शख्सियत

‘कुणी निन्दा, कुणी वन्दा’: राम नाईक

श्री नाईक ने संसद में ‘वंदे मातरम’ का गान प्रारम्भ करवाया। उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही अंग्रेजी में ‘बाम्बे’ और हिन्दी में ‘बंबई’ को उसके असली मराठी नाम ‘मुंबई’ में परिवर्तित करने में सफलता मिली। संसद सदस्यों को निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए सांसद निधि की संकल्पना श्री नाईक की ही है। इस राशि को एक करोड़ रुपये प्रतिवर्ष से दो करोड़ प्रतिवर्ष कराने का निर्णय भी योजना एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन राज्य मंत्री के नाते श्री नाईक ने लिया।

Captureramkumarमृदुभाषी, मिलनसार और शांत स्वभाव के स्वयंसेवक से राज्यपाल तक का सफर तय करने वाले राम नाईक राजनैतिक रूप से तो अति सक्रिय व्यक्ति हैं ही, सामाजिक रूप में भी उनकी भूमिका सराहनीय है। उम्र के इस पड़ाव में भी वे अत्यधिक शारीरिक श्रम करते हैं। सड़क पर आम जनता के लिए संघर्ष करना हो या फिर संसद में अपने क्षेत्र की बात रखनी हो, पूरी शालीनता से राम नाईक ने अपने दायित्वों को निभाया है। व्यक्तिगत जीवन में भी कैंसर जैसी घातक बीमारी को उन्होंने अपने जुझारूपन और इच्छाशक्ति के दम पर मात दी। उन्होंने कभी भी इस बीमारी के आगे घुटने नहीं टेके और न ही विचलित हुए। तत्पश्चात विगत 20 वर्षों में पहले जैसे उत्साह और कार्यक्षमता से ही काम कर रहे है।
श्री नाईक का जन्म 16 अप्रैल 1934 को महाराष्ट्र के सांगली में हुआ। विद्यालयी शिक्षा सांगली जिले के आटपाडी गांव में हुई। पुणे में बृहन्द महाराष्ट्र वाणिज्य महाविद्यालय से 1954 में बीकाम तथा मुंबई में किशनचंद चेलाराम महाविद्यालय से 1958 में एलएलबी की स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की। श्री नाईक ने अपना व्यावसायिक जीवन ‘अकाउंटेंट जनरल’ के कार्यालय में अपर श्रेणी लिपिक के पद से आरंभ किया बाद में उनकी उच्च पदों पर उन्नति हुई और 1969 तक निजी क्षेत्र में कंपनी सचिव तथा प्रबन्ध सलाहकार के पद पर उन्होंने कार्य किया। इसके पूर्व अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में गठित मंत्री परिषद में 13 अक्टूबर 1999 से 13 मई 2004 तक राम नाईक पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री रहे। 1963 में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय का गठन हुआ। उस समय एक करोड़ 10 लाख ग्राहक घरेलू गैस की प्रतीक्षा-सूची में थे। यह घरेलू गैस की प्रतीक्षा-सूची समाप्त करने के साथ-साथ कुल तीन करोड़ 50 लाख नये गैस कनेक्शन श्री नाईक ने अपने कार्यकाल में जारी करवाए। उसके पूर्व 40 वर्षो में कुल 3.37 करोड़ गैस कनेक्शन दिये गये थे। मांगने पर नया सिलेंडर मिलना प्रारम्भ हुआ था। साथ-साथ दुर्गम तथा पहाड़ी इलाकों की जरूरतों को व अल्प आय वाले लोगों को राहत देने के लिए पांच किलो के गैस सिलेंडर भी उनके कार्यकाल में जारी किये गये। इसके पूर्व 1998 की मंत्री परिषद में श्री नाईक ने रेल (स्वतंत्र प्रभार) गृह योजना एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन और संसदीय कार्य मंत्रालयों में राज्यमंत्री (13 मार्च 1998 से 13 अक्टूबर 1999) के रूप में कामकाज संभाला था। एक साथ इतने महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभालना उनकी विशेषता रही है। वे भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे तथा भाजपा शासित राज्य सरकारों के मंत्रियों की कार्यक्षमता बढ़े और गुणवत्ता का संवर्धन हो इसलिए गठित ‘सुशासन प्रकोष्ठ’ के राष्ट्रीय संयोजक भी थे। 2014 का लोक सभा चुनाव न लड़ने की तथा भविष्य में पार्टी को अपना राजनैतिक अनुभव देने के लिए राजनीति में सक्रिय रहने की घोषणा राम नाईक ने भाजपा के आचार-विचार के प्रेरणास्रोत तथा एकात्म मानववाद के जनक पंडित दीन दयाल उपाध्याय के जयंती के दिन 25 सितम्बर 2013 को की। मुंबईवालों की नजर में ‘उपनगरीय रेल यात्रियों के मित्र’ यह राम नाईक की असली पहचान है। श्री नाईक ने 1964 में ‘गोरेगांव प्रवासी संघ’ की स्थापना कर उपनगरीय यात्रियों की समस्याओं को सुलझाने का कार्य प्रारम्भ किया। बाद में रेल राज्यमंत्री के नाते विश्व के व्यस्ततम मुंबई उपनगरीय रेल के 76 लाख यात्रियों को उन्नत सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए ‘मुंबई रेल विकास निगम’ की स्थापना की। मुंबई के उपनगरीय यात्रियों को राहत देने की दृष्टि से राम नाईक ने अनेक विषयों की पहल की जैसे कि उपनगरी क्षेत्र का विरार से डहाणू तक विस्तार, 12 डिब्बों की गाड़ियां, संगणीकृत आरक्षण केन्द्र, बोरीवली-विरार चौहरीकरण, कुर्ला-कल्याण छह लाइनें, महिला विशेष गाड़ी आदि। संपूर्ण देश में रेल प्लेटफार्म पर तथा यात्री गाड़ियों में सिगरेट तथा बीड़ी बेचने पर पाबन्दी लगाने का ऐतिहासिक काम श्री नाईक द्वारा हुआ।
