भाजपा की दलित बाधा
उत्तर प्रदेश में सत्ता पाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रही भारतीय जनता पार्टी के नवनियुक्त उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती के खिलाफ ऐसे घृणित शब्द बोले जिससे भाजपा की दलित और स्त्रीविरोधी मानसिकता एक बार फिर सामने आ गयी। इसका परिणाम यह हुआ कि सत्ता के लिए आक्रामक दिख रही भाजपा अपने एक नेता की गलती के कारण बैकफुट पर आ गयी है, वहीं इस घटना से बहुजन समाज पार्टी को चुनाव से पहले अपने वोट बैंक को एकजुट करने का सुनहरा अवसर मिल गया है। मायावती और उनकी पार्टी के नेता इस मुद्दे को गरमाने के लिए मण्डल स्तर पर रैली करने जा रहे हैं। अगर चुनाव तक यह मुद्दा जिंदा रहता है, तो बसपा को इसका लाभ मिलना तय है। दूसरी ओर, भाजपा को इससे इतना बड़ा नुकसान होने की संभावना है कि शायद पार्टी उसकी भरपायी न कर पाये। दूसरी तरफ, गुजरात में मरी हुई गायों की खाल उतारने वाले कुछ दलित युवकों की दर्दनाक पिटाई की खबर आने के बाद से गुजरात में आक्रोशित दलित सड़कों पर उतर आये हैं। यह घटना इतनी दर्दनाक और अंदर तक हिला देने वाली है कि इसके विरोध में गुजरात के कुछ युवकों ने जहर खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की। इस घटना को लेकर संसद के दोनों सदनों में लगभग हर पार्टी ने भाजपा की निंदा ही। हालत यह थी कि भाजपा नेता इसका कोई तार्किक उत्तर नही दे पाये। भाजपा विपक्ष के निशाने पर है।
भाजपा उपाध्यक्ष बने दयाशंकर सिंह ने अपने स्वागत समारोह में बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए जिस तरह के अपमानजनक शब्द कहे, उस पर देश भर में जो तीखी प्रतिक्रिया हुई, उसको देखते हुए भाजपा के पास दयाशंकर को तत्काल पार्टी से निकालने के अलावा कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा था। दरअसल भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने अपनी नयी कार्यकारिणी में दयाशंकर सिंह को उपाध्यक्ष बनाया था। मऊ में इसी को लेकर उनके समर्थकों ने स्वागत करने के लिए एक समारोह आयोजित किया था। उसमें दयाशंकर ने बसपा सुप्रीमो मायावती के खिलाफ पैसा लेकर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए उनकी तुलना वेश्या से कर दी। आज के सभ्य समाज में ऐसी भाषा की कोई उम्मीद ही नहीं करता। इसलिए इस पर देश भर में राजनीतिक तूफान आना ही था। किसी दलित स्त्री के खिलाफ इस तरह की टिप्पणी यह बताती है कि हमारे समाज का अगुवा वर्ग आज भी दलितों के प्रति किस तरह की मानसिकता रखता है। मायावती कोई साधारण स्त्री नही हैं। उन्होंने दलित समाज के स्वाभिमान के लिए लम्बा संघर्ष किया है। वे करोड़ों दलितों की आवाज हैं। इसके अलावा वे चार बार देश के सबसे बड़े प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं और एक राष्ट्र स्तरीय पार्टी की मुखिया हैं। इसके बावजूद जब उनके खिलाफ एक नेता इस तरह की भाषा का प्रयोग करता है तो साधारण दलित के प्रति उसका क्या नजरिया होगा, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इस घटना को उसी दिन मायावती ने राज्यसभा में उठाया और दयाशंकर को पार्टी से निकालने और उसकी गिरफ्तारी की मांग की। कई दलों के नेताओं ने इस घटना को शर्मनाक बताते हुए इसकी कड़े शब्दों में निंदा की। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने घटना की जानकारी होते ही तत्काल दयाशंकर सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिये। इसके बाद पुलिस ने दयाशंकर की गिरफ्तारी के लिए लखनऊ व बलिया में उनके कई ठिकानों पर दबिश दी, मगर वह नहीं मिले। भाजपा नेता इस पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे। मगर उसी दिन दयाशंकर सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया। इस घटना की खबर फैलते ही प्रदेश के बसपा कार्यकर्ता भारी गुस्से से भर उठे।
अगले दिन बसपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के नेतृत्व में हजारों बसपा कार्यकर्ताओं ने लखनऊ के हजरतगंज में भारी प्रदर्शन किया और दयाशंकर सिंह के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी की मांग की। लेकिन इस प्रदर्शन के दौरान बसपा कार्यकर्ता अनुशासन में नहीं थे। उन्होंने भी अशोभनीय नारेबाजी की। इसमें दयाशंकर सिंह की पत्नी, बेटी और मां के लिए गंदी टिप्पणियां शामिल हैं। गाली के जवाब में अगर कोई गाली देता है, तो उसे किसी भी तर्क से सही नहीं ठहराया जा सकता। शायद मायावती को अपने कार्यकर्ताओं से ऐसी उम्मीद नहीं थी। इसलिए बाद में उनका लहजा बदल गया। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं का बचाव करते हुए इसे अपने खिलाफ की गयी टिप्पणी को लेकर उपजे गुस्से की स्वाभाविक परिणति बताया। लेकिन बसपा कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया से दयाशंकर सिंह का परिवार डर गया। उनकी कक्षा सात में पढ़ने वाली बेटी भारी सदमे में आ गयी। उसके स्कूल में न्यूज रीडिंग के दौरान उसके पिता का नाम आने पर उसे भारी सदमा लगा और भयभीत बच्ची घर आ गयी। बसपा कार्यकर्ताओं के गुस्से और उनके प्रदर्शन के दौरान की गयी टिप्पणियों ने परिवार को भयभीत कर दिया। इसके बाद दयाशंकर की पत्नी स्वाति सिंह ने इस मामले को लेकर नसीमुद्दीन सिद्दीकी और अन्य बसपा नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज कराया। उन्होंने अपने परिवार की सुरक्षा की भी मांग की। प्रशासन ने तत्काल उन्हें सुरक्षा मुहैया करायी। दयाशंकर सिंह इस घटना के बाद से भूमिगत हो गये उसी दिन अदालत ने दयाशंकर सिंह के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया और 27 जुलाई को बक्सर-बिहार से गिरफ्तार कर लिये गये। लेकिन बसपा नेताओं की हरकत ने भाजपा को भी मैदान में उतरने का अवसर दे दिया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि दयाशंकर सिंह ने गलती की, तो उन्हें हमने पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद कानून अपना काम करेगा। लेकिन उनके परिवार को इसकी सजा नहीं देने देंगे। उन्होंने कहा कि उनका परिवार बुरी तरह भयग्रस्त है। यहां तक कि दयाशंकर की बारह साल की बेटी बुरी तरह डरी हुई है। उन्होंने घोषणा कि उस परिवार की लड़ाई अब पार्टी लड़ेगी। उन्होंने इसके लिए एक नारा भी दिया, ‘बेटी के सम्मान में, भाजपा मैदान में’। इस नारे के साथ भाजपा कार्यकर्ता प्रदेश भर में इस मुद्दे को जनता के बीच ले जायेंगे। उधर, क्षत्रिय महासभा भी इस विवाद में कूद पड़ी है। इस संगठन ने इसके विरोध में राजधानी में धरना दिया।
उधर, बसपा सुप्रीमो मायावती ने 24 जुलाई को लखनऊ में पार्टी नेताओं की बैठक ली और पूरे मामले पर विचार किया। बाद में उन्होंने पत्रकारों से कहा कि पार्टी इस मुद्दे पर अब और समय बर्बाद नहीं करना चाहती। उन्होंने 21 अगस्त को प्रदेश भर में मंडल स्तर पर बड़ी रैलियां करने की घोषणा की। उन्होंने इनको सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ रैली नाम दिया है। लेकिन ये रैलियां दलित उत्पीड़न के खिलाफ न होकर सर्वसमाज के न्याय व सम्मान को लेकर होंगी। उन्होंने पत्रकारों से कहा भी कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुझे सार्वजनिक रूप से बुआ कहते हैं। अगर वे मुझे अपने पिता की बहन और अपनी बुआ मानते हैं तो उन्हें अपनी बुआ के मान-सम्मान का ध्यान रखते हुए दयाशंकर को गिरफ्तार कर उसको सजा दिलानी चाहिए। सही बात तो यह है कि मायावती अब अपनी रैलियों के जरिये अपने हर समर्थक तक इस बदजुबानी के मामले को ले जायेंगी और अपने चुनाव अभियान को धार देंगी। लेकिन वे इस बात का जरूर ध्यान रखेंगी कि उनका अन्य जातियों का वोटर भाजपा की तरफ न चला जाय। लेकिन इतना जरूर हुआ है कि बसपा के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और आरके चौधरी के पार्टी छोड़ने से बसपा को जो नुकसान हुआ था और उसके बाद जिस तरह मायावती बेहद असहज महसूस कर रही थी, इस घटना ने पार्टी को उस असहजता से उबार दिया है। बसपा नेताओं के चेहरों पर चमक लौट आयी है और उनका कार्यकर्ता भी पार्टी के साथ मजबूती से खड़ा हो गया है।
इस बदजुबानी की घटना का अगले विधानसभा चुनाव पर असर पड़ना भी तय है। भाजपा ने इस साल की शुरुआत से ही दलितों को पार्टी से जोड़ने का अभियान चलाया था। पहले तो आगरा के सांसद रामशंकर कठेरिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बात की जा रही थी, ताकि दलित भाजपा से जुड़ सकें। मगर बाद में पिछड़े वर्ग के मौर्य को बागडोर सौंपी गयी। लेकिन इसके बाद भी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दलितों के बीच पैठ बनाने में जुटे हुए थे। इस घटना से दलितों को अपनी पार्टी से जोड़ने के अभियान को जबरदस्त धक्का लगा है। अब शायद आरएसएस अपने सहभोज कार्यक्रम बंद कर दे। लेकिन इस घटना ने उस अभियान की हवा निकाल दी। पार्टी को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा
बसपा और भाजपा को इसके चलते जो भी नफा-नुकसान से अलग एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि राजनीति में शुचिता और नैतिकता की दुहाई देने वाले इस तरह की निम्न स्तरीय भाषा कब तक बोलेंगे? बसपा कार्यकर्ताओं के हाथों में जो तख्तियां थीं, उन पर लिखे शब्दों को कौन सही ठहरायेगा? बसपा की एक महिला विधायक नेदयाशंकर की बारह साल की बेटी के खिलाफ जो कुछ कहा, वो क्या एक महिला विधायक को शोभा देता है? आखिर राजनीति में गिरावट का सिलसिला कब तक जारी रहेगा।
राजनीतिक दल अपनी खुद कोई आचार संहिता क्यों नहीं बनाते? कभी आचरण और भाषा को लेकर कोई भी अपने कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण शिविर कब लगायेंगे। राजनेता समाज का आदर्श होते हैं। युवा वर्ग उन्हें देख कर उन जैसा बनने का सपना देखता है। लेकिन नेताओं का स्तर जब इतना गिरा हो कि वे किसी स्त्री को सम्मान तक न दे सके तो फिर उनका अनुकरण करने वाला कैसा बनेगा, यह विचारणीय प्रश्न है। देश की संसद से लेकर अनेक विधानसभाओं में भी मारने-पीटने से लेकर गाली-गलौज की घटनाएं होती रही हैं। बेहतर को कि कभी संसद का एक सत्र माननीयों का आचरण कैसा हो, इसको लेकर बुलाया जाय।
स्वाति ने लौटाया भाजपा का साहस
दयाशंकर सिंह प्रकरण में चर्चा में आयीं उनकी पत्नी स्वाति सिंह को भारतीय जनता पार्टी चुनाव में उतार सकती है। दरअसल बदजुबानी के इस मामले में जब बहुजन समाज पार्टी का तीखा विरोध सामने आया तो दयाशंकर तो भूमिगत हो गये, मगर उनकी पत्नी ने जिस साहस का परिचय दिया, उससे लोगों में उनके प्रति सहानुभूति पैदा हुई। स्वाति ने पहले ही दिन कहा कि उनके पति ने यदि अपराध किया है, तो उसकी सजा उन्हें कानून देगा, मगर हमें किस बात की सजा दी जा रही है। उनका परिवार भयभीत है। उन्होंने बसपा नेताओं द्वारा उनके उनकी बेटी, ननद और सास के लिए कहे गये अपशब्दों के लिए बसपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की मायावती से भी मांग की। इसके बाद भाजपा ने तत्काल इस मामले को लपका और इसे बेटी के सम्मान से जोड़ते हुए जनता के बीच इस मामले को ले जाने की बात कही। सही बात तो यह है कि स्वाति की पहल ने दयाशंकर की टिप्पणी के बाद बैकफुट पर आ गयी भाजपा का साहस लौटा दिया। यह बेहद महत्वपूर्ण बात है। इसलिए संभावना है कि भाजपा स्वाति को चुनाव तो लड़ायेगी ही, नारी सम्मान को मुद्दा बनाकर उन्हें प्रचार में भी उतार सकती है।