उत्तराखंड

अब नहीं रहेगा दून का ‘प्रिंस’, जिसके कारण देश में चर्चित हुआ ‘प्रिंस चौक’

देहरादून(गौरव ममगाईं) अब देहरादून का ‘प्रिंस’ नहीं रहेगा, जिसके कारण देहरादून के सबसे व्यस्ततम चौराहे को प्रिंस चौक के नाम से जाना जाता रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि 70 के दशक से ही प्रिंस चौक की देशभर में खास पहचान बन चुकी थी। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह प्रिंस है कौन ? तो चलिये अब हम इस पहेली से पर्दा उठा ही देते हैं और साथ में बतायेंगे आपको इससे जुड़ा दिलचस्प इतिहास..

दरअसल, राजधानी देहरादून का प्रिंस चौक के नाम से मशहूर चौराहा शहर के सबसे व्यस्ततम केंद्र माना जाता है। यहीं पर वर्ष 1964 में एक आधुनिक सुविधाओं का वाला होटल बना था, जिसका नाम था- प्रिंस होटल। इसी होटल के नाम पर इस चौराहे का नाम प्रिंस चौक पड़ा था। इस होटल को विरमानी परिवार ने बनाया था, जो शहर के नामचीन रईस थे। इस ऐतिहासिक होटल को विरमानी परिवार कई साल पहले बेच चुका है, कोविड काल के समय तक होटल का संचालन नियमित रूप से होता रहा है। इसके बाद होटल बंद है। इन दिनों इस होटल के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई चल रही है, कुछ समय बाद यह ऐतिहासिक धरोहर यादों में ही रह जायेगा

दून का आधुनिक सुविधाओं वाला पहला होटल था ‘प्रिंस’

जब देश आजाद हुआ तो उत्तर प्रदेश में शामिल देहरादून में उस समय कोई बड़ा होटल नहीं था। उस समय वर्ष 1964 में विरमानी परिवार ने यह होटल बनाया, जिसमें कई आधुनिक सुविधाएं दी गई। इसे स्वतंत्र भारत में देहरादून का पहला आधुनिक सुविधाओं वाला होटल माना जाता है। यहां बड़े-बड़े रईस लोग रूका करते थे।

प्रिंस होटल में गूंजा करती थी शादियों की शहनाई..

यह होटल करीब 1 बीघा जमीन में बनाया गया था, जो कई मंजिला इमारत थी। इस होटल में ही शहर के बड़े कार्यक्रम हुआ करते थे। तब शहर की बड़ी शादियों के आयोजन भी इसी होटल में किये जाते थे। उस समय स्वतंत्र भारत में देहरादून में यह पहला सबसे बड़ा होटल था, जिसमें वीवीआईपी, वीआईपी ठहरा करते थे।

देश में कैसे चर्चित हुआ प्रिंस चौक ?

दरअसल, प्रिंस चौक ऐसा मुख्य चौराहा है, जहां से रेलवे स्टेशन सबसे नजदीक है। गढ़वाल मंडल का बस स्टैंड भी प्रिंस चौक से काफी नजदीक है। इसी तरह कचहरी व अस्पताल भी सबसे नजदीक था। इसलिए जब भी कोई यात्री अन्य राज्य या प्रदेश के अन्य इलाकों से देहरादून आते थे तो उनके लिए प्रिंस चौक कॉमन प्वाइंट था, जहां वे किसी से मिल सकते थे। यह अपनी लोकेशन को दूसरे से साझा कर सकते थे। बाकी जगह इतनी प्रसिध्द नहीं हो सकी थी। इसलिए आम व्यक्ति हो या कोई रईस, प्रिंस चौक हर किसी की जुबां पर रहता था।

दरअसल, सरकार ने 1990 में इस चौक का नाम महाराज अग्रसेन के नाम पर भी रखा, लेकिन प्रिंस चौक ही प्रचलन में बना रहा। आज भले ही राजधानी के सौंदर्यीकरण के चलते यह ऐतिहासिक धरोहर हम सबके बीच नहीं रहेगी, लेकिन प्रिंस चौक नाम के रूप में इसकी यादें हमेशा ताजा रहेंगी।

Related Articles

Back to top button