उत्तर प्रदेश

जान गंवाने वाले डॉक्टरों को मिले शहीद का दर्जाः डा. राजन शर्मा

नई दिल्ली : 23 मई 2021: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा ने कोविड महामारी के दौरान अपनी जान गंवाने वाले डॉक्टरों को शहीद का दर्जा देने की मांग की है। उनका कहना है कि यह बलिदान वैसा ही है, जिस प्रकार सीमा पर लड़ते हुए एक जवान अपनी शहादत देता है।

उन्होंने कहा कि 19 मई, 2021 तक देश भर में कुल 1,076 डॉक्टर कोविड से मरीजों की जान बचाते हुए संक्रमित होकर अपने प्राण न्योछावर कर चुके हैं। यह मात्र एक आंकड़ा नहीं है, यह नुकसान है वास्तविक मानवीय जीवन का और उनके बिखरे परिवारों का।

कोरोना की दूसरी लहर में गंभीर रूप धारण कर चुकी है डॉक्टरों में मृत्युदर

डॉ. शर्मा ने का कहना है कि जिस प्रकार एक जवान स्वेछा से अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए सीमा पर जाता है, उसी प्रकार एक डॉक्टर अपने मरीज की जान बचाने के लिए काम करता है।

इसके विपरीत जवान जब शहीद होता है तो उसका मृत शरीर तिरंगे से लिपटा हुआ घर आता है। परंतु अपने मरीज की जान बचते हुए जब एक डॉक्टर शहीद होता है, तो उसकी कहीं गिनती नहीं होती। दोनों अपने राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाते हैं, फिर भी दोनों के साथ अलग-अलग व्यवहार होता है।

इंडियन मेडिकल एसोशिएशन ने अपने स्तर पर इन शहीदों की संख्या एकत्र करने का प्रयास

डॉ. शर्मा ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि आज अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले हमारे डॉक्टरों की शहादत को स्वीकार करना तो दूर कोई उनकी गिनती भी रखना जरूरी नहीं समझता।

उन्होंने कहा कि इस महामारी के दौरान जो डॉक्टर अग्रिम मोर्चे पर काम करते हुए अपनी जान गंवा रहे हैं, उनके सही आंकड़े भी नहीं रखे जा रहे हैं। इसलिए इंडियन मेडिकल एसोशिएशन ने अपने स्तर पर इन शहीदों की संख्या एकत्र करने का प्रयास किया है।

महामारी का सबसे बुरा असर ‘जनरल प्रेक्टिनशनर्स’ पर

उन्होंने कहा कि इस महामारी में सबसे गहरी मार ‘जनरल प्रेक्टिनशनर्स’ ने झेली है, क्योंकि महामारी की चपेट में आए मरीज सबसे पहले अपने फ़ैमिली डॉक्टर से ही संपर्क करते हैं।

चूंकि वे मरीज के सबसे निकट और सुलभ होते हैं, इसलिए वे ही सबसे बड़ी कीमत चुकाते हैं। जांच आदि की दृष्टि से संक्रमण के प्रथम सप्ताह को ‘द गोल्डेन वीक’ माना जाता है और यह सप्ताह संक्रमण के इलाज में बहुमूल्य माना जाता है। इसी प्रथम सप्ताह में संक्रमण अपने चरम पर होता है और दूसरों को प्रभावित करने की सर्वाधिक क्षमता रखता है।

विदारक जिनका सामना डॉक्टर प्रतिदिन करते हैं कई समस्याओ का सामना

डॉ. शर्मा ने कहा कि बहुत से युवा और बुजुर्ग डॉक्टरों ने कोविड के विरुद्ध इस जंग में अपनी जान गवांयी है। बिना रुके लंबे समय तक काम करते रहना, लगातार संक्रमण के संपर्क में रहना, घर जाकर संक्रमण से अपने पारिवारिक सदस्यों को भी संक्रमित करने का डर, पर्याप्त पीपीई किट्स और अन्य सुविधाओं का अभाव, अनियमित वेतन, अपने स्वयं के इलाज का खर्च वहन करने की क्षमता का अभाव, और इससे भी अधिक प्रतिदिन मौत का तांडव देखने के कारण भावात्मक कष्ट आदि ऐसी हृदय विदारक समस्याएँ हैं, जिनका सामना डॉक्टर प्रतिदिन करते हैं।

इसके बावजूद वे अपने मरीज की जान बचाने के लिए अंतिम क्षण तक जी-तोड़ प्रयास करते हैं। इस दौरान उन्हें अपने परिवारों का भी ध्यान नहीं रहता। ऐसी स्थिति में डॉक्टरों की मौत के सही आंकड़े नहीं देना एक प्रकार से चिंता का विषय है।

निजी क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टरों को कुछ नहीं मिलता

डॉ. शर्मा का कहना है कि सरकारी सेवा में लगे डॉक्टरों को जो थोड़ी बहुत क्षतिपूर्ति मिलती है वह जीवनबीमा कार्यवाही में फँसकर रह जाती है, जबकि निजी क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टरों को तो कुछ नहीं मिलता।

अब तो स्थिति यह हो चली है कि डॉक्टरों और अस्पतालों को कार्यस्थल पर हिंसा, कलंक और तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है। कई बार तो मृत्यु के समय भी सम्मानजनक व्यवहार नहीं होता। एक राष्ट्र में रूप में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कहीं भी डॉक्टरों के साथ अभद्र व्यवहार नहीं होना चाहिए।

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