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अवसाद से बचने के लिए वाह्य से ज्यादा जरूरी होता हैं आतंरिक परिवर्तन

डॉ. प्रियंका शुक्ला

स्तम्भ: मानव जीवन में मानसिक अवसाद ऐसी अवस्था है जो व्यक्ति को बाहर से नहीं बल्कि अन्दर से कमजोर कर देती हैं। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति भावनातमक रूप से इतना आहत हो कर हताश और निराश हो जाता हैं कि स्वयं को ही शारीरिक आघात पहुचाँने तक की अवस्था में पहुँच जाता है। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति ना स्वयं को खुश रख पाता है और ना दूसरा व्यक्ति उसको खुश रख पाने में समर्थ हो पाता है।

आयुर्वेद में स्पष्ट कहा गया है की प्रत्येक शारीरिक रोग मानसिक रोग में और प्रत्येक मानसिक रोग शारीरिक रोग में परिवर्तित हो जाता है। इसलिये मानसिक रोगी में शारीरिक रोग के लक्षण मिलना स्वाभविक है।

अवसाद के शारीरिक लक्षण में कमजोरी व थकान, भूख न लगना, नींद की कमी, अधिक पसीना, पाचन समस्या आदि इसके लक्षण हैं साथ ही मानसिक लक्षणो में निहित है-नकरात्मक विचार, अकेलापन, इच्छा व एकाग्रता का अभाव। अवसाद के शिकार व्यक्ति में यह सभी लक्षण बहुत स्पस्ट रूप से परिलिक्षत होने लगते हैं। यदि शुरुआत में ही अवसाद के रोगी व्यक्ति अपने लक्षणो के प्रति सचेत हो जायें तो कुछ क्रियाओ में परिवर्तंन लाकर अवसाद से बचा जा सकता है।

भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण का स्पष्ट संदेश हैं-

बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।

जिस जीवात्मा द्वारा मन और इंद्रियों सहित शरीर जीता हुआ हैं, उस जीवात्मा का तो वह आप ही मित्र हैं और जिसके द्वारा मन तथा इंद्रियों सहित शरीर नही जीता गया हैं,उसके लिए वह आप ही शत्रु के सदृश शत्रुता में बर्तता हैं।। (अ.6 श्. 6)

अर्जुन का अवसाद तो श्रीकृष्ण ने मित्र बनकर दूर दिया। किन्तु वर्तमान समय में श्रीकृष्ण जैसा मित्र और अर्जुन जैसी पात्रता मिलना असंभव हैं क्योंकि आज के समय में किसी के पास किसी दूसरे कि समस्यायें सुनने का समय ही नही हैं। इसलिये वर्तमान समय में हमें स्वयं अपना मित्र बनना पड़ेगा और अपनी दैनिक क्रियाओं में परिवर्तन कर के हम स्वयं से मित्रता कर सकते हैं।

  1. नियमित दिनचर्या में योग, व्यायाम और ध्यान को शामिल करना।
  2. तनाव को जीवन का अभिन्न अंग मानकर स्वीकार करना और तनाव रहित होने का प्रबंधन करने का प्रयास करना।
  3. पर्याप्त नींद और शाकाहारी भोजन का सेवन।
  4. कुछ प्रेरणादायी पुस्तक या अध्यात्मिक ग्रन्थ का निरंतर स्वाध्याय।
  5. परिवार व मित्रजनो के साथ समय व्यतीत करना अपने विचार और भाव को साझा करते रहना।
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इन सभी कार्यो के साथ सबसे आवश्यक हैं अपने विचारों के प्रति सजगता। जिससे एक भी नकरात्मक विचार दिमाग में आते ही उसके निदान का उपक्रम प्रारम्भ हो सके और प्रत्येक नकरात्मक विचार का विश्लेषण करते रहे की वह कितना वास्तविक हैं और कितना काल्पनिक। जैसे-जैसे हम विचारों के प्रति सजग रहना सीख जायेंगे और विचारो की अनदेखी नही करेंगे उतना ही हम स्वयं को अवसाद से दूर रख पाने में समर्थ हो सकेगें।

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