नई दिल्ली: करीब डेढ़ साल पहले हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एच.एस.जी.एम.सी.) अस्तित्व में आने के बाद इसका असर इन लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिल रहा है। सियासी जानकारों का कहना है कि हरियाणा की 10 में से 4 सीटों पर सिख वोटर अहम भूमिका निभा सकते हैं। इन सीटों में अंबाला, करनाल, कुरूक्षेत्र और सिरसा शामिल हैं। इन संसदीय सीटों में सिख मतदाताओं की संख्या 20 फीसदी है।
किसान संगठनों और भाजपा के साथ जुड़े हैं सिख मतदाता
एच.एस.जी.एम.सी. 2014 में कांग्रेस के कार्यकाल में अस्तित्व में आ गई थी, लेकिन मामला अदालत में विचाराधीन होने से डेढ़ साल पहले एच.एस.जी.एम.सी. अधिनियम को अंतिम रूप दिया गया है। इस साल 31 जुलाई तक इसके निकाय के चुनाव होने हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तदर्थ एच.एस.जी.एम.सी. सदस्यों को बड़े पैमाने पर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार द्वारा नामित किया गया था। पिछले एक साल में निकाय में बहुत सारे फेरबदल हुए थे, इसका असर सिख मतदाताओं पर पड़ रहा है। सिख मतदाता वर्तमान में या तो भाजपा या सरकार समर्थक हैं या फिर इनमें किसान समर्थक ग्रामीण सिख मतदाता शामिल हैं। रिपोर्ट कहती है कि सिखों की शहरों में रहने वाली बड़ी आबादी भाजपा या सरकार समर्थक है, जबकि ग्रामीण आबादी किसान संगठनों से जुड़ी हुई है।
मतदान पैटर्न पर असर पड़ने की संभावना
जानकारों का कहना है कि सरकार द्वारा स्थापित की गई एच.एस.जी.एम.सी. समुदाय के लोगों के अनुरूप परिणाम देने में असफल रही है, इस कारण लोगों की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। रिपोर्ट में एच.एस.जी.एम.सी. के एक वरिष्ठ सदस्य और पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के करीबी के हवाले से कहा गया हे कि संस्था के गठन से जुड़े विवादों का सिखों के बीच मतदान पैटर्न पर असर पड़ने की संभावना है। उधर पूर्व पदाधिकारी और तदर्थ एच.एस.जी.एम.सी. के सदस्य जगदीश सिंह झींडा और समान विचारधारा वाले सदस्यों ने भाजपा के अलावा उन राजनीतिक दलों को समर्थन देने की घोषणा की है जिन्होंने किसानों के साथ-साथ सिख मुद्दों के लिए काम किया है।