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कितना विश्वास जगाएगी तेजस्वी की जनविश्वास यात्रा

पटना से दिलीप कुमार

राज्य में सत्ता से बाहर होने के बाद तेजस्वी यादव जनविश्वास यात्रा पर निकले हैं लेकिन, सवाल यह है कि वे इस यात्रा से जनता में अपनी पार्टी के प्रति कितना विश्वास जगा पाएंगे, यह देखने वाली बात होगी। दो चरणों की इस यात्रा का पहला चरण तो ठीक रहा है, लेकिन दूसरे चरण में यात्रा की खानापूरी ही दिखी। इस यात्रा के प्रति जनता में कितना विश्वास जगा है, इसकी बानगी पूर्णिया में दिखी। यहां तेजस्वी यादव की यात्रा के दौरान खूब बवाल हुआ। तेजस्वी को लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा, यहां तक कि लोगों ने पार्टी के झंडे भी जलाए। लोगों का गुस्सा इसलिए था, क्योंकि एक तो तेजस्वी यादव कार्यक्रम में देरी से पहुंचे थे, दूसरे उनकी फरियाद सुने बिना चले गए। सवाल यह है कि जनता के जिस विश्वास के लिए वे यात्रा पर हैं, जब उनकी ही बात नहीं सुनेंगे तो इसका लाभ तो मिलने से रहा। जनता सब समझ रही है।

तेजस्वी प्रसाद यादव ने 20 फरवरी से जन विश्वास यात्रा की शुरुआत की। पहले चरण में तेजस्व यादव ने लगभग 1100 किलोमीटर की दूरी तय की। इस दौरान उन्होंने 16 सभाओं को संबोधित किया। 25 फरवरी से यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत हुई। इस यात्रा से यह तो लग रहा है कि राजद राज्य में सक्रिय है। लेकिन, इंडिया गठबंधन का हिस्सा अन्य पार्टियां तो शांत हैं, वे कुछ नहीं कर रहीं। इस गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस तो सुस्त है। वह जनता को जोड़ने के लिए कोई काम नहीं कर रही है। ऐसे में लोकसभा चुनाव में ‘इंडिया गठबंधन’ की क्या स्थिति होगी, आसानी से समझा जा सकता है। कांग्रेस के विधायक भी एनडीए के खेमे में जा रहे हैं और कांग्रेस अपने विधायकों को बचाने के लिए बहुत कुछ नहीं कर रही है। फ्लोर टेस्ट के दौरान अपने विधायकों को हैदराबाद तो ले गई, लेकिन इसके बाद बेफिक्र हो गई। कांग्रेस आलाकमान का फोकस केवल राजद के साथ मिलकर अखिलेश प्रसार्द ंसह को राज्यसभा भेजने पर रहा है। बताया जाता है कि अंदरूनी तौर पर अखिलेर्श ंसह से कई की नाराजगी है। फिलहाल एनडीए के सामने राज्य में इंडिया गठबंधन हर मोर्चे पर मात खा रहा है। लोकसभा चुनाव में उसे इसका बड़ा नुकसान तय है।

खेला पर खेला

बिहार में खेला पर खेला हो रहा है। महागठबंधन की सरकार से जब नीतीश कुमार अलग हुए तो तेजस्वी ने कहा था, ‘असली खेला तो अब होगा।’ लेकिन, जब नीतीश कुमार ने विधानसभा में विश्वास मत हासिल किया तो राजद के साथ ही खेला हो गया। उसके तीन विधायक पाला बदलकर नीतीश के खेमे में जा पहुंचे। इसके कुछ ही दिन बाद तीन विधायक भाजपा के खेमे में पहुंच गए। खेला करने में आगे रहे लालू प्रसाद यह भांप नहीं सके कि उनकी ही पार्टी में सेंध लगाई जा रही है। वर्ष 2000 में जब पहली बार नीतीश कुमार ने सरकार बनाई थी तब लालू के खेल के आगे नीतीश कुमार बहुमत हासिल नहीं कर सके थे। सात दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। उसी लालू को नीतीश ने अबकी मात दी है। एनडीए के साथ दोबारा सरकार बनाने पर जब 12 फरवरी को नीतीश कुमार विधानसभा में विश्वासमत हासिल कर रहे थे, तब राजद के साथ पहला खेला हुआ। उसके तीन विधायक बाहुबली मोहन आनंद के बेटे चेतन आनंद, नीलम देवी और प्रहलाद यादव जदयू के खेमे में पहुंच गए थे।

इसके बाद 27 फरवरी को विधानसभा सत्र के दौरान महागठबंधन के तीन और विधायकों ने भगवा पहनकर भाजपा का दामन थाम लिया। इनमें राजद की संगीता देवी के अलावा कांग्रेस के दो विधायक सिद्धार्थ सौरभ और मुरारी गौतम शामिल हैं। आगे अभी और विकेट गिरने की बात कही जा रही है। इस तरह का इशारा भाजपा नेता व उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कर रहे हैं। वह कहते हैं कि रास्ते खुले हैं, अभी और भी लोग आ सकते हैं। लालू यादव पर किसी को भरोसा नहीं रहा। बताया जाता है कि करीब 15 विधायक एनडीए के संपर्क में हैं। जिस तरह से विधायक पाला बदलकर एडीए में आ रहे हैं, इसका असर निश्चित तौर पर लोकसभा चुनाव की सीटों पर पड़ेगा। इसी रणनीति के तहत विरोधियों में सेंध भी लगाई जा रही है।

जातीय समीकरण साध रही भाजपा

राजद की संगीता देवी की ही बात करें तो वह जिस विधानसभा क्षेत्र से आती है, उसका समीकरण भी कुछ इसी तरह का है कि भाजपा को लाभ मिलेगा। मोहनिया की विधायक संगीता को भाजपा सासाराम से लोकसभा चुनाव लड़वा सकती है। इस सीट से इस बार छेदी पासवान का टिकट कट सकता है। सासाराम लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। यहां सबसे बड़ा वोट बैंक दलित का है। संगीता दलित हैं। सवर्ण और अतिपिछड़ा वोट बैंक मिलाकर भाजपा इस सीट पर अपनी जीत पक्का करना चाहती है। दूसरी ओर भाजपा में आए कांग्रेस के मुरारी गौतम भी दलित हैं। वे रोहतास जिले के चेनारी विधानसभा के विधायक हैं। इनके चलते भाजपा को रोहतास लोकसभा क्षेत्र में भी दलित वोट का फायदा मिल सकता है। मगध क्षेत्र की विक्रम सीट से विधायक सिद्धार्थ सौरव पिछले दो चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को ही हराकर विधानसभा पहुंचे रहे हैं। सिद्धार्थ के भाजपा में शामिल होने से इस क्षेत्र में उसे मजबूती मिली है। सिद्धार्थ के आने से मगध क्षेत्र में भूमिहार समुदाय पर भाजपा की पकड़ मजबूत होगी।

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