दस्तक-विशेष

हिंदी साहित्य के सबसे निराले व्यक्तित्व ” सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की जयंती विशेष

नई दिल्ली (दस्तक विशेष) : हिंदी साहित्य में शायद ही ऐसा कोई हो जो सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के नाम को न जानता हो। राम की शक्ति पूजा और तुलसीदास जैसी उनकी कालजयी कविताएं साहित्य प्रेमियों की जबान पर हैं। निराला जी का जन्म बंगाल में मेदिनीपुर जिले के महिषादल गांव में हुआ था । उनका पितृग्राम उत्तर प्रदेश गढ़कोला, उन्नाव है। उनके बचपन का नाम सूर्य कुमार था । बहुत छोटी आयु में उनकी मां का निधन हो गया था। निराला जी की विधिवत स्कूली शिक्षा नवी कक्षा तक हुई थी ।

अपनी पत्नी की प्रेरणा से निराला की साहित्य और संगीत में रुचि पैदा हुई थी। वर्ष 1918 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया और उसके बाद पिता , चाचा, चचेरे भाई एक-एक सब चल बसे। अंत में पुत्री सरोज की मृत्यु ने निराला को भीतर तक झकझोर दिया। अपने जीवन में निराला ने मृत्यु का जैसा साक्षात्कार किया उसकी अभिव्यक्ति उनकी कई कविताओं में दिखाई देती है।

सन 1916 में उन्होंने प्रसिद्ध कविता जूही की कली लिखी जिससे बाद में उनको बहुत प्रसिद्धि मिली और वे मुक्त छंद के प्रवर्तक माने गए। निराला सन 1922 में रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित पत्रिका समन्वय के संपादन से जुड़े। सन 1923 – 24 में मतवाला के संपादक मंडल में शामिल हुए । लेकिन निराला जी जीवन भर पारिवारिक और आर्थिक कष्टों से जूझते रहे। अपने स्वाभिमानी स्वभाव के कारण निराला कहीं टिक कर काम नहीं कर पाए । अंत में इलाहाबाद आकर रहे और वहीं उनका देहांत भी हुआ।

उनकी प्रमुख काव्य कृतियों में शामिल हैं: परिमल, गीतिका, अनामिका, कुकुरमुत्ता, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना, गीतगुंज। उन्होंने उपन्यास भी लिखा जिसमें मुख्य था बिल्लेसुर बकरिहा।

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