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लोकसभा चुनाव 2024 : मौजूदा तीन सीटों पर कब्जा बरकरार रख पाएगी कांग्रेस?

संजीव कलिता

सन 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर असम में राजनीतिक दलों के बीच पिछले कुछ समय से दावों का दौर तेज हो गया है। दावों के मामले में जहां सत्ताधारी भाजपा एवं इसके सहयोगी असम गण परिषद और यूपीपीएल अभी से आत्मविश्वास से लबरेज दिख रहे हैं, वहीं विरोधी गठबंधन इंडी अलायंस (इंडिया) में सीटों के बंटवारे को लेकर अभी से अंदरुनी कलश की खबरें आनी शुरू हो गई है। हालांकि, असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एपीसीसी) के अध्यक्ष भूपेन कुमार बोरा सहित विपक्षी पार्टियों के नेता इस मुद्दे पर मीडिया के समक्ष बयान देने के मामले में काफी सावधानी बरतते नजर आ रहे हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो 2024 का लोकसभा चुनाव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के लिए किसी कठिन अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी। ध्यान रहे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कलियाबर, बरपेटा और नगांव- इन तीन सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था। हाल ही संपन्न असम के लोकसभा और विधानसभाओं के क्षेत्र परिसीमन के बाद दिख रहे बदलाव से इन तीनों सीटों पर जीत को बनाए रखना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है। सीधे शब्दों में कहें तो 2024 का लोकसभा चुनाव असम कांग्रेस के लिए करो या मरो जैसी होगा।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो 2024 का लोकसभा चुनाव रोचक होने जा रहा है। असम के लोकसभा और विधानसभाओं के क्षेत्र परिसीमन के बाद भले ही सीटों की संख्या पूर्ववत रह गई है, पर कहीं नाम तो कहीं क्षेत्रों के शामिल होने के मामले में बदलाव लाए गए हैं। खासकर, असम के कुल 14 लोकसभा सीटों में से क्षेत्र परिसीमन के बाद काजीरंगा लोकसभा सीट का जन्म हुआ है और कलियाबर लोकसभा सीट को विलुप्त कर दिया गया है। चुनाव आयोग द्वारा नवगठित काजीरंगा लोकसभा सीट में कलियाबर, बढ़मपुर, बिन्नाकांदी, होजाई, लार्मंडग, गोलाघाट, देरगांव, बोकाखात, खुमटाई और सरुपथार- इन दस विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इसके चलते 2019 के चुनाव में कलियाबर लोकसभा क्षेत्र से विजयी हुए कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रहीं है क्योंकि काजीरंगा लोकसभा सीट के तहत शामिल विधानसभा क्षेत्रों में से अधिकांश भाजपा व मित्रदल असम गण परिषद के कब्जे में है।

कलियाबर से केशव महंत (असम गण परिषद), बढ़मपुर से जीतु गोस्वामी (भाजपा), होजाई से रामकृष्ण घोष (भाजपा), लार्मंडग से शिबू मिश्रा (भाजपा), गोलाघाट से अजंता नेओग (भाजपा), देरगांव से भवेंद्रनाथ भराली (असम गण परिषद), बोकाखात से अतुल बोरा (असम गण परिषद), खुमटाई से मृणाल सइकिया (भाजपा) और सरुपथार से विश्वजीत फुकन (भाजपा) मौजूदा विधायक हैं। ऐसे में अगर गौरव हाथ के चुनाव चिह्न पर काजीरंगा क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं तो इसका नतीजा क्या हो सकता है यह एक आम मतदाता भी समझ सकता है। चर्चा यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के पुत्र तथा पार्टी सांसद गौरव गोगोई नगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं। इसके लिए वे सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के पास गुहार लगा रहे हैं। मजे की बात यह है कि नगांव लोकसभा सीट फिलहाल कांग्रेस सांसद प्रद्युत बरदलै के कब्जे में है।