श्री नाईक ने महाराष्ट्र के उत्तर मुंबई लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से लगातार पांच बार जीतने का कीर्तिमान बनाया है। इसके पूर्व तीन बार वे महाराष्ट्र विधान सभा में बोरीवली से विधायक भी रहे है। तेरहवीं लोकसभा चुनाव में उन्हे 5,17,941 मत प्राप्त हुए जो कि महाराष्ट्र के सभी जीतने वाले सांसदों में सर्वाधिक थे। मुंबई में सफलतापूर्वक लगातार आठ बार चुनाव जीतने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले राम नाईक पहले जनप्रतिनिधि है। जनप्रतिनिधि की जवाबदेही की भूमिका में मतदाताओं को वे प्रतिवर्ष कार्यवृत्त प्रस्तुत करते थे। यह परम्परा उन्होंने राज्यपाल बनने के बाद भी जारी रखी। श्री नाईक संसद की गरिमामय लोक लेखा समिति के 1995-96 में अध्यक्ष थे। लोकसभा में वे भाजपा के मुख्य सचेतक भी रहे। संसदीय रेलवे समन्वय समिति, प्रतिभूति घोटाला के लिए संयुक्त जांच समिति, महिला सशक्तिकरण को बल प्रदान करने हेतु संसदीय समिति जैसी प्रमुख समितियों में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। लोक सभा की कार्यवाही को सुचारू चलाने के लिए लोकसभा की सभापति तालिका के भी वे सदस्य रहे हैं।
श्री नाईक ने संसद में ‘वंदे मातरम’ का गान प्रारम्भ करवाया। उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही अंग्रेजी में ‘बाम्बे’ और हिन्दी में ‘बंबई’ को उसके असली मराठी नाम ‘मुंबई’ में परिवर्तित करने में सफलता मिली। संसद सदस्यों को निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए सांसद निधि की संकल्पना श्री नाईक की ही है। इस राशि को एक करोड़ रुपये प्रतिवर्ष से दो करोड़ प्रतिवर्ष कराने का निर्णय भी योजना एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन राज्य मंत्री के नाते श्री नाईक ने लिया। श्री नाईक बचपन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं और इसे स्वीकार करने में उन्हें कभी भी हिचकिचाहट महसूस नहीं हुई। राम नाईक एक विशिष्ठ छवि वाले व्यक्ति हैं जो प्रत्येक कार्य में सूक्ष्मता और पारदर्शिता एवं जागरूकता के लिए जाने जाते है।
राम नाईक को 14 जुलाई 2014 को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाने के बाद उन्होंने 22 जुलाई 2014 को सूबे के 28वें राज्यपाल के रूप में शपथ ली। राम नाईक को राजनैतिक रूप से सजग रहने वाले उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त होने के बाद से ही यह कयास लगाये जाने लगे थे कि अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले राम नाइक के साथ किस तरह तालमेल बिठा पाएगी। राज्यपाल पद पर आसीन होते ही उन्होंने ऐलान किया कि आम लोगों के लिए राजभवन के दरवाजे खुले रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि वे संविधान की किताब सामने रखकर काम करेंगे और उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने में अपना योगदान देंगे। बतौर कुलाधिपति विश्वविद्यालयों में पढ़ाई का स्तर सुधारने पर भी उनका ध्यान होगा। बतौर राज्यपाल राम नाईक ने सरकार द्वारा किए गए कई निर्णयों से असहमति भी जाहिर की। राजभवन और सरकार दोनों के लिए ही यह चुनौतीपूर्ण स्थिति बन गई। जिसके कारण कुछ विवाद भी हुआ और समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं ने उन्हें खरी-खोटी भी सुनाई, लेकिन वे अपनी उसी बात पर कायम रहे और अपने इस संकल्प , ‘मैं तो संविधान सामने रखकर काम कर रहा हूं’ पर अडिग हैं..
ऐसे ही अद्भुत व्यक्तित्व के धनी राज्यपाल राम नाईक से दस्तक टाइम्स के सम्पादक राम कुमार सिंह ने बातचीत की। उनसे हुई वार्ता के प्रमुख अंश –

