दस्तक-विशेषसाहित्य

शहनाइयां गूंजती हैं

तमन्ना शाहीन

अभी कल की ही बात है
दस बरस की शहज़ादी
कुछ चचानुमा मेहरबानों ने
चलती गाड़ी में उसे बिठा लिया
और…
उसके चीखने से पहले
कई सख्त हाथों ने
उसके होंटो पर
अपनी गिरफ्त मजबूत कर ली
वह चहकती हुई मैना थी, मगर
उसकी आवाज़
अन्दर ही कहीं दम तोड़ती चली गयी
और वह मासूम
मां के आंचल से
बाप की शफकत से दूर
बहुत दूर
चन्द हैवानों को
लज्ज़ते बख्शती रही
यहां तक कि
उसके वजूद के परखचे उड़ गये
और वह इंसान नुमा दरिन्दे
जिनकी अपनी भी बेटियां थीं
रात की तारीकी में
उसको फुटपाथ पर रख गये
जैसे मिट्टी का कोई तोदा हो
कूड़े का कोई ढेर हो
अभी कल ही की बात है
जब उसकी मां ने कहा था
मेरे कानों में ऐ बेटी,
तेरी शादी की शहनाइयां… अभी से गूंजती हैं।

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