ऐसे में मौजूदा सांसद बरदलै कतई अपनी सीट गौरव के लिए छोड़ने को तैयार नहीं होंगे। आने वाले समय में इन दोनों में से नगांव लोकसभा सीट से कांग्रेस किसे उम्मीदवार बनाती है, इस पर भी चुनाव परिणाम काफी हद तक निर्भर होगा क्योंकि, दोनों में से एक की नाराजगी गुटबाजी का कारण बनेगी और मतदान के नतीजों में भितराघात साफ दिखाई देने की संभावना फिलहाल दिख रही है। ऐसे में नगांव लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा बरकरार रखना कठिन हो सकता है। अब आते हैं बरपेटा लोकसभा सीट की ओर। यह सीट फिलहाल कांग्रेस के कब्जे में है और अब्दुल खालेक यहां से सांसद हैं। क्षेत्र परिसीमन ने बरपेटा लोकसभा सीट का नक्शा ही बदल दिया है। इस सीट के तहत अभयापुरी (नवगठित विधानसभा क्षेत्र), बंगाईगांव, भवानीपुर, बरमा (एससी), रूपशी, बजाली, हाजो (एससी), बरक्षेत्री, नलबाड़ी और टिहू शामिल किए गए हैं। इस लोकसभा सीट में क्षेत्र परिसीमन का अच्छा खासा बदलाव आया है। इस बदलाव को देखने के बाद मौजूदा कांग्रेस सांसद अब्दुल खालेक का बयान आया है कि वे इस बार चुनाव नहीं लड़ने का मन बना रहे हैं।

अब देखना यह होगा कि कांग्रेस के कब्जे में रही इन तीन सीटों को लेकर पार्टी आलाकमान क्या फैसला सुनाती है? नगांव, बरपेटा और नवगठित काजीरंगा लोकसभा क्षेत्र में विलय कलियाबर लोकसभा सीट के अलावा इंडी अलायंस में शामिल अन्य दल भी इस बार के चुनाव में उम्मीदवारी देने का मन निश्चित तौर पर बना ही रहे हैं। इंडी अलायंस की एकजुट ताकत असम में क्या गुल खिला पाती है यह तो चुनाव परिणामों के बाद स्पष्ट हो जाएगा, लेकिन सूबे की मौजूदा राजनीतिक पट पर भाजपा एवं मित्रदलों की मतदाताओं पर बनी पकड़ एवं सरकार की लोकलुभावन योजनाओं से लाभान्वित मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में इंडी अलायंस कहां तक सफल हो पाती है, फिलहाल संदिग्ध ही लगता है। उधर, अल्पसंख्यकों का ट्रंप कार्ड खेलकर राजनीति में आए इत्र व्यापारी मौलाना बदरुद्दीन अजमल के साथ प्रदेश कांग्रेस अभी से कन्नी काट रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन कुमार बोरा के ‘न’ के बाद भी धुबड़ी के एआईयूडीएफ सांसद मौलाना अजमल इंडी अलायंस में शामिल होने को बेताब हैं। वे एआईसीसी के नेताओं को मनाने की जुगत में लगे हुए हैं। अजमल का कहना है कि इंडी गठबंधन में उनकी पार्टी एआईयूडीएफ के शामिल होने से अल्पसंख्यक मतदाताओं का समर्थन प्राप्त होगा।

वहीं, भाजपा एवं इसके सहयोगी दल असम गण परिषद और यूपीपीएल के नेता इस बार के लोकसभा चुनाव में 12 सीटों पर कब्जा करने का दावा कर रहे हैं। नवंबर महीने के दूसरे पखवाड़े की शुरुआत तक सूबे की कुल 14 लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर मित्रदलों के बीच कोई औपचारिक बातचीत होने की खबर नहीं आई है। फिलहाल, यह कहना कठिन होगा कि 14 में से कितनी सीटें सहयोगी असम गण परिषद और यूपीपीएल को दी जाएंगी और कितनी सीटों पर भाजपा अपना उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारेगा। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव के महारण में इस बार ऊपर उल्लेखित तीन सीटों पर कब्जा बरकरार रखने के लिए कांग्रेस को ‘करो या मरो’ की नीति अपनानी ही पड़ेगी।

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