अपने राजनैतिक और व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ बतायें?
महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक छोटे से 1500 की आबादी वाले गांव आटपाड़ी में रहते हुए वहीं से हायर सेकेन्ड्री तक की शिक्षा ग्रहण की। पिता प्रधानाध्यापक थे। बालक मन में देशभक्ति की भावना पिता से प्राप्त हुई। 1950 में सीनियर सेकेन्ड्री पास करने के बाद पुणे बीकाम करने गया। हालांकि मैं मेधावी छात्र था और मेडिकल अथवा इंजीनियरिंग के क्षेत्र में जाना चाहता था, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उस क्षेत्र में नहीं जा सका। बीकाम की पढ़ाई पूरी करने के लिए ट्यूशन पढ़ाने के साथ ही सुबह अखबार बांटकर धन जुटाया। यहीं से कड़ी मेहनत करने की आदत हो गयी। उस समय पुणे में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का खासा प्रभाव था, वहीं से संघ के सम्पर्क में आया। हालांकि बचपन में भी मैं शाखाओं में जाता था। बाद में 1954 में बीकॉम की पढ़ाई पूरी कर मुम्बई पहुंच गया जहां एकाउंटेंट जनरल के कार्यालय में अपर डिवीजनल क्लर्क की नौकरी मिल गयी। उसके बाद एक निजी स्टील फर्नीचर फैक्ट्री में नौकरी की। जहां 4-5 साल में ही चीफ अकाउंटेंट तथा बाद में कंपनी सेक्रेटरी बन गया। दरअसल, जनसंघ का काम करने के लिए एकाउंटेंट जनरल की नौकरी छोड़ कर निजी कंपनी की नौकरी की थी। पं. दीनदयाल उपाध्याय के निधन के बाद में 1969 में वह नौकरी भी छोड़ दी और पूरा समय जनसंघ को देते हुए समाजसेवा में जुट गया और राजनीति में भी मेरी रुचि थी। 1977 तक मैं मुम्बई जनसंघ का संगठन मंत्री रहा। उसके बाद मुम्बई जनता पार्टी का अध्यक्ष बना। आपातकाल के दौरान पुलिस मुझे नहीं खोज पायी थी लेकिन बाहर रहते जेल में बंद लोगों की हर प्रकार की मदद करने की जिम्मेदारी मेरी ही थी।
1977 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो मुम्बई की सभी छह में छह सीट हमने जीती। उसके बाद 1978 में मैंने बोरीवली विधानसभा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा। 1989 में उत्तर मुम्बई से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता। इसके बाद मैं 2004 तक लगातार पांच बार सांसद रहा। इस दौरान मुम्बई भाजपा का भी मैं अध्यक्ष रहा। मैं आज जो कुछ भी हूं, उसमें मेरे पिताजी के मार्गदर्शन और कड़े अनुशासन का बहुत बड़ा योगदान है।

अपने परिवार के और सदस्यों के बारे में कुछ बताएं, वे किन क्षेत्रों में कार्यरत हैं?
मेरे परिवार में पत्नी व दो बेटियां हैं। एक बेटी डाक्टर डॉ. निशीगंधा है और उसने अविवाहित रहते हुए कैंसर रिसर्च के क्षेत्र में बहुत काम किया। दूसरी पुत्री विशाखा मेरे कार्यालय का काम संभालती है। मेरा कार्यालय पूरे देश में सुव्यवस्थित कार्यालय के रूप में जाना जाता है।
जनता के बीच अपने रिपोर्ट कार्ड को पेश करने की शुरुआत कब से हुई, जो अब तक जारी है?
दरअसल, जब मैं पहली बार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुआ तो एक साल पूरा होने पर मैंने विधानसभा में रहते हुए अपने कार्यों को जनता के बीच रखने के लिए ‘विधानसभा में राम नाईक’ नाम से कार्यवृत्त जारी किया। इसी तरह सांसद रहते ‘लोकसभा में राम नाईक’ और अब राज्यपाल रहते ‘राजभवन में राम नाईक’ शीर्षक से अपना कार्यवृत्त जारी किया। इतना ही नहीं जब मैं किसी सदन में नहीं था तब भी ‘लोकसेवा में राम नाईक’ शीर्षक से कार्यवृत्त जारी किया। इसके पीछे मकसद यह है कि आम लोगों को ज्ञात होना चाहिए कि मैंने उनके लिए एक साल में क्या-क्या किया। यह जवाबदेही का ही एक रूप है।

समाजवादी पार्टी के कुछ नेता और मंत्री आपकी कार्यशैली से नाराज रहते हैं। वे खुलेआम आपकी आलोचना करते हैं। आप उनके आरोपों पर सफाई देना भी जरूरी नहीं समझते, क्यों?
देखिए, कुछ लोग आलोचना करते हैं तो कुछ लोग सराहना भी करते हैं। आलोचना और सराहना के बीच मेरा काम संवैधानिक दायित्वों को पूरा करना है, यही मेरे लिए अहम है। अभी तक उसी भूमिका में काम करता आया हूं। मराठी में एक कहावत है, ‘कुणी निन्दा, कुणी वन्दा’। इससे फर्क नहीं पड़ता है, तब भी अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। मुझे राष्ट्रपति ने नियुक्त किया है और मैं अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ। राजनैतिक उत्तर देना अथवा टीका-टिप्पणी करना राज्यपाल की पद की गरिमा के खिलाफ है। मेरे कार्यों का मूल्यांकन लोग करेंगे।

विधानमंडल सत्र को संबोधित करते हुए राज्यपाल राज्य सरकार को ‘मेरी सरकार’ कहते हैं। यह किन अर्थों में ‘राज्यपाल’ की सरकार होती है?
राज्यपाल प्रदेश का मुखिया होता है। प्रदेश में जो भी सरकार होती है वह राज्यपाल की ही सरकार होती है। राज्यपाल ही सरकार को शपथ दिलाता है। ऐसे में संवैधानिक दृष्टि से यह मेरी ही सरकार है।
राज्यपाल बनने से पूर्व मैंने भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। राज्यपाल बनने के बाद दलगत राजनीति से बाहर रहकर काम कर रहा हूं और यह संवैधानिक पद की आवश्यकता है कि राज्यपाल के लिए अपनी सरकार को सलाह देना और उसका मार्गदर्शन करना यह जिम्मेदारी होती है। फिर मैं सरकार की कार्यप्रणाली की रिपोर्ट राष्ट्रपति को देता हूं।

पिछले कुछ दशकों में राजनीति का स्वरूप बहुत बदला है। क्या आपको लगता है कि इस दौरान राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद का सम्मान घटा है?
नहीं, टीका-टिप्पणी पहले भी होती रही है। उप्र में ही कई बार तो राज्यपाल के खिलाफ आन्दोलन तक की स्थिति आ गयी। पद का सम्मान घटने जैसी कोई बात नहीं है। वास्तव में अब अभिव्यक्ति का तरीका बदल गया है, ऐसा कह सकते हैं।

संविधान की मंशा के मुताबिक एक आदर्श राज्यपाल की भूमिका क्या होनी चाहिए?
राज्यपाल होने के नाते मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। मैं मेरे काम से संतुष्ट हूं। संविधान के अनुसार काम करते रहना चाहिए। जिससे कि राज्य का भी भला होता रहे। काम ठीक कर रहा हूं नहीं कर रहा हूं, यह जनता को सोचना है। राष्ट्रपति को सोचना है कि जिस वजह से मुझे नियुक्त किया गया हूं, वह कर रहा हूं कि नहीं।

जो युवा अब राजनीति में आ रहे हैं, उनके लिए कोई संदेश या सुझाव?
सबको संविधान के अनुसार कार्य करना चाहिए। दलगत राजनीति से परे होकर काम करना चाहिए। उप्र में कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार यह दो प्रमुख मद्दे हैं। इन्हें सभी को मिलकर समाज और जीवन से बाहर करना होगा तभी लोगों का जीवन सुखी होगा। =
साथ में जितेन्द्र शुक्ला।

राम नाईक को 14 जुलाई 2014 को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाने के बाद उन्होंने 22 जुलाई 2014 को सूबे के 28वें राज्यपाल के रूप में शपथ ली। राम नाईक को राजनैतिक रूप से सजग रहने वाले उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त होने के बाद से ही यह कयास लगाये जाने लगे थे कि अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले राम नाइक के साथ किस तरह तालमेल बिठा पाएगी।

1977 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो मुम्बई की सभी छह में छह सीट हमने जीती। उसके बाद 1978 में मैंने बोरीवली विधानसभा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा। 1989 में उत्तर मुम्बई से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता। इसके बाद मैं 2004 तक लगातार पांच बार सांसद रहा। इस दौरान मुम्बई भाजपा का भी मैं अध्यक्ष रहा।

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