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नंदन नीलेकणि ने करदाताओं के हित में सरकारी बैंकों के निजीकरण पर दिया जोर

नई दिल्ली । इंफोसिस के चेयरमैन और यूनीक आईडी प्रोजक्ट (आधार कार्ड) के प्रमुख रह चुके नंदन नीलेकणि ने कहा कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मूल तर्क का अस्तित्व अब समाप्त हो चुका है। उन्होंने करदाताओं का हवाला देते हुए कहा कि निजीकरण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आगे बढ़ाने का तरीका है।

कांग्रेस की सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले नंदन नीलेकणि ने बताया कि पांच दशक पहले बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ क्योंकि वे बड़े उद्योगों पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे थे और छोटे उद्योगों को नजरअंदाज कर रहे थे।

एक तकनीकी विशेषज्ञ ने बताया कि बड़ी कंपनियों को उधार देने के कारण 21 सरकारी बैंकों को नुकसान हुआ था। प्रौद्योगिकी आधारित समाधानों का परिचय भी छोटे उधारकर्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा करना संभव बनाता है, जिनकी राष्ट्रीयकरण के दौर में उपेक्षा की जा रही थी।

उन्होंने कहा, “अब हम मूल तर्क दूर चले गए हैं और इसलिए अधिकांश बैंक आम जनता के स्वामित्व वाले बाजार सिद्धांतों पर कार्य करते हैं। हमें निजीकरण करना चाहिए, हमारे पास कई विकल्प हैं।

” उन्होंने कहा, “अगले 6 से 9 महीनों के भीतर क्यूआर कोड आधारित पेमेंट सिस्टम में तेजी देखने को मिलेगी। आने वाले दिनों में लोग पान की दुकानों से भी भुगतान करने में सक्षम होंगे।” गौरतलब है कि पीएनबी स्कैम के बाद सरकारी बैंकोंं के निजीकरण की मांग तेज हो गई है।

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