बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, सरकारों की मनमानी पर लगी लगाम, गाइडलाइंस जारी
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नई दिल्ली: एक बड़ी खबर के अनुसार बुलडोजर एक्शन पर आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी का घर सिर्फ इस ही आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है। इस तरह आज सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर अब से रोक लगा दी है। वहीं सर्वोच्च अदालत का ये आदेश किसी एक राज्य के लिए सीमीत न होकर नहीं, पूरे देश के लिए मानीत है। आज जस्टिस बी। आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया है।
इस बाबत फैसला देते हुए कोर्ट ने कहा है कि, किसी का घर सिर्फ इस आधार पर ही नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है। इसलिए हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा है कि मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जरुर जारी किए जा सकते हैं।
वहीं आज कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार मुख्य कार्यों को करने में न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकता है। अगर राज्य इसे ध्वस्त साफ है कि प्राधिकारों ने कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन किया है। जानकारी दें कि, बीते 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नागरिकों की आवाज को उनकी संपत्ति नष्ट करने की धमकी देकर नहीं दबाया जा सकता और कानून के शासन में ‘‘बुलडोजर न्याय” पूरी तरह अस्वीकार्य है। तब तत्कालिन प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा था कि बुलडोजर के जरिए न्याय करना किसी भी सभ्य न्याय व्यवस्था का हिस्सा नहीं हो सकता। बेंच ने कहा था कि राज्य को अवैध अतिक्रमणों या गैरकानूनी रूप से निर्मित संरचनाओं को हटाने के लिए कार्रवाई करने से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।
जानकारी दें कि, सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक मकान को ध्वस्त करने से संबंधित मामले में 6 नवंबर को अपना फैसला सुनाया था। वहीं इस बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार को अंतरिम उपाय के तौर पर याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था। बता दें कि इस मामले में याचिकाकर्ता का मकान एक सड़क परियोजना के लिए ढहा दिया गया था।