पहले 84 घंटे की सरकार, अब सीएम पद न्यौछावर; महाराष्ट्र के राजनीतिक चक्रव्यूह में तीसरी बार फंसी बीजेपी
नागपुर. गुरुवार की रात महाराष्ट्र की राजनीति में एक व्यक्ति ऐसा होगा जो चैन की नींद सोया होगा। वह हैं शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे। इसलिए नहीं कि वे सीएम पद से दूर हो गये बल्कि इसलिए कि बीजेपी का मुख्यमंत्री फिर नहीं बन पाया। बागी ही सही लेकिन एकनाथ शिंदे के रूप में एक शिवसैनिक के सीएम बन जाने के बाद एक बार फिर से यह सिद्ध हो गया कि भारत भर में अपनी कूटनीतिक चालों से बड़ी-बड़ी मजबूत सरकार को उखाड़ फेंकने वाले बीजेपी के दिल्ली के चाणक्य महाराष्ट्र के मामले में तीसरी बार फेल हो गये हैं।
इस बार हुई ज्यादा छीछालेदर
सनद रहे कि 2014 में शिवसेना से विस चुनाव के ठीक पहले युति तोड़कर बीजेपी ने बाजी मारी थी। उस समय भी उसके पास पर्याप्त नंबर नहीं आये थे और कुछ समय बाद शिवसेना को सरकार में शामिल करना पड़ा था। बीजेपी ने बेमन से ही सही लेकिन 2019 में शिवसेना के साथ युति करके पहले लोकसभा और बाद में विधानसभा का चुनाव लड़ा था। लोकसभा में शिवसेना को फायदा हुआ और विधानसभा में बीजेपी को नुकसान। पार्टी को मात्र 106 सीटों पर संतोष करना पड़ा और शिवसेना ने 2014 की तुलना में 7 सीटें कम लेकर अपना स्कोर 55 पर रखा। हालत यह हुई कि विस परिणामों के बाद ढाई-ढाई वर्ष का सीएम रहेगा इस समझौते की याद दिलाकर शिवसेना ने बीजेपी की नींद उड़ा दी। बहुत दिनों तक शिवसेना का इंतजार करने के बाद दिल्ली के बीजेपी नेताओं ने एक गेम कर डाला।
23 नवंबर 2019 को महाराष्ट्र में एक भूचाल तब आया जब तड़के मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री के रूप में अजीत पवार ने शपथ ली थी। देश भर में सुर्खियां बटोरने वाली यह शपथविधि मुश्किल से 84 घंटे ही चल सकी और फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा। मतलब, यह पहला मौका था जब बीजेपी के रणनीतिकार विफल हुए और पार्टी की किरकिरी भी खूब हुई। यह वह दौर था जब बीजेपी के नेतागण शिवसेना को हल्के में ले रहे थे। शरद पवार ने मौके को ताड़ा और महाविकास आघाड़ी बनाकर उद्धव ठाकरे को ही मुख्यमंत्री बना डाला। जिससे शिवसेना जो चाहती थी कि युति में उसे ढाई साल का पहला कार्यकाल मिले वह उद्धव ने पूरा कर लिया। बीजेपी दूसरी बार मन मसोस कर रह गई।
कौन है देवेन्द्र का दुश्मन
पार्टी कैडर अब यह सवाल उठाने लगा है कि देवेंद्र फडणवीस का दुश्मन कौन है। कांग्रेस-राकां और शिवसेना के नेता तो जग-जाहिर दुश्मन हैं ही, लेकिन क्या बीजेपी में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो उनको बड़े होता नहीं देखना चाहते हैं। जानकारों का दावा है कि बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व चाहता तो 2019 में ही शिवसेना के साथ सरकार बन जाती। आखिर शिवसेना को किसी तरह मनाया जा सकता था। लेकिन उस समय भी ऐसा नहीं हुआ। उसी तरह अजीत पवार वाले एपिसोड में भी केन्द्रीय नेतृत्व ने उतनी रुचि नहीं दिखाई जितनी जरूरी थी। इस बार तो अजूबा ही हो गया। आपरेशन लोटस के तहत कई महीनों से पार्टी काम पर लगी थी। उद्धव सरकार गिराने के लिए शिवसेना में इतनी बड़ी बगावत करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद के साथ-साथ पार्टी नेताओं ने अपनी साख भी लगा दी थी।
खुद फडणवीस ने सुनिश्चित किया कि राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में इसकी पृष्ठभूमि तैयार की जाए। यहां तक कि बागियों को पहले गुजरात और फिर असम भेजने में धन-बल लगता रहा। लेकिन जब सरकार बनाने की बारी आई तब पूरी फिल्म से फडणवीस ही कैसे गायब हो गये। वो भी एकदम आखिरी सीन में। वरिष्ठ नेता सिर्फ यहीं नहीं रुके। एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है यह घोषणा भी फडणवीस के द्वारा ही कराई। हालत यह है कि महाराष्ट्र ही नहीं पूरे भारत में बीजेपी कैडर इस बात के इंतजार में था कि फडणवीस जल्द ही मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, लेकिन सभी के अरमानों पर पानी फेर दिया गया।
बीजेपी को क्या मिला, इसका जवाब किसी के पास नहीं
एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी को क्या मिला, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। इसके उलट देवेन्द्र फडणवीस की नाराजगी ने देश भर के कैडर को सकते में डाल दिया। 2014 के बाद पहली बार नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा को अपने किसी युवा नेता को मनाना (आदेशित) करना पड़ा कि वे अमुक सरकार में शामिल हो जाएं। इतना बड़ा बवंडर करके बीजेपी को आखिर क्या मिला, उसका कैडर अब यह जवाब मांग रहा है। जब तक इसका जवाब नहीं मिल जाता, तब तक कैडर को फिर से एक्टिव करने में पार्टी को पसीना छूट जाएगा।
क्या पूरे कार्यकाल तक सीएम रहेंगे शिंदे
कैडर यह सवाल कर रहा है कि क्या एकनाथ शिंदे बचे हुए बचे हुए 29 महीने के कार्यकाल तक मुख्यमंत्री रहेंगे। यदि शिवसैनिक को ही मुख्यमंत्री पद से हटाकर फिर से शिवसैनिक को ही मुख्यमंत्री बनाना था तो इतना खटाटोप करने की जरूरत ही क्या थी। वैसे शिंदे का कार्यकाल कितना रहेगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है।