दस्तक-विशेष

कुछ आंखों के तारे तो कुछ किरकिरी

Captureकिसी भी सरकार की छवि बनाने और बिगाड़ने में नौकरशाही का योगदान सबसे महत्वपूर्ण होता है। सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं और परियोजनाओं को मूर्त रूप देने से लेकर सरकार की छवि को निखारने में इनका अहम रोल होता है। उत्तर प्रदेश की नौकरशाही इन दिनों दो खेमों में बंटी हुई है। कुछ अफसर तो सरकार की आंख के तारे बनकर उसकी योजनाओं को अमली जामा पहनाने में लगे हैं तो कुछ सरकार के फैसलों को कड़ी चुनौती देकर आंख की किरकिरी बने हुए हैं। अब देखना यह है कि उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में विपक्ष जैसी भूमिका निभा रहे इन विरोधी अफसरों से युवा मुख्यमंत्री कैसे पार पाएंगे।
उ. प्र में सत्तारूढ़ अखिलेश यादव सरकार ने साढ़े तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। सत्ता का यह सफर काफी उतार चढ़ाव से भरा रहा है। इन साढ़े तीन सालों में सरकार ने कई घोषणाएं कीं। इसमें कई पूरी हुईं, तो कई अब भी अधूरी हैं। कई योजनाओं और परियोजनायें शुरू हुई तो कुछ अंजाम तक पहुंची। 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने जो भी वादे अपने घोषणा पत्र में किए थे, सरकार बनने के बाद तेजी से उस पर अमल करने की दिशा में काम भी हुआ। सरकार ने हर साल विकास का एजेंडा तय किया और उसे अमलीजामा पहनाया। छात्रों को लैपटॉप, किसानों को खाद-बीज, उद्योगों को अवस्थापना सुविधाएं, एक्सप्रेस वे, मेट्रो सेवा ऐसे कई काम हैं, जो अखिलेश सरकार ने धरातल पर उतारे हैं। देश के सबसे बड़े प्रदेश में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सोच और परिकल्पना को धरातल पर उतारने का काम जिन अधिकारियों ने किया। उनसे मुख्यमंत्री ने अपनी सोच और इच्छा जाहिर की और अधिकारियों से अपना विजन साझा किया। उधर, अधिकारियों ने उसे हकीकत में तब्दील करने का बीड़ा उठाया। ऐसे अधिकारियों को हम-आप अंगुलियों पर गिन सकते हैं, लेकिन वहीं कुछ ऐसे भी अधिकारी रहे हैं जो लगातार सरकार पर ही हमले बोलते रहते हैं। ऐसे अधिकारियों की कार्य प्रणाली और बोल बचन से सरकार की छवि को भी धक्का पहुंचा।
मायावती की पूर्ण बहुमत वाली सरकार की विदाई के बाद युवा अखिलेश यादव ने प्रदेश की बागडोर संभाली। आज साढ़े तीन साल के कार्यकाल में सरकार ने सूखा भी झेला तो बाढ़ भी। अधिकारियों ने समय-समय पर सरकार को हर संकट से उबारने के लिए रात-दिन एक भी किया। ऐसे में अधिकारियों में सबसे पहला नाम है प्रशासनिक मुखिया आलोक रंजन का। जावेद उस्मानी की जगह लेने वाले 1978 बैच के आईएएस आलोक रंजन ने मुख्य सचिव बनने के बाद हर विभाग के पेंच कसे और उनसे समयबद्ध काम भी लिया। उनके इस पद पर आसीन होने के बाद विकास कार्यों में भी तेजी आई और कुछ फैसले इतने कम समय में हुए जिसका कि सीधा लाभ सूबे की जनता को मिला। और सरकार की धूमिल हो रही छवि का संवारने का कार्य शुरू हुआ। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जब समाजवादी पेंशन योजना शुरू करने की बात मुख्य सचिव से की। तब उन्होंने इसे कैसे अमलीजामा पहनाया जायेगा, मानक क्या होंगे, धन कहां से आएगा, ऐसी तमाम समस्याओं का हल निकाल कर मुख्यमंत्री के समक्ष रख दिया। नतीजा यह हुआ कि इस योजना का सफल क्रियान्वयन हो सका। राजधानी लखनऊ में मेट्रो के संचलन में तमाम बाधाएं थीं, लेकिन यहां से लेकर दिल्ली तक हर अड़चन को आलोक रंजन दूर करने में सफल रहे। यही वजह है कि मेट्रो मैन ई. श्रीधरन की अगुवाई में राजधानी में यह काम तेजी पकड़ चुका है। राजधानी में ही आईटी सिटी परियोजना भी मुख्यमंत्री की सोच के अनुरूप मुख्य सचिव के निर्देशन में आकार ले रही है। श्री रंजन ने विभिन्न कार्यों के लिए माहवार माइल स्टोन तय किए हैं। वर्तमान में सेंट्रलाइज्ड मेगा कॉल सेंटर परियोजना पर उनका जोर है। दस विभागों-चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, पशुधन, कृषि, राजस्व, श्रम, विकलांग, जन विकास, ग्राम्य विकास, समाज कल्याण, ऊर्जा एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा उपलब्ध कराये गये लगभग 1.68 करोड़ लाभार्थियों के डाटा रिकाड्र्स द्वारा लगभग 68 लाख मोबाइल नंबर प्राप्त हो जाने के बाद नवंबर माह तक कॉल सेंटर चालू कराने का उन्होंने लक्ष्य दे रखा है। हर महीने प्रोजेक्ट मॉनीटरिंग ग्रुप की बैठक कर योजनाओं की समीक्षा कर उसे गति देने में चीफ साहब यानी आलोक रंजन जुटे रहते हैं।
कानून-व्यवस्था व विकास योजनाओं को लेकर जब विपक्ष सरकार पर हमला बोलता है और मीडिया मुखर होता है तो यह स्थिति भी सरकार के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती। सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मीडिया मैनेजमेंट के लिए कई प्रयोग किए। कई अधिकारियों को प्रमुख सचिव सूचना का काम दिया गया, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो सके। जिसके बाद मुख्यमंत्री ने इस कठिन काम की जिम्मेदारी आईएएस अधिकारी नवनीत सहगल के कंधों पर रखी। ईश्वर में अटूट आस्था रखने वाले शांत स्वभाव के नवनीत सहगल से मीडिया से जुड़ा हर व्यक्ति अपनी बात रखता है। समस्या होने पर फोन पर ही उसका समाधान करा देने में उन्हें महारत हासिल है। मीडिया मैनेजमेंट के साथ ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट लखनऊ-आगरा 6 लेन एक्सप्रेस वे का भी सफलता पूर्वक कार्य श्री सहगल के दिशा-निर्देशन में चल रहा है। यह सहगल का ही मैनेजमेंट था कि इस एक्सप्रेस वे के लिए बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण हुआ, लेकिन कहीं भी इसके विरोध में कोई आंदोलन या हंगामा नहीं हुआ। 1988 बैच के आईएएस अधिकारी श्री सहगल के पास मुख्य कार्यपालक अधिकारी यूपीडा का भी प्रभार है। लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे का काम जिस गति से चल रहा है, उसे देखते हुए यह उम्मीद जताई जा रही है कि निर्धारित समयावधि से पहले ही यह पूरा हो जाएगा। बहुमुखी प्रतिभा के धनी नवनीत सहगल ने बॉलीवुड को उप्र में फिल्म निर्माण के लिए आकर्षित करने में भी बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई। उन्हें यह दायित्व मिलने के बाद लगातार सूबे में फिल्मों की शूटिंग हो रही है। उन्होंने फिल्म व फिल्मकारों को प्रोत्साहित करने के लिए ऐसी नीति बनाने में अग्रणी भूमिका निभायी जिससे हर कोई आकर्षित हुए न रह सका। अपनी प्रशासनिक खूबियों के चलते ही नवनीत सहगल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पसंदीदा अफसरों में से एक हैं।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सोच रही है कि सूबे में निजी पूंजी निवेशक आएं और यहां निवेश करें। साफ है कि यदि यहां उद्योग धंधे लगेंगे तो प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार के लाखों अवसर सुलभ होंगे। इसीलिए मुख्यमंत्री ने ‘मेक इन यूपी’ का नारा दिया। उनके इस नारे को अमलीजामा पहनाने के लिए कमर कसी प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास महेश कुमार गुप्ता ने। मंद-मंद मुस्कुराते हुए सारी बातें कह जाने में माहिर श्री गुप्ता ने हाल ही में मुंबई में निजी पूंजी निवेशकों को लुभाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। उद्योगपतियों के सामने उन्होंने उप्र को जो तस्वीर रखी उससे सभी प्रभावित हुए। सूबे की कानून-व्यवस्था को लेकर जो तस्वीर प्रस्तुत की जाती है, ऐसे में यहां पहले से स्थापित उद्योगों की आशंकाओं को दूर करना तथा नए उद्यमियों को यहां लाना कम चुनौती भरा काम नहीं है, लेकिन श्री गुप्ता अपने संकल्पों को पूरा करने में माहिर माने जाते हैं। 1987 बैच के आईएएस अधिकारी महेश कुमार गुप्ता लखनऊ मंडल के मंडलायुक्त भी हैं।
