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बागी बलिया के अमिट हस्ताक्षर थे ” पत्रकार चितरंजन सिंह”

वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रखर समाजसेवी चितरंजन सिंह का निधन

लखनऊ/बलिया: वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता चितरंजन सिंह का आज बलिया में निधन हो गया। श्री सिंह लम्बे समय से बीमार थे। वह कई दिनों से कोमा में थे। श्री सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही छात्र राजनीति में आये थे और उन्होंने पूरे प्रदेश की छात्र राजनीति की दिशा ही बदलकर रख दी। विभिन्न आन्दोलनों में वह दर्जन बार से ज्यादा जेल गये। अध्ययन के बाद वह पत्रकारिता से जुड़े और फिर स्वतंत्र लेखन से। वह आन्दोलन से जुड़कर पूरे जीवन भर संघर्ष करते रहेें। उनका पारिवारिक जीवन भी इसी आन्दोलन में तबाह हो गया। उनके लखनऊ, गोरखपुर, इलाहाबाद व वाराणसी के जानने वाले यह भलीभांति जानते हैं कि इधर हाल के वर्षों में ऐसी जीवटता के लोग सामाजिक जीवन में नहीं आये है। ऐसे श्रमजीवी संघर्षशील पत्रकार को श्रद्धांजलि।

पत्रकार चितरंजन सिंह के निधन पर राजधानी लखनऊ के अनेक पत्रकारों ने श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए उनके साथ बिताये गए समय की यादें और अनुभव साझा किये। सोशल मीडिया पर पत्रकारिता और लेखन जगत से जुड़े लोगों के अतिरिक्त कई राजनीतिक और सामजिक हस्तियों ने उन्हें याद किया।

जानी-मानी राष्ट्रीय समाचार पत्रिका “दस्तक टाइम्स” के सम्पादक राम कुमार सिंह ने कहा, बेहद दुखद, चितरंजन भाईसाहब के साथ दिल्ली में कुछ दिनो तक मिलना जुलना रहा इधर कई सालो से सम्पर्क टूट गया था। उनकी सादगी और दूसरे के प्रति कर्तव्य भाव से भरा उनका व्यक्तित्व अपने आप में अनोखा था। ईश्वर उन्हे सद्गति प्रदान करें।

वरिष्ठ पत्रकार मुदित माथुर ने लिखा कि चितरंजन सिंह जी मानवधिकारों के लिए निरंतर संघर्षरत प्रेरणा स्रोत थे। नवभारत टाइम्स में मेरे अग्रज अनिल सिन्हा जी के अभिन्न सहयोगियों में थे और दोनों जन संस्कृति मंच के माध्यम से सामाजिक न्याय व परिवर्तन के लिए सक्रिय थे। अक्सर अमृत प्रभात के वरिष्ठ सहयोगी साथी अजय सिंह के साथ वह नभाटा के कार्यालय रात्रि पाली के समय आते थे और फिर हमारे स्थानीय संपादक राम कृपाल सिंह व समाचार संपादक कमर वहीद नकवी घंटो चिन्तन मंथन करते थे। उनके निधन से वंचितों के लिए संघर्षरत मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गहरा सदमा लगा है।

पत्रकार राजीव तिवारी ने लिखा कि स्व. चितरंजन सिंह यूं तो मेरे स्व. पिताजी के क्रांतिकारी और आंदोलनकारी मित्र थे ,मगर बाद में जब मैंने पत्रकारिता की राह पकड़ी तो मेरे भी पत्रकारीय मित्र हो गये। पहले चितरंजन चाचा थे बाद में चितरंजन भाई हो गये। ये उनका बिरला व्यक्तित्व था कि बाप बेटे दोनों के साथ समान मित्रवत व्यवहार रखा। लखनऊ छोड़ने के बाद उनसे संपर्क टूट गया। एक बार गोरखपुर में लंबे अरसे बाद मुलाकात हुई थी। पीयूसीएल की कई कहानियां उन्होंने बताईं। सरकार किसी की भी हो सरकार की नज़र में वो हमेशा खटकते थे क्योंकि वो आम जनता की बात उठाते थे। उनके छोटे भाई मनोरंजन सिंह अमर उजाला और राष्ट्रीय सहारा में कई दिन साथ रहे। बाबा से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति और परिजनों को दुःख की इस घड़ी में धैर्य प्रदान करें।

पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा ने लिखा चितरंजन भाई को याद करना एक इतिहास याद करने के बराबर है। स्मृतियों के जंगल मे चितरंजन भाई से मिल रहा हूँ।

उत्कर्ष ने यादें साझा करते हुए लिखा कि, वो सन 2003 की सर्दियों की एक शाम थी जब चितरंजन भैया से लखनऊ के काफी हाउस में मिलना तय था । मैं गर्म जैकेट मफलर से पैक हो कर बाहर इंतज़ार कर रहा था। वे दिखे एक सूती कमीज में ठिठुरते हुए । मैने कहा- स्वेटर क्यों नही पहने ? इतनी सर्द हवा लगेगी तो बीमार हो जाएंगे। जवाब मिला – अरे मैैं तो घर से जैकेट पहन के निकला था, मगर जिस रिक्शेवाले के साथ यहां आया उसके पास स्वेटर भी नही था तो मैंने अपना जैकेट उसे दे दिया । सोचा मेरे पास तो उत्कर्ष है दूसरा खरीद देगा, उस रिक्शेवाले का क्या होगा ? स्वभाव से फक्कड़ चितरंजन भाई दिल के बादशाह थे ।

उत्कर्ष ने आगे लिखा कि जवानी की दहलीज पर अगर आपको चितरंजन भाई सरीखा मिल जाए तो जिंदगी किस कदर बदल सकती है ये मुझे खूब पता है। इकहरे बदन में सम्वेदना और ऊर्जा का ज्वालामुखी थे भैया। करीब 25 सालों तक लगातार संपर्क बना रहा। अगर ये कहा जाए कि भारत मे मानवाधिकार के संघर्ष का पर्यायवाची खोजो तो वो चितरंजन सिंह मिलेगा।

ढेरो यात्राएं की उनके साथ, हमेशा एक छोटे बैग से ज्यादा कुछ नही रहा उनके साथ। मगर उसमे भी कॉपी और कलम जरूर रही। कहीं भी बैठ के अखबारों के लिए कालम लिखने के वास्ते, हाँ एक मजबूत मकसद हमेशा रहा उनके साथ, वंचितों और मजलूमो के हक की लड़ाई लड़ने का मकसद। स्वर्गीय अग्रज धर्मेंद्र राय का कहना ठीक ही था – जवानी में जब हम लोग चितरंजन सिंह को देखते तो सोचते थे चंद्रशेखर आज़ाद ऐसे ही रहे होंगे। बलिया की मिट्टी ही बागी है, चितरंजन भाई इस बात के उदाहरण रहेंगे।

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