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‘उडाता आलू और टमाटर’ एक साथ बढ़े दाम

45950-tomato500एजेंसी/ पिछले कुछ सालों से कभी प्याज, कभी टमाटर तो कभी आलू की महंगाई लोगों को रुलाती रही है। इस साल तो स्थिति और खराब है। पहले कोई एक चीज की आसमान छूती कीमत ही चिंता का सबब होती थी लेकिन इस बार दाल (अरहर और उड़द), टमाटर और आलू, तीनों की कीमतें एक साथ आसमान छू रही हैं।

पिछले दो सालों में अरहर की कीमत दोगुनी हो गई है जबकि उड़द की कीमत में करीब 120 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। दालों की कीमत में बढ़ोतरी की स्थिति यह है कि इस साल चना दाल तक की कीमत में 85 फीसदी बढ़ोतरी हो गई है जिसका बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है। आमतौर पर चने के दाम पर असर नहीं पड़ता था।

हालांकि जनवरी तक यह स्पष्ट हो गया था कि पिछले साल सूखे के कारण इस साल दाल का उत्पादन प्रभावित होगा लेकिन सरकार की ओर से या तो स्थिति से निपटने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया या प्रयास अपर्याप्त थे।

 

रोजाना की सब्जियों में इस्तेमाल होने वाले आलू और टमाटर का मामला थोड़ा अलग है। दोनों फसलें कम अवधि में तैयारी हो जाती हैं। लेकिन, दोनों की कीमतों में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई है।

टमाटर का पौधा लगाने के 60-70 दिनों के बाद टमाटर तैयार हो जाता है जबकि आलू 75-120 दिनों में तैयार होता है।

मार्केट में अभी जो टमाटर आ रहे हैं, उनको मार्च में बोया गया था। उस अवधि में भले ही असाधारण रूप से उच्च तापमान था लेकिन फसल पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा था। टमाटर के बड़े उत्पादक राज्यों में सर्दी के मौसम में होने वाली बारिश ने भी कोई खास नुकसान नहीं पहुंचाया था। टमाटर की खेती किसी भी तरह से बारिश पर निर्भर नहीं है। इसी को ध्यान में रखते हुए कृषि मंत्रालय ने 2015-16 के लिए टमाटर उत्पादन के अनुमान को बढ़ाकर पिछले साल के 1.64 करोड़ मीट्रिक टन के स्थान पर 1.82 करोड़ मीट्रिक टन कर दिया था।

फिर भी टमाटर की कीमतें आसमान छू रही हैं। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि देश के कई हिस्से में कीमतें बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन उपभोक्ता मामले विभाग और राष्ट्रीय वाणिकी बोर्ड की ओर से जारी किए डेटा से पता चलता है कि इस साल अप्रैल और जून के बीच कीमतों में 100-200 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जून 2014 और जून 2016 के बीच में मुकाबला करने पर देखते हैं कि ज्यादातर शहरों में टमाटर के दाम में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है।

आलू के उत्पादन में गिरावट का अनुमान व्यक्त किया गया था। यह अनुमान था कि पिछले साल के 4.8 करोड़ टन के मुकाबले इस साल 4.6 करोड़ टन आलू का उत्पादन होगा।

आलू का मामला थोड़ा अलग है। हर साल की फसल का एक हिस्सा कोल्ड स्टोरेज में चला जाता है जो बाद में मार्केट में आता है। इसलिए, आलू की महंगाई सप्लाई और डिमांड का मामला नहीं है। इस साल आलू की महंगाई का कारण बंगाल में पाले का गिरना हो सकता है।

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