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आज से दून में राष्ट्रीय आपदा सम्मेलन का शुभारंभ, जुटेंगे देश-विदेश के बड़े वैज्ञानिक

देहरादून (गौरव ममगाईं)। आज से उत्तराखंड के देहरादून में छठवां राष्ट्रीय आपदा सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है, 1 दिसंबर तक चलने वाले इस सम्मेलन में देश-विदेश के बड़े वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ जुटेंगे, यहां आपदा प्रबंधन के कारण एवं उपायों पर चर्चा होगी। खास बात यह है कि इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन भी मुख्य विषय होगा, क्योंकि आज दुनिया में जलवायु परिवर्तन ही अनेक आपदाओं का मुख्य कारण बन रहा है।  सम्मेलन में 2021 में स्कॉटलैंड में हुए ग्लास्गो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए भारत द्वारा तय किये लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश भी रहेगी। इस लिहाज से यह सम्मेलन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। आइये पहले जानते हैं छठवें राष्ट्रीय आपदा सम्मेलन का कार्यक्रम क्या होगा ?

  इस राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ देहरादून के ग्राफिकएरा यूनिवर्सिटी (डीम्ड) में 28 नवंबर यानी आज सुबह 10.30 बजे होगा, जिसमें पहले दिन 13 टेक्निकल सेशन होंगे। 4 दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन में कुल 40 टेक्निकल सत्र होंगे, जिसमें आपदा प्रबंधन व पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन से जुड़े देश व विदेश के बड़े वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे। कार्यक्रम में राज्यपाल डॉ. गुरमीत सिंह, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी व केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू भी शिरकत करेंगे।  बता दें कि इस राष्ट्रीय सम्मेलन के ब्रांड अम्बेसडर प्रसिध्द अभिनेता अमिताभ बच्चन को बनाया गया है।

आपदाओं का काराण बन रहा है जलवायु परिवर्तन

   दरअसल, भारत में 70 फीसदी से अधिक आपदाएं उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम, मेघालय जैसे हिमालयी राज्यों में ही आती हैं। इनमें भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ व हिमस्खलन जैसी आपदाएं प्रमुख हैं। इनके पीछे भौगोलिक विषमता तो मुख्य कारण है ही, दूसरा बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन भी है। क्योंकि इन राज्यों में बड़े ग्लेशियर, नदियां, बांध जैसे जल संसाधन अधिक मात्रा उपलब्ध हैं। जलवायु परिवर्तन भारत ही नहीं, दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहा है, जिससे तापमान में लगातार वृध्दि दर्ज की जा रही है। ऐसे में हिमालयी राज्यों में तापमान में परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं या टूटते हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बनता है। वहीं, मानसून परिवर्तन व बांध क्षतिग्रस्त के कारण भी बाढ़, बादल फटना, बिजली गिरना जैसे बड़ी आपदाएं आती हैं।

ग्लास्गो सम्मेलन’ क्या है, पीएम मोदी ने क्या लक्ष्य तय किये ?

पर्यावरण संरक्षण हेतु जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश हर साल एक वैश्विक सम्मेलन का आयोजन करते हैं, जिसमें सिर्फ जलवायु परिवर्तन को रोकने हेतु सर्वसम्मति से कई बड़े फैसले लिये जाते हैं। इस सम्मेलन को ‘कॉप’ (सीओपी) के नाम से जाना जाता है। इसी कड़ी में 2021 में स्कॉटलैंड में हुए कॉप-26 की बैठक में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस समेत अनेक बड़े देशों ने 2050 तक अपने देश को कार्बन शून्य करने की घोषणा की। इसी के तहत भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2070 तक भारत को कार्बन शून्य करने की घोषणा की थी इसके तहत 2035 तक भारत को कार्बन शून्य किया जाना है। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन के लिए कार्बन उत्सर्जन को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना है, जिसमें पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहन व मशीनों से निकलने वाली हानिकारक गैसें शामिल हैं। इसलिये आज सभी देश परंपरागत ईंधन (पेट्रोल, डीजल, कोयला व अन्य) के बजाय हरित ऊर्जा (पवन, तापीय एवं सौर ऊर्जा) जैसे विकल्पों को अपना रहे हैं।   

उत्तराखंड क्यों हैं संवेदनशील ?

  दरअसल, उत्तराखंड देश में आपदा से सर्वाधिक प्रभावित राज्य है। यह हिमालय की चार पर्वत श्रेणियों में फैला है। उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का ऊपरी कुछ हिस्सा ट्रांस हिमालय में है, जबकि अधिकांश भाग महान हिमालय (ग्रेट हिमालय) में है। जबकि, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, टिहरी का बागेश्वर व कई अन्य पर्वतीय जिलों का आंशिक हिस्सा मध्य हिमालय (लघु हिमालय) व देहरादून, नैनीताल, टिहरी का निचला हिस्सा, नैनीताल, हरिद्वार शिवालिक हिमालय में है। ट्रांस हिमालय व महान हिमालय पर्वत श्रेणी को टेथिस भ्रंश अलग करती है। इसी तरह महान हिमालय व मध्य हिमालय को मुख्य केंद्रीय भ्रंश (मेन सेंट्रल थ्रस्ट) और मध्य हिमालय व शिवालिक पर्वत श्रेणी को मुख्य सीमांत भ्रंश (मेन बाउंड्री थ्रस्ट) अलग करती है। भ्रंश को भूकंप की दृष्टि से अतिसंवेदनशील माना जाता है। वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, टिहरी बांध के नीचे मुख्य सीमांत भ्रंश गुजरती है, जो कि आपदा की दृष्टि से चिंता का विषय है।

 यही कारण है कि उत्तराखंड के 5 जिले (चमोली, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, बागेश्वर व चंपावत) कैटेगरी-5 (देश के सबसे ज्यादा आपदा के खतरे वाले जिले) में रखे गये हैं। बता दें कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने देश के सभी जिलों को आपदा के खतरे की दृष्टि से 5 कैटेगरी में बांटा है, जिसमें कैटेगरी-5 सबसे ज्यादा खतरे वाले जिले की कैटेगरी है। इसके अलावा वाडिया हिमालय एवं भूगर्भ शोध संस्थान के अध्ययन में भी उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों को आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माना गया है। एक अध्ययन के अनुसार, चमोली जिले में भूगर्भ का तापमान अन्य हिस्सों की तुलना मैं काफी अधिक है, जिससे भूकंप की आशंका बनी रहेगी।

      इस लिहाज से देखें तो कहा जा सकता है कि यहां राष्ट्रीय आयोजन होने से वैज्ञानिकों को पर्यावरण एवं आपदा की प्रवृत्ति व चुनौतियों को समझने, जानने का अवसर मिलेगा। साथ ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) के 17 लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक रोडमैप हासिल किया सकता है। वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इस राष्ट्रीय सम्मेलन का महत्त्व भली-भांति समझते हैं, इसलिए वे व्यस्तता के बावजूद इसे सफल बनाने के लिए दिन-रात जुटे हैं। जाहिर है कि इस राष्ट्रीय सम्मेलन में होने वाले चिंतन एवं मंथन से जो भी निष्कर्ष निकलेगा, उससे देश व उत्तराखंड को भी बड़ा लाभ होगा।

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