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काफी पुराना है टिड्डीदल की विनाशलीलाओं का इतिहास

अमरेंद्र प्रताप सिंह
वरिष्ठ पत्रकार

विश्व के साठ देश बन चुके हैं शिकार, एक झुंड में होती हैं चार से आठ करोड़ टिड्डियां

लखनऊ, 19 जुलाई, (अमरेंद्र प्रताप सिंह): बीते कुछ माह से टिड्डियों के दल का आक्रमण समाचार की सुर्खियों में है जो शायद युवा पीढ़ी के लिये कोविड-19 की तरह ही एक नया अनुभव हो सकता है। परन्तु टिड्डी दल की विनाशलीलायें भारत, चीन, मिश्र, यूनान, अरब आदि देशों के प्राचीन इतिहास में दर्ज है। अब तक विश्व के तकरीबन साठ देश टिड्डियों के आक्रमण से प्रभावित हो चुके है।

बीसवी शताब्दी के बाद अब एक बार फिर टिड्डियों के आक्रमण ने इतिहास में देखने को मजबूर कर दिया है। दो से तीन ग्राम का टिड्डी कीट हमारे लिये खाद्य उत्पादों का बड़ा संकट उत्पन्न कर सकता है। टिड्डियों के एक झुंड में चार से आठ करोड़ टिड्डियां हो सकती है। जो एक दिन में दो हजार लोगों को भोजन चट करने में सक्षम है। हवा के बहाव के साथ एक दिन में बीस से तीन सौ मील तक की दूरी तय करने की क्षमता इनकों कही भी पहुंचा सकती है। अपने आठ सप्ताह के जीवन काल में एक से एक सौ होने की प्रजनन क्षमता किसी भी देश की कृषि व्यवस्था को चौपट करने के लिये काफी है।

टिड्डीदल से निपटने का अबतक नहीं मिला कोई प्रभावी तरीका

आंचलिक विज्ञान नगरी, लखनऊ के वरिष्ठ विज्ञान अधिकारी रामकुमार और विज्ञान अधिकारी विकास पिछले काफी समय से टिड्डियों पर अध्ययन कर रहे है। उनके अनुसार कीटनाशकों का प्रयोग फसल के साथ-साथ मृदा के गुणधर्म को भी खराब करता है। इसी प्रकार पचास के दशक में आर्गेनों क्लोराइड डाइड्रिन नामक प्रभावशाली कीटनाशक का प्रयोग किया गया परन्तु खाद्य श्रंखला में इसके दुष्परिणामों को देखते हुये इसे प्रतिबन्धित कर दिया गया। हालांकि इनसे निपटने के लिये कोई विश्वसनीय तरीका नहीं खोजा जा सका है। परन्तु इनके नियंत्रण को प्रभावी बनाने के लिये जीपीएस, जीआईएस उपकरण और उपग्रह जैसी आधुनिक तकनीकों  से प्रभावित क्षेत्र और संभावित आक्रमण क्षेत्रों को आंकलन किया जा सकता है।

जैव नियन्त्रक निभा सकते हैं टिड्डियों के नियन्त्रण में अहम भूमिका

वरिष्ठ विज्ञान अधिकारी रामकुमार के अनुसार जैव नियन्त्रक टिड्डियों के नियन्त्रण में अहम भूमिका निभा सकते है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है के आधार पर वर्ष 2009 में तंजानियां में इनके प्रजनन क्षेत्रों में मेथेरिजियम एरीडियम के सूखे कवक के बीजाणुओं को छिडक़ा गया था। कवक बिजाणुओं ने टिड्डियों के बाहरी आवरण को क्षतिग्रस्त करके शरीर की गुहा को नष्ट कर दिया जिससे इनकी मृत्यु हो गयीं। इस तरह के जैव नियन्त्रकों से खाद्य श्रंखला को भी कोई नुकसान नहीं होता है साथ ही इनका प्रयोग कीटनाशकों की तरह बार-बार नहीं करना पड़ता है। आज वैज्ञानिक जैव-नियंत्रकों के अन्य विकल्प भी खोजने में लगे हुये है। विज्ञान अधिकारी विकास ने बताया कि पूरे विश्व में इस कीट की छ: प्रताजियां है जो उत्तरी गोलार्ध अक्षांश 20 से 40 एवं दक्षिणी गोलार्ध के 15 से 45 के मध्य पाये जाते है।

मछलियों और मुर्गियों के आहार का विकल्प हो सकती है टिड्डियां

टिड्डियों का प्रजनन काल वर्षा काल में होता है। मादा लगभग एक हजार तक अंडे देती है। जब तक क्षेत्र में खाने के लिये वनस्पति होती है तब तक ये वहां रहते है। तादाद बढऩे पर भोजन की तलाश में पलायन कर जाती है। पाकिस्तान से आये इस टिडडी दल से भारत के अनेक इलाके प्रभावित हो रहे है। आधुनिक तकनीक की सहायता से भारत सरकार प्रत्येक राज्य व जिलों में इनके आक्रमण से बचने के लिये अलर्ट जारी कर रही है। सवा चार सौ से अधिक दल प्रत्येक राज्य और जिलों में टिड्डियों के आक्रमण से निपटने के लिये तैनात है। टिड्डियां चावल, मक्का और बाजरा की फसलों के लिये विनाशकारी है। यदि भविष्य में टिड्डी दल को पकड़ने का कोई तरीका खोजने में  सफलता मिलती है तो इसका उपयोग मछली पालन और कुक्कुट पालन में पौष्टिक आहार या चारे के रूप में करने की अपार संभावना है। वैसे भी अफ्रीकी, मध्य पूर्वी और एशियाई देशों में टिड्डी को बड़े चाव से खाया भी जाता है।

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