करीब 20 करोड़ की आबादी वाले उप्र में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने की तमाम संभावनाएं मौजूद हैं। राम-कृष्ण की इस धरती पर हर युग की इमारतें व इतिहास आज भी जिंदा है। पर्यटन को मनोरंजन के साथ-साथ रोजगार से जोड़ने और देश-विदेश के पर्यटकों को माकूल माहौल उपलब्ध कराने का बीड़ा भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उठाया। इसकी जिम्मेदारी उन्होंने 1989 के आईएएस अधिकारी अमृत अभिजात के कंधों पर डाली। अपने विजन से श्री अभिजात ने उप्र के पर्यटन विभाग की कायाकल्प कर डाला। उन्होंने प्रदेश के पर्यटक स्थलों को एक नया रूप दिया। राजधानी में प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया हजरतगंज कार्निवाल पहले दिन से ही बहुत ही सफल साबित हुआ। इसी तरह ताज नगरी आगरा में उनके द्वारा किए गए प्रयोग खासे सफल साबित हुए। धार्मिक नगरी अयोध्या और नैमिषारण्य की वातानुकूलित बसों से यात्रा भी लोकप्रिय हुई। उत्तर प्रदेश पर्यटन की ऑनलाइन तस्वीर को गढ़ने का श्रेय अमृत अभिजात को ही जाता है। बदहाल वन्य जीव विहारों पर भी श्री अभिजात ने विशेष दृष्टि डालते हुए वहां उपलब्ध सुविधाओं में भी इजाफा किया। ऐसे में अमृत अभिजात का नाम भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ‘गुड बुक’ में दर्ज है।
अखिलेश यादव सरकार ने हाईटेक सिटी से लेकर मध्यम आय वर्ग के लोगों को कम कीमत पर आवास उपलब्ध कराने का निर्णय लिया तो 1982 बैच के आईएएस अधिकारी सदाकांत ने इसे धरातल पर उतारने का बीड़ा उठाया। मुख्यमंत्री ने राजधानी लखनऊ के पुराने एवं ऐतिहासिक इलाके का कायाकल्प करने का जब निर्णय लिया तो सदाकांत ने उनकी सोच के अनुरूप काम करके दिखाया। समाजवादी आवास योजना को भी परवान चढ़ाने में सदाकांत की महत्वपूर्ण भूमिका रही। अध्यात्म में रुचि रखने वाले आईएएस अधिकारी सदाकांत चीजों को बड़े ही सहज भाव से लेते हैं। जो बीड़ा वे उठाते हैं उसे अंजाम तक पहुंचाकर ही विश्राम लेते हैं।
अक्सर यह देखा गया है कि सरकारें काम तो बहुत करती हैं, लेकिन उसका प्रचार प्रसार उस तरीके से नहीं कर पाती हैं जैसे कि होना चाहिए। इसी कमी के कारण कई बार सत्तारूढ़ दल वापस सत्ता में लौट भी नहीं पाते हैं। इसी प्रकार उप्र की अखिलेश यादव सरकार ने जनहित से जुड़े बहुत सारे काम किए हैं। सरकार के कामों का प्रचार प्रसार का जिम्मा 2010 बैच के आईएएस अधिकारी आशुतोष निरंजन के कंधों पर जब मुख्यमंत्री ने डाला तो उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। सूचना एवं जनसम्पर्क जैसे महत्वपूर्ण विभाग के निदेशक पद की जिम्मेदारी संभालते ही श्री निरंजन ने आलसी कहे जाने वाले सूचना विभाग के ही सबसे पहले पेंच कसे। नतीजा यह रहा है कि महीनों और वर्षों तक लटकी रहने वाली फाइलें निर्धारित समयावधि में अब निस्तारित होने लगी हैं। वह देर रात तक अपने दफ्तर में कार्य करते नजर आते हैं और विभाग की हर गतिविधि पर सघन दृष्टि बनाए रहते हैं। जिससे सरकार के कार्यों का प्रचार प्रसार पहले से बेहतर हो सका है। श्री निरंजन के कंधों पर सूचना विभाग के अलावा यूपीडा का भी कार्यभार है। जिसके तहत मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे का कार्य चल रहा है। मृदुभाषी श्री निरंजन के निर्देशन में सूचना विभाग से लेकर यूपीडा तक सभी कुछ ट्रैक पर है। मुख्यमंत्री के इशारे को भांपने में वे देर नहीं लगाते हैं।
साफ है कि इन कुछ चुनिंदा अफसरों से ही उम्मीदों के इस प्रदेश को उम्मीदें हैं। तभी तो यूपी में ‘बन रहा है आज, संवर रहा है कल’। इन अधिकारियों के अलावा भी कई और अफसर हैं जो सरकार की छवि निखारने में और उप्र का भविष्य बनाने में अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। जाहिर है कि जब काम में दिल और दिमाग दोनों का इस्तेमाल होगा तो सूबे में निखार आना तो तय है।
इन अफसरों से इतर कुछ ऐसे भी हैं जो अखिलेश सरकार की खामियां गिनाने और उसकी आलोचना करने का कोई भी मौका नहीं चूक रहे हैं। सरकार के विभिन्न प्रोजेक्टों पर इन अधिकारियों ने सवाल उठाए हैं। इनमें से एक अधिकारी आईपीएस हैं तो दो आईएएस। जबकि एक अन्य आईएएस अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद सरकार को विभिन्न मंचों पर घेरने में लगे हैं। आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने कथित रूप से सेवा शर्तों का उल्लंघन करके विभिन्न मामलों में न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की। उनकी कार्य शैली से सरकार को कई बार शर्मसार होना पड़ा। उनकी पत्नी ने भी सरकार के हर काम की आलोचना की। अमिताभ ठाकुर यूपी सरकार के उन अफसरों में शामिल है, जो सामाजिक मुद्दों को लेकर सरकार पर निशाना साधते रहे हैं। पूर्व में उन्होंने अपने ही विभाग के तत्कालीन मुखिया डीजीपी एके जैन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उन्होंने डीजीपी को पत्र लिखकर शासनादेश के विपरीत खुद की सरकारी सुरक्षा-व्यवस्था लेने का आरोप लगाया था। इससे पहले वह यूपी में शासनादेशों का उल्लंघन कर थानाध्यक्ष के रूप में निरीक्षक की जगह उपनिरीक्षक की तैनाती को लेकर आपत्ति जताई थी। इस संबंध में अमिताभ ठाकुर ने प्रमुख सचिव गृह को एक पत्र भी भेजा था। 1992 बैच के आईपीएस अमिताभ ठाकुर नेशनल आरटीआई फोरम के संस्थापक भी हैं। बकौल अमिताभ ठाकुर, उन्हें तब आवाज उठानी पड़ी, जब वह सिस्टम से हार गए। नौकरी में रहते हुए कई बार उनका ट्रांसफर हुआ। बाद में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने उन्हें फोन करके पुराने संबंधों का हवाला दिया और कथित रूप से धमकाया। जिसके बाद ठाकुर ने मुलायम के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट तक लिखा दी।
सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा आईपीएस अमिताभ ठाकुर को कथित तौर पर धमकाने का मामला शांत नहीं हुआ कि बागी आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह ने सीएम अखिलेश के ड्रीम प्रोजेक्ट पर गंभीर सवाल उठा दिए। फेसबुक पर सूर्य प्रताप सिंह ने कहा है कि 15 हजार करोड़ रुपए का लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट इटावा, कन्नौज और चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है। सूर्य प्रताप ने दावा किया कि प्रोजेक्ट का प्लान लीक कर दिया गया। सत्ता पक्ष के नेताओं, दबंगों और नौकरशाहों ने ले आउट में पड़ने वाली और आसपास की जमीनों को किसानों से सस्ते दर पर खरीद लिया। 1982 बैच के आईएएस डॉ. सूर्य प्रताप सिंह तेज-तर्रार अफसरों में गिने जाते हैं। अपने 34 साल के करियर में एसपी सिंह नौ साल तक विदेश में रहे। इसके बाद 2004 में स्टडी लीव पर गए थे। जब वह वापस लौटे तो सरकार ने उन्हें औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख सचिव के पद पर तैनाती दे दी। डॉ. सूर्य प्रताप सिंह जब माध्यमिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव थे, तब उन्होंने बोर्ड एग्जाम से पहले नकल माफिया के खिलाफ आवाज उठाई थी। यह विरोध उन्हें बहुत भारी पड़ा था और सरकार ने उनका तबादला लघु सिंचाई विभाग में कर दिया था। यहां भी चेकडैम घोटाले के चर्चा में आने के बाद उन्हें सार्वजानिक उद्यम विभाग भेज दिया गया। हालांकि, इसके बाद भी सूर्य प्रताप सिंह चुप नहीं बैठे। सूर्य प्रताप सिंह ने वास्ट नामक संस्था बनाई। इस संस्था के जरिए वह लगातार आवाज उठा रहे हैं। सबसे पहले उन्होंने बोर्ड परीक्षा में नकल रोकने के लिए यूपी के संवेदनशील जिलों का दौरा किया, जिससे नकल माफिया में हड़कंप मच गया। इसके बावजूद सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी। वहीं, उन्होंने किसानों के मुआवजे का मुद्दा उठाया। मूल्यांकन का बहिष्कार कर रहे अध्यापकों के साथ धरना भी दिया। साथ ही साथ पीसीएस-प्री का पर्चा लीक होने का मुद्दा भी जोर-शोर से उठाया और इलाहाबाद में छात्रों के साथ कैंडल मार्च किया।
एक और अफसर हैं 1979 बैच के आईएएस विजय शंकर पांडेय। उन्हें मायावती सरकार ने 16 अप्रैल 2011 को प्रमुख सचिव सूचना, सचिवालय प्रशासन और खाद्य-औषधि नियंत्रण विभाग के पद से हटाकर सदस्य राजस्व परिषद के पद पर भेज दिया था। उनके खिलाफ यह कार्रवाई इसलिए हुई थी, क्योंकि वे इंडिया रिजुवनेशन इनीशिएटिव नामक भ्रष्टाचार विरोधी संगठन के संस्थापक बने। साथ ही सरकार से अनुमति लिए बिना ही विदेश से कालेधन को वापस लाने और देश के सबसे बड़े टैक्स चोर हसन अली के खिलाफ चल रही जांच की सुस्त रफ्तार को लेकर प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ एक याचिका दायर की थी। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस गलत कार्रवाई के लिए उन अधिकारियों की तलाश होनी चाहिए, जो इस कार्रवाई के लिए जिम्मेदार हैं। साथ ही उनसे अर्थदंड की धनराशि वसूली जाए। कालेधन को लेकर विजय शंकर पांडेय द्वारा दायर याचिका से तत्कालीन सीएम मायावती बेहद नाराज थी। उन्होंने आईएएस सर्विस रूल का उल्लंघन मानते हुए उन पर साल 2012 में विभागीय जांच बैठा दी। इस जांच की जिम्मेदारी अधिकारी जगन मैथ्यू को सौंपी गई थी। उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में विजय शंकर पर लगाए गए आरोपों की सरसरी तौर पर जांच की और पांडेय पर सारे आरोप निराधार पाए गए। हालांकि, मायावती की सरकार चले जाने के बाद भी उनका उत्पीड़न बंद नहीं हुआ था। अखिलेश सरकार ने भी उन पर जांच कमेटी बैठा दी। इस कमेटी में तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त आलोक रंजन और अनिल कुमार गुप्ता थे। सरकार के इस फैसले के खिलाफ विजय शंकर ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन 20 दिसंबर 2013 को इनकी अर्जी को खारिज कर दिया गया था। साल 2014 में वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। यहां से उन्हें न्याय मिला और केंद्र-राज्य सरकार पर पांच लाख रुपए का अर्थदंड लगाया गया। इन अफसरों के अलावा सेवानिवृत्त होने के बाद आईएएस बादल चटर्जी भी अखिलेश सरकार के कामकाज की आलोचना में जुटे हैं। वे एक-एक कर विभिन्न खामियों की ओर अंगुली उठा रहे हैं।
किसी भी सरकार की छवि बनाने और बिगाड़ने में नौकरशाही का योगदान सबसे महत्वपूर्ण होता है। अब देखना यह है कि उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में विपक्ष जैसी भूमिका निभा रहे इन विरोधी अफसरों से युवा मुख्यमंत्री कैसे पार पाएंगे।

 

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