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ध्रुपद गायकी के उस्ताद ज़िया फरीद्दुदीन डागर..

मनीष ओझा
ध्रुपद गायकी की बात हो और ज़िया फरीद्दुदीन डागर साब की याद न आये, ऐसा कभी नहीं हो सकता …

स्तम्भ: ध्रुपद गायकी के उस्ताद ज़िया फरीद्दुदीन डागर साब का जन्म 15 जून 1932 को उदयपुर राजस्थान की धरती पर हुआ था। डागर साब संगीत के डागर घराने से ताल्लुक रखते थे। बचपन से ही संगीत और कला के शौकीन डागर साब की प्राम्भिक शिक्षा ‘ध्रुपद गायन और वीना’ पिता उस्ताद जियाउद्दीन ख़ान साहब से मिली तत्पश्चात ध्रुपद केंद्र भोपाल में जाकर इन्होंने आगे की शिक्षा ग्रहण की।

ख़ास बात ये कि बाद में साब वहां विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे। इन्होंने भारत से लेकर पूरी दुनिया में परफॉर्म किया था। इन्हें साल 2005 मध्यप्रदेश के ‘तानसेन सम्मान’ व ‘संगीत नाटक अकादमी अवार्ड’ से नवाज़ा गया। डागर साब को नार्थ अमेरिकन ध्रुपद एसोशिएशन से लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार भी मिल चुका है।

बाबरी मस्ज़िद विध्वंस के बाद उपजे दंगों ने इनके मन पर गहरा आघात किया और बाद के दिनों में साब ऑस्ट्रिया में रहने चले गए लेकिन कुछ सालों बाद विशेष कोशिशों पर फ़िल्म निर्माता मनी कौल साब की फ़िल्म क्लाउड डोर (1994) के लिए इंडिया वापिस आये और दो महीनों तक भोपाल में रहे।

इसी दौरान मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और तत्कालीन संस्कृति और कला बिभाग के मुख्य सचिव अशोक वाजपेयी जी ने उनसे मुलाक़ात कर सरकार द्वारा संचालित ध्रुपद स्कूल शुरू करने का आग्रह किया और डागर साब इस आग्रह को स्वीकार करते हुए वापिस इंडिया में बस गए।

उन्होंने सफलतापूर्वक 25 वर्षों तक वहां शिक्षण कार्य किया। और 5 सालों के लिए ध्रुपद संसार आई आई टी बॉम्बे में गेस्ट टीचर भी रहे। उन दिनों ज़िया फरीद्दुदीन डागर साब अपने बड़े भाई ज़िया मोहिउद्दीन डागर द्वारा स्थापित ध्रुपद गुरुकुल पनवेल में रहा करते थे।

डागर साब भारतीय संगीत को एक और नए मुकाम पर ले जाने का कार्य करते हुए 8 मई 2013 को अंतिम सांसे लेकर अपनी पाक कव्र में हमेशा हमेशा के लिए दफ़्न हो गए किन्तु हम सबके दिलों में चिर काल तक जिंदा रहेंगे। आज डागर साब की पुण्यतिथि पर देश उन्हें याद कर रहा है।

(लेखक फ़िल्म स्क्रीन राइटर, फ़िल्म समीक्षक, फ़िल्मी किस्सा कहानी वाचक है)

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