ज्ञान भंडार

कबूतर, संभल कर रहिए अब खत नहीं, बीमारी लाते हैं

img_20161209012054दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस में स्थित वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के नेशनल सेंटर ऑफ रेस्पेरेटरी एलर्जी के प्रमुख डॉ राजकुमार ने कहा कि हम लोगों की धार्मिक भावनाओं का पूरा सम्मान करते हैं।

 हम कबूतरों और उनके ठिकानों से दूरी बनाकर अपनी भावनाओं को आहत किए बैगर अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं। लोगों की प्रतिरोधक क्षमता अलग-अलग होती है और यह नहीं मालूम कि किस स्थिति में किसको किस चीज से एलर्जी हो सकती है। कोई भी बीमारी सभी लोगों को नहीं होती लेकिन यह जान लेना आवश्यक है कि सुरक्षा बरतने पर गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हमारे अस्पताल में किए गए एक अध्ययन में साबित हुआ है कि कबूतर की बीट से ‘हाइपर सेंसिटिव निमोनाइटिस’ होता है। इससे लोगों में दमा, खांसी, सांस फूलने की समस्या की शिकायत होती है। समय से पहचान और इलाज नहीं होने पर इंसान में यह स्थिति घातक सिद्ध हो सकती है। कबूतर की बीट से होने वाली एलर्जी पर अब तक विदेशों में ही अध्ययन किया गया था, लेकिन हमारे यहां की एंटीजन जांच में भी कुछ मरीजों में एलर्जी के लक्षण पाए गए। कबूतरों के पंख से निकलने वाले ‘फीदर डस्ट’ मनुष्यों में अति संवेदनशील निमोनिया या बर्ड फैंसियर्स लंग्स की बीमारी बढ़ा रहे हैं।
दिल्ली के प्रमुख चौराहों पर जमा बीट से होने वाली एलर्जी का असर 100 मीटर के दायरे तक गुजरने वाले लोगों पर पड़ सकता है। कबूतर की बीट से होने वाली एलर्जी पर किया गया शोध इंडियन जर्नल ऑफ इम्यूनोलॉजी में भी प्रकाशित किया गया है। डॉ राजकुमार ने बताया कि कबूतरों की बीट से फेफड़े की बीमारी का खतरा होता है, इसलिए लोगों को इसके बारे में जानना जरूरी है। धूल, प्रदूषण, कबूतर और कीड़ों की बीट आदि से अलग-अलग तरह के 200 से अधिक प्रकार की एलर्जी होती है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह अस्थमा का कारण बन सकती है। दिल्ली के 30 फीसदी लोग किसी न किसी एलर्जी से जूझ रहे हैं। पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट के एक अध्ययन में यह बात सामने आई भी है।
नोएडा के जेपी अस्पताल के रेसपिरेटरी एडं क्रिटिक केयर मेडिसिन विभाग के डॉ ज्ञानेन्द्र अग्रवाल ने कहा कि एलर्जी लोगों की सेंसिविटी पर निर्भर करती है। कुछ लोग अति संवेदनशील निमोनिया या बर्ड फैंसियर्स लंग्स की बीमारी के लिए सेंसिटिव हो सकते हैं। उन्हें हाइपरसेंसिटिव निमोनाइटिस, अस्थमा आदि बीमारियां हो सकती हैं। इसमें लोगों में खांसी, कफ, लंबे समय तक दम फूलने की शिकायत होती है।
उन्होंने कहा कि समय पर उचित इलाज नहीं मिलने से फेफड़े को काफी नुकसान पहुंचता है और यह जानलेवा भी हो सकता है। डॉ अग्रवाल ने कहा कि लोगों को कबूतरों के सीधे संपर्क से बचना चाहिए और ग्लोब और मास्क पहनकर बीट को तुरंत साफ कर देना चाहिए क्योंकि इसमें एलर्जी पैदा करने वाले माइक्रोपार्टिकल्स होते हैं जो बीट के सूखने पर हवा के संपर्क में आकर लोगों तक पहुंच सकते हैं।
 

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