अब तक आपने उत्तर प्रदेश के नोएडा के बारे में यह मिथक सुना होगा कि जो भी मुख्यमंत्री यहां आता है अपनी सीट गंवा देता है. उसी तरह एक मिथक मध्य प्रदेश की अशोकनगर विधानसभा सीट से भी जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि जो भी मुख्यमंत्री अब तक अशोक नगर आया वह अपनी कुर्सी गंवा चुका है. यही वजह है कि बड़े-बडे़ नेता यहां आने से डरते हैं.
पहला वाकया 1975 का है. एमपी में उस वक्त कांग्रेस की सरकार थी और प्रकाश चंद्र सेठी मुख्यमंत्री हुआ करते थे. इसी साल सेठी पार्टी के एक अधिवेशन में शामिल होने अशोक नगर आए थे और इसी साल 22 दिसंबर को उन्हें राजनीतिक कारणों से कुर्सी छोड़नी पड़ी.
दूसरा वाकया एमपी और छत्तीसगढ़ की सियासत के बड़े नाम रहे श्यामा चरण शुक्ला से जुड़ा है. साल 1977 में जब श्यामा चरण मुख्यमंत्री थे तब वो अशोकनगर के तुलसी सरोवर का लोकार्पण करने आए. इसके करीब दो साल बाद जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा, तो उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी.
मध्य प्रदेश की राजनीति के दिग्गज कहे जाने वाले अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्री से गवर्नर बनने की कहानी भी अशोकनगर से जोड़ कर देखी जाती रही है. 1985 में अर्जुन सिंह एमपी के मुख्यमंत्री थे. तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. उन्होंने भी अशोक नगर का दौरा किया. इसी बीच सियासी हालात ऐसे बन गए कि पार्टी ने अर्जुन सिंह को मध्य प्रदेश से पंजाब भेजने का फैसला किया और उन्हें पंजाब का गवर्नर बना दिया गया.
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के बारे में भी यह कहा जाता है कि अशोकनगर आने के बाद ही वो मुख्यमंत्री नहीं रहे. दरअसल, 1988 में रेलमंत्री रहे माधवराव सिंधिया के साथ मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा अशोक नगर के रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज का उद्घाटन करने पहुंचे थे. इसके कुछ वक्त बाद ही वोरा मुख्यमंत्री नहीं रहे थे.
1992 में मध्य प्रदेश के सीएम रहे सुंदरलाल पटवा जैन समाज के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने अशोक नगर गए थे. उनके कार्यकाल के दौरान ही अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया, जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया और पटवा को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी.
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सत्ता गंवाने का मिथक भी अशोक नगर से जोड़कर देखा जाता रहा है. दरअसल, 2001 में माधवराव सिंधिया के निधन के बाद खाली हुई लोकसभा सीट पर पार्टी ने उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को टिकट दिया. उस वक्त दिग्विजय उन्हीं का प्रचार करने अशोकनगर गए थे. सिंधिया तो उपचुनाव जीत गए, लेकिन 2003 में दिग्विजय ने सत्ता गंवा दी.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बारे में भी कहा जाता है कि वो हमेशा अशोकनगर जाना टालते रहे हैं. ऐसे कई बार वाकये आए जब शिवराज अशोकनगर नहीं गए. 24 अगस्त 2017 को उन्हें अशोक नगर कलेक्ट्रेट की नई इमारत के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया गया, लेकिन वह नहीं गए. यहां तक कि कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया कई मौकों पर शिवराज की खिंचाई कर चुके हैं कि मुख्यमंत्री होने के बावजूद वो अशोक नगर नहीं आए. हालांकि, 2018 की शुरुआत में जब अशोक नगर की एक विधानसभा सीट मुंगावली में उपचुनाव होना था, तब शिवराज मुंगावली गए थे.