जीवनशैली

खिलता रहे प्रेम…

प्रेम प्रेरित करता है। खूबियां क्या, कमियों को भी खुशी-खुशी स्वीकार कर लेता है। यह उन कमियों से भी आजाद कर देता है, जिनकी वजह से आपको अपनी जिंदगी कुछ ‘कम-सी’ लगती है!’ आंखों में चमक है, चेहरे पर छलक रही है रूहानी खुशी। ऑटोमोबाइल सेक्टर में कार्यरत आभा प्रेम पर बात करते हुए बीच-बीच में अपने दोनों हाथ हवा में लहरा देती हैं। यह सच है कि जीवन का मधुरतम आनंद और कटुतम वेदना यदि कोई है तो वह प्रेम ही है। इसलिए यहां जीवन-सा विस्तार है तो इसकी राह में उतना ही है संकुचन की गुंजाइश भी। अभिनेता अंकित बाथला कहते हैं, ‘प्रेम निश्छल अहसास है, लेकिन यह देता है सुरक्षा का अहसास। यही कारण है कि हमअपने पे्रम के अलग होने की कल्पना मात्र से सिहर उठते हैं।’ पर क्या यही ‘सिहरन’ हमें कमजोर कर देती है, भयभीत कर देती है? क्या इसी वजह से हम अपने प्रेम को बांध देते हैं एक दायरे में, रखने लगते हैं उसे घेरे में घेरकर…!’

थोड़ा सा छोड़कर…

एक रिसर्च के मुताबिक, पशुओं की कुछ प्रजाति भी अपने जरूरी सामाजिक रिश्ते को बचाए रखना चाहती हैं। वे भी अपने अजीज या सबसे करीबी को खोने से डरते हैं… पर आधिपत्य किस सीमा तक? यह जरूरी सवाल है। लेखिका रमा भारती कहती हैं, ‘प्रेम है तो परवाह जायज है, पर यह परवाह चौकसी बन जाए तो बैक्टीरिया की मानिंद रिश्ते को खोखला करता जाता है। इसलिए प्रेम में हैं तो साथी से जुड़ें और थोड़ा सा छोड़ भी दें। इससे प्रेम खिलता-खुलता रहता है।’ सच तो यह है कि हम बेजान चीजों से मनमाफिक व्यवहार कर सकते हैं, पर इंसानी भावनाओं और उसके जज्बातों पर नियंत्रण की बात बेजा है। इन बेजा बातों से प्रेम की उर्वर जमीन तैयार नहीं हो सकती।

मत बांंधो सीमाओं में…

नोएडा की रिमी श्रीवास्तव किस्से-कहानियों के जरिए बच्चों को शिक्षित करती हैं। जॉब के सिलसिले में अक्सर बाहर रहती हैं। वह कहती हैं, ‘शादी के 25 साल हो गए हैं। इस दौरान मैंने प्रेम को पड़ाव दर पड़ाव जाना। अंतत: एक ही निष्कर्ष पर पहुंची कि प्रेम को बांधा नहीं जा सकता।’ रिमी के अनुसार, इन 25 सालों में उनके बीच कोई डर नहीं, कोई शुबहा नहीं हुआ। वह अपनी-अपनी राह चल रहे हैं पर साथ हैं। बेशक, प्रेम का पहला उसूल है अपने साथी को एक अलग इंसान के रूप में स्वीकार करना। रिमी फिर कहती हैं, ‘मैंने कई लोगों को देखा है कि वे पार्टनर की हर चीज में दखल रखते हैं, पर मुझे प्यार करते हो तो मेरी बात मानी क्यों नहीं? यह बेचैनी प्रेम नहीं हो सकती। प्रेम तो सहअस्तित्व के उसूल पर चलता है, जिसमें अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व की रक्षा करते हुए एक-दूसरे का सहयोग करें, प्रोत्साहित करें।’

भरोसे से भागेगा भय

‘बदलते समय में रिश्ते-नाते जितने सहज हो रहे हैं, उतनी ही इसमें जटिलताएं भी पैदा हो रही हैं। यदि कपल्स परिपक्व हैं तो वे एक-दूसरे को स्पेस देते हैं। वे जानते हैं कि सारी दुनिया एक तरफ और उन दोनों का प्यार है एक तरफ, पर जो भयभीत रहते हैं वे दरअसल, खुद कमजोर होते हैं। उनके साथी का इसमें कोई दोष नहीं होता।’ कहती हैं मनोचिकित्सक आरती आनंद। यह सही है कि रिश्तों के खोने का डर आपकी एनर्जी को कमजोर कर देता है। इससे आप प्रेम की रचनात्मकता से अपरिचित रह जाते हैं। इसलिए पहले खुद पर भरोसा करें, ताकि रच जाए आपका प्रेम भरा रिश्ता।

गांठ न पड़ जाए कहीं…

मां का प्यार एकदम निश्छल व पवित्र, पर पार्टनर से प्यार की बात हो तो यह हमारा प्रयास मांगती है। यहां नादानी या जबरदस्ती नहीं चल सकती। जबरदस्ती प्रेम पैदा नहीं कर सकते। यदि यह कोशिश की तो एक गांठ पड़ जाती है, जो प्रेम को अविरल बहने से रोक देती है। मेरी पार्टनर इस बात को अच्छी तरह समझती है। हम-दूसरे को स्पेस देते हैं, एक-दूसरे की स्वतंत्रता का ख्याल रखने की पूरी कोशिश करते हैं। हां, यदि कभी मेरी पार्टनर या मैं ही पजेसिव होता हूं तो हम मिल-बैठकर बात कर लेंगे।

दूषित न हो ये अहसास

जब प्रेम पर अधिकार का भाव आ जाता है तो वह प्रेम नहीं हो सकता। फिर आप डरने लगते हैं कि हमारा प्रेम खो न जाए। प्रेम के अहसास में डर का मिश्रण हो तो इससे दूषित हो सकती है प्रेम की पवित्रता। फिर प्रेम उन्हीं दुनियावी बातों में शामिल हो जाता है, जहां प्रेम के निश्चित दायरे बना दिए गए हैं। आप हमेशा यही साबित करने में लगे रहते हैं कि आप एक अच्छे प्रेमी हैं। यदि मेरी पार्टनर ऐसा करे तो मैं उससे यही कहूंगा कि छोड़ो अच्छे प्रेमी होने की बातें, आओ बस प्रेम करें।

भूल जाती हूं सारी थकन

व्यस्त दिनचर्या में अक्सर देर रात घर लौटना होता है। उस वक्त मैं अपने पति को जागते, मेरा इंतजार करते देखती हूं तो मेरी सारी थकान गायब हो जाती है। मैं देखती हूं उन नींद भरी आंखों में मुझे देखