उपलब्ध नहीं है और आगामी एक या दो माह में सुविधा उपलब्ध होने पर इसे किसानों को अधिकाधिक मात्रा में उपलब्ध कराया जायेगा. सोहावल के सफल उदाहरण को देखते हुये संत कबीर नगर, मेदावल और सिसवा  बाजार के किसानों के साथ माटी फाउंडेशन नामक सामुदायिक संगठन ने  सहयोग करके इस क्षेत्र नियंत्रण प्राप्त करने का प्रयास प्रारंभ कर दिये हैं.

पनामा विल्ट बीमारी से ताईवान, अफ्रीका,दक्षिण अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया में केला उत्पादकों को करोड़ो रूपये की क्षति हुयी है. चूँकि यह बीमारी देश  में लगभग तीन वर्ष पूर्व रिपोर्ट की गयी और बिहार में यह बीमारी इतनी घातक है कि पूरा का पूरा बाग नष्ट हो जा रहा है. अधिक संक्रमण की स्थिति में उपज को 80-90 प्रतिशत तक की हानि होती है.

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