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अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल सस्ता, पर पेट्रोल-डीजल इन वजहों से अब भी महंगा

oil-price_650x400_71450426633नई दिल्ली: हम और आप इस बात से परेशान हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतों में कमी होने के बावजूद भारत में पेट्रोल-डीजल के दामों में ऐसी कटौती क्यों नहीं की गई है कि ग्राहकों की बाछें खिल जाएं। आखिर क्या वजहे हैं कि घरेलू कंज्यूमर्स को ग्लोबल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमत में कटौती का पूरा लाभ नहीं मिल रहा है।

पिछले दिनों फाइनैंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने पिछले दिनों विस्तृत रूप से यह बताया था कि आखिर सरकार से कस्टमर्स को अभी तक वांछित घोषणा क्यों सुनने को नहीं मिल रही है। उसे कुछ इस रूप में समझा जा सकता है:

आखिर दाम कम हों भी तो कैसे क्योंकि….
घरेलू ईंधन की कीमत ग्लोबल स्तर पर ब्रेंट क्रूड ऑयल के मुकाबले बेहद कम घटी है जोकि 11 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया था। यह दो ही दिन पहले प्रति बैरल 40 डॉलर बिक रहा था। हालांकि कई बार कीमतों में कटौती की गई लेकिन कीमतें अपेक्षाकृत अधिक ही बनी रही और इसका कारण रहा सरकार द्वारा बार बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाना।

जेटली ने पिछले दिनों कहा था कि एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाला 42 फीसदी हिस्सा राज्य सरकारों को जाता है जबकि बाकी हिस्सा विकास के कार्यों पर खर्च किया जाता है।

दरअसल, सरकार को होती है मोटी कमाई…
बीबीसी हिन्दी में छपी आर्थिक मामलों के जानकार आशुतोष सिन्हा की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कारोबारी साल में पेट्रोल और डीज़ल पर सरकार ने हर दिन 57 करोड़ रुपए से ज़्यादा सेस (यानी की उपकर) से कमाया। ये कमाई सरकार के खाते में गई। राज्य मंत्री पी राधाकृष्णन ने पिछले ही हफ्ते बताया था कि पेट्रोल और डीज़ल पर सेस या उपकर से अप्रैल 2014 और मार्च 2015 के बीच सरकारी ख़ज़ाने में 21,054 करोड़ रुपए जमा हुए।

जेटली के मुताबिक, पेट्रोल और डीजल की कीमत में एक बड़ा हिस्सा वैट के रूप में होता है जोकि राज्यों के खाते में जाता है। जबकि, चौथा हिस्सा ऑयल कंपनियों को जाता है जोकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तेल की खरीद पर मोटी रकम का घाटा उठाती हैं।

‘तेल कंपनियों को होता है घाटा..’
तेल कंपनियां 80 डॉलर कीमत पर खरीदती हैं लेकिन जब तक वे तेल बेचने निकलती हैं, इसकी कीमत 60 डॉलर पर आ चुकी होती है। एक बार तेल कंपनियों को जो घाटा हुआ, वह 40 हजार करोड़ जितना ऊंचा था।

जेटली के ही कहेनुसार, ईंधन की कीमत से होने वाली कमाई का एक हिस्सा नेशनल हाइवेज़ और ग्रामीण स्तर पर सड़कों के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि, जो लोग पेट्रोल और डीजल की खपत करते हैं वे इन्हीं सड़कों पर वाहन चला रहे होते हैं और ऐसे में उन्हें इसके लिए कीमत भी चुकानी चाहिए।

वित्त मंत्री की मानें तो कि कई वर्षों बाद सरकार इस हालात में आई है कि वह बजट में कटौती का सहारा लिए बिना ही राजकोषीय घाटे के लक्ष्य (जीडीपी का 3.9 प्रतिशत) को हासिल कर सकती है। जेटली के मुताबिक, यह पहली बार होगा, जब हम राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बिना किसी वित्तीय कटौती के ही हासिल कर लेंगे।

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