नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा कथित दुर्व्यवहार के लिए भाजपा के 12 विधायकों को एक साल के लिए निलंबित करने के प्रस्ताव में हस्तक्षेप करने के लिए सहमति व्यक्त की। कहा कि निलंबन की यह अवधि वैध समय सीमा से परे है। इन विधायकों को 5 जुलाई, 2021 को एक प्रस्ताव में निलंबित कर दिया गया था।
जस्टिस एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि एक साल का निलंबन निष्कासन से भी बदतर है। क्योंकि, इस दौरान निर्वाचन क्षेत्र का कोई प्रतिनिधित्व नहीं हुआ। यदि निष्कासन होता है तो उक्त रिक्ति भरने के लिए एक तंत्र है। एक साल के लिए निलंबन, निर्वाचन क्षेत्र के लिए सजा के समान होगा। जब विधायक वहां नहीं हैं, तो कोई भी इन निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, निलंबन सदस्य को दंडित नहीं कर रहा है बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को दंडित कर रहा है।
विधानसभा को 60 दिनों से अधिक निलंबन का अधिकार नहीं
पीठ ने कहा, संबंधित नियमों के अनुसार, विधानसभा के पास किसी सदस्य को 60 दिनों से अधिक निलंबित करने का कोई अधिकार नहीं है। इस संबंध में पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 190 (4) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिनों की अवधि तक अनुपस्थित रहता है तो वह सीट खाली मानी जाएगी। पीठ ने कहा, संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, किसी निर्वाचन क्षेत्र को छह महीने से अधिक की अवधि तक बिना प्रतिनिधित्व के नहीं रखा जा सकता।
महाराष्ट्र का तर्क अस्वीकार
ऐसा कहते हुए पीठ ने महाराष्ट्र राज्य के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सीए सुंदरम के इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि कोर्ट विधानसभा द्वारा दिए गए दंड की अवधि की जांच नहीं कर सकता। यह कहते हुए पीठ ने मामले की सुनवाई 18 जनवरी के लिए स्थगित कर दी।