दस्तक-विशेष

मुख्यमंत्री ही हैं जीत के शिल्पकार

सुधीर जोशी
मुंबई महानगरपालिका समेत अन्य 9 महानगरपालिकाओं में भाजपा को मिली भारी सफलता का शिल्पकार मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बताया जा रहा है। भाजपा ने अप्रत्याशित तरीके से उन क्षेत्रों में भी भारी जीत प्राप्त की है, वहां भाजपा का जनाधार बहुत कम था। मुख्यमंत्री ने मुंबई समेत राज्य के अन्य क्षेत्रों में कई जगह सभाएं कीं तथा पारदर्शी प्रशासन देने का मतदाताओं से वायदा भी किया। मुंबई, ठाणे को छोड़कर पुणे, पिंपरी चिंचवड, नागपुर, उल्हासनगर, आकोला, अमरावती, सोलापुर, नासिक में शिवसेना समेत अन्य दलों को पछाड़ा है, उससे यह साबित हो गया है कि मुख्यमंत्री के प्रति राज्य की जनता ने विश्वास व्यक्त किया है। मुंबई मनपा में गत चुनाव के मुकाबले 50 सीटें ज्यादा जीतकर भाजपा ने यह बता दिया कि मुंबई मनपा में भी अब उसकी ताकत शिवसेना की बराबरी पर आ गई है। मुंबई मनपा में महापौर की कुर्सी का सपना पाले शिवसेना मनपा की चुनावी जंग में उतरी थी लेकिन शिवसेना बहुमत से काफी दूर रह गई है। किसी को भी बहुमत न मिलने की स्थिति में कोई भी दल अपने बूते पर मुंबई मनपा पर अपनी सत्ता स्थापित नहीं कर पाएगा। राजनीतिक जानकारों का दावा है कि भाजपा ने शिवसेना का वजूद ही खत्म करने की तैयारी कर रखी थी इसीलिए शिवसेना ने भाजपा के साथ किसी भी तरह की राजनीतिक मित्रता न रखने का ऐलान किया था। भाजपा को मिली इस ऐतिहासिक जीत के कारण मुख्यमंत्री की ताकत और ज्यादा बढ़ गई है। भाजपा ने न केवल शिवसेना बल्कि अन्य सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रदर्शन को देखने के बाद इस बात को पूरे दावे के साथ यह कहना है कि भाजपा ही सर्वश्रेष्ठ है। कांग्रेस, राकांपा तथा मनसे को उसके प्रभाव वाले क्षेत्रों में पराजित करना आसान काम नहीं है।
सन् 2012 के चुनाव में भाजपा का स्थान चौथे स्थान पर था, जो अब पहले क्रमांक पर आ गया है। राज्य में तीन माह पहले नगरपालिका के चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन बहुत अच्छा था। मुख्यमंत्री ने उस समय भी राज्य के हर क्षेत्र का दौरा किया था। मुंबई मनपा समेत अन्य महानगरपालिकाओं के परिणाम एक तरह से मुख्यमंत्री के ढाई साल के कामकाज का लेखा जोखा ही माना जाएगा। 2012 में नागपुर भाजपा को छोड़कर किसी भी मनपा पर भाजपा का अधिकार नहीं था। नागपुर का गढ़ कायम रखते हुए पुणे, पिंपरी चिंचवड, सोलापुर, नासिक, अमरावती, उल्हासगर, अकोला सभी महानगरपालिका में भाजपा का परचम मुख्यमंत्री के प्रयासों के कारण ही लहरा पाया है। मुंबई में जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा के साथ गठबंधन न करने का ऐलान किया, तो इससे मुख्यमंत्री बहुत दुखी हुए, उन्होंने अपनी तरफ से अंतिम समय तक यह कोशिश की कि वह शिवसेना को साथ में लेकर चले, लेकिन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मन में कुछ और ही चल रहा था और जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने किसी की बात न सुनते हुए मुंबई मनपा समेत अन्य सभी मनपाओं के चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन न करने का फैसला किया तो यह लगने लगा था कि इस बार किसी भी पार्टी के लिए बहुमत साबित करना संभव नहीं हो पाएगा। मुंबई मनपा में स्पष्ट बहुमत के लिए जरूरी 114 सीटों का आंकड़ा किसी भी पार्टी के लिए संभव नहीं हो पाया। यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि मुंबई मनपा पर 20 साल से भी ज्यादा समय से राज कर रही शिवसेना को इस बात का सदा दंभ रहा है कि कोई मुंबई मनपा में शिवसेना को टक्कर ही नहीं दे सकता, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ, भाजपा ने अकेले लड़कर 82 सीटें जीतकर शिवसेना को यह बता दिया कि भाजपा की ताकत भी कम नहीं है। उद्धव ठाकरे ने मुंबई में ज्यादा समय दिया और भाजपा को भला-बुरा कहने में ही ज्यादा समय गंवाया जबकि मुख्यमंत्री ने मुंबई के साथ साथ अन्य महानगर पालिकाओं की ओर भी ध्यान दिया, शायद इसी कारण भाजपा को शिवसेना के मुकाबले ज्यादा सफलता मिली। अपने गृहनगर नागपुर में तो मुख्यमंत्री की जीत को तो तय माना ही जा रहा था लेकिन पुणे, पिपरी चिंचवड, नासिक, सोलापुर, अमरावती में भाजपा ने जिस तरह की सफलता अर्जित की, उससे यह साफ हो गया कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के प्रति राज्य की जनता ने एक बार फिर विश्वास जताया है।
नोट बंदी के दौर में हुए नगरपालिका, पंचायत समिति तथा जिला परिषद के चुनाव में जब भाजपा को भारी सफलता मिली थी, उस वक्त कहा गया था कि चूंकि जनता अभी नोटबंदी से होने वाली परेशानी को अच्छी तरह से समझ नहीं पायी है, इसलिए मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया है, लेकिन जब 23 फरवरी को मनपा चुनाव की मतगणना के बाद भाजपा नंबर वन पर आयी तो आलोचकों ने जितने मुंह उनती बात की। किसी ने यह कहा कि भाजपा ने वोट के लिए पैसों का वितरण किया है तो किसी ने यह कहा कि भाजपा ने धांधली करवाकर जीत दर्ज की है। सबसे आश्चर्यजनक जीत पुणे, पिपरी चिंचवड तथा नासिक में मानी जा रही है।
पिंपरी चिंचवड मनपा में भाजपा को सन् 2012 में हुए चुनाव में सिर्फ 03 सीटें मिली थीं, जो इस बार बढ़कर 78 हो गई, क्या इतना बड़ा फासला मतदाताओं को पैसे देकर प्राप्त किया गया। पुणे में भी भाजपा ने 26 सीटों से 94 तक छलांग मारी है, क्या वहां किसी तरह की गड़बड़ी की कोशिश की गई है। मतदाताओं ने लगभग सभी स्थानों पर भाजपा को सबसे बड़े दल के रूप में मान्यता दी है। मुख्य मुकाबला भाजपा शिवसेना के बीच ही सिमट कर रह गया है। कांग्रेस राकांपा अकेले चुनाव लड़कर भी कुछ खास नहीं कर सकी।
मनसे की नासिक में जो ताकत थी उसे भी भाजपा ने छीन लिया। बदले हुए राजनीतिक हालातों में जहां भाजपा, शिवसेना को स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने के लिए क्या करने की जरूरत है, इसके बारे में चिंतन- मनन करना है, वहीं अन्य दलों को इस बारे में चिंतन करना होगा कि मतदाताओं का मन भाजपा शिवसेना से मोड़कर उनके प्रति कैसे लाया जाए। मुख्यमंत्री ने अपने सहयोगी दलों के कटाक्ष को सहने के बावजूद भाजपा को सभी तरफ कैसे सफलता मिले, इसके लिए गुप्त रणनीति बनायी थी और उसी रणनीति के तहत काम करके इतनी बड़ी सफलता अर्जित की जबकि अन्य दलों ने सिर्फ भाजपा तथा शिवसेना के बीच जारी झगड़े को ही मिडिया के सामने उछाल कर अपना कीमती समय यूं ही खत्म कर दिया। कांग्रेस के बड़े नेताओं ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ भरपूर नारेबाजी की, लेकिन मुख्यमंत्री धिरोदात्त नायक की तरह जब जरूरी लगा तो शिवसेना तथा अन्य राजनीतिक दलों को कोसा और जब जरूरी लगा तो अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के प्रचार कार्य के लिए रवाना हो गये। मुख्यमंत्री ने भाजपामय महाराष्ट्र मिशन के रूप में काम किया और दस में आठ महानगरपालिकाओं पर भाजपा का परचम लहराने में सफलता अर्जित कर ली, जबकि शेष दलों ने अपनी गलतियों की ओर ध्यान न देकर भाजपा शिवसेना के विरोध में बोलने में अपनी पूरी ताकत लगा दी उसका नतीजा यह हुआ कि मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान करके अन्य राजनीतिक दलों को यह बात अच्छी तरह से बता दी कि भाजपा ने जनता के बीच उतरकर काम किया है, इसलिए हम उसी को हाथ में मनपा की सत्ता दे रहे हैं। मुंबई के मतदाताओं ने यह बताने की कोशिश की है कि हमें भाजपा और शिवसेना दोनों साथ साथ काम करते हुए देखना है इसलिए दोनों दल मिलकर सत्ता चलाएं। अब देखने वाली बात यह है कि मुंबई में कौन से दो दल मिलकर सत्ता चलाते हैं। भाजपा तथा शिवसेना ने अगर जनमत के खिलाफ जाकर बेमेल समझौता करके मुंबई मनपा में सत्ता स्थापित की उसका खामियाजा उसे सन् 2019 में होने वाले राज्य के विधानसभा चुनाव में अवश्य उठाना पड़ेगा, इसलिए भाजपा तथा शिवसेना दोनों को बड़े धैर्य से काम लेना होगा। मुख्यमंत्री के तरह नियोजन करके अगर सभी विपक्ष दल एक तय एजेंडे के आधार पर मुंबई मनपा में सत्ता स्थापित करेंगे तो यह शायद जनाधार का समर्थन होगा और अगर मनमानी करके शिवसेना ने बेमेल समझौते किए तो आगामी विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना भी कांग्रेस, राकांपा, मनसे जैसे दलों की कतार में खड़ी पार्टियों में ही नज़र आएगी।

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