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माउंटेन-डेः दुनिया में क्यों प्रसिध्द है भारत की पर्वत चोटियां, जानें रोचक तथ्य..

देहरादून (गौरव ममगाईं)। इंटरनेशनल माउंटेन-डे हर वर्ष 11 दिसंबर को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोग अपने जीवन में माउंटेन का महत्व समझ सकें। इस वर्ष इंटरनेशनल माउंटेन-डे की थीम ‘रिस्टोरिंग माउंटेन इकोसिस्टम ‘ रखी गई है। इस अवसर पर हम भारत के अनेक बड़ी पर्वत चोटियों के बारे में जानेंगे, जो खास विशेषताओं के कारण दुनिया में आकर्षण का केंद्र हैं।

माउंट एवरेस्ट से भी बाद में फतेह हुई थी कंचनजंघाः

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Kangchenjunga from Pelling, Sikkim


कंचनजंघा चोटी भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य सिक्किम में है। यह दुनिया की तीसरी व भारत की सबसे ऊंची चोटी है। इसकी ऊंचाई 8 हजार 586 मीटर है। इसका कुछ हिस्सा नेपाल में भी पड़ता है। कंचनजंघा की खास बात है कि इस चोटी पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के दो साल बाद चढ़ा जा सका। कंचनजंघा चोटी को फतेह करना सबसे खतरनाक था। आपको जानकर हैरानी होगी कि कंचनजंघा को फतेह करने का प्रयास करने वाली टीम के सदस्य जिंदा नहीं बच सके। इस कारण कंचनजंघा को फतेह करने से दुनिया के बड़े-बड़े पर्वतारोही संकोच करते थे। यही वजह रही कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8849 मीटर) को 1953 में फतेह किया गया, लेकिन कंचनजंघा को 1955 में फतेह किया जा सका।

विश्व धरोहर में शामिल है नंदा देवी चोटीः

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नंदा देवी चोटी उत्तराखंड के चमोली जिले में है। यह भारत की दूसरी सबसे ऊंची (पीओके में के-2 चोटी के अनुसार तीसरी) व उत्तराखंड की सबसे ऊंची चोटी है, जिसकी ऊंचाई 7817 मीटर है। विशुध्द रूप से इसे भारत की सबसे ऊंची चोटी माना जा सकता है, क्योंकि कंचनजंघा का कुछ हिस्सा नेपाल में है। खास बात है कि यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए खासा महत्वपूर्ण है। 1988 में नंदा देवी चोटी के क्षेत्र को नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के नाम से विश्व धरोहर घोषित किया गया। इस चोटी को पहली बार आरोहण 1936 में विदेशी पर्वतारोही नोयल ओडेल व बिल टिलमैन ने किया था।

कामेत पर्वत की बदौलत ही हुई थी ‘फूलों की घाटी’ की खोज:

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कामेत पर्वत को भारत का तीसरा सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता है। यह उत्तराखंड के चमोली जिले में है। इसकी ऊंचाई 7756 मीटर है। दरअसल, कामेत पर्वत के कारण ही फूलों की घाटी दुनिया के सामने आ पाई थी। 1931 में ब्रिटिश पर्वारोही फ्रैंक स्मिथ कामेत पर्वत को फतेह करने के बाद लौट रहे थे, इस दौरान उन्हें फूलों की घाटी दिखाई दी थी। इसके बाद स्मिथ ने फूलों की घाटी पर पुस्तक लिखी, जिसके माध्यम से दुनिया को फूलों की घाटी की सुंदरता का पता चला था। इसके बाद 2004 में फूलों की घाटी को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया था।

रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है साल्टोरो कांगड़ी:

saltoro peak


साल्टोरो कांगड़ी चोटी, काराकोरम की उप श्रृंख्ला है, जो काराकोरम की सबसे ऊंची चोटी है। यह दुनिया की सबसे लंबे ग्लेशियर सियाचीन ग्लेशियर के काफी करीब है। इस चोटी को भारतीय सेना के लिए सियाचीन की तरह ही रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

झील में प्रतिबिंब बनाती है चौखंबा चोटी:

chaukhamba peak


चौखंबा चोटी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में है। यह गंगोत्री पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है। इसकी ऊंचाई 7138 मीटर है। इस पर्वत को 1952 में फ्रांसीसी पर्वतारोही लुसिएन जॉर्ज व विक्टर रुसेनबर्ग ने फतेह किया था। इस चौखंबा पर्वत चोटी की खास बात है कि यह चमोली के तुंगनाथ व बेदनी बुग्याल, रुद्रप्रयाग के कार्तिक स्वामी मंदिर से बहुत सुंदर दिखाई देता है। वहीं, मदमहेश्वर के पास झील में चौखंबा चोटी का प्रतिबिंब भी बेहद सुंदर दिखता है।

माउंटेन दिखने में जितने सुंदर व ऊंचे होते हैं, उनका दिल भी उतना ही महान है। तभी तो इतना ऊंचा होकर भी माउंटेन को कभी घमंड नहीं हुआ और वो हमेशा मनुष्य को शुध्द वायु, खाद्य व जल प्रदान कर रहे हैं। मानव पर उनके अनेक रूपों में उपकार हैं, जिन्हें हम कभी चुका नहीं सकते।
माउंटेन को हम प्रकृति की सुंदरता के रूप में देख सकते हैं, यह मानव जीवन के आवश्यक स्रोत उपलब्ध कराती है। साथ ही पर्यटन, खनिज जैसे अनेक प्रकार से आर्थिकी का जरिया भी बनती हैं। हमें माउंटेन के संरक्षण में योगदान देने की जरूरत है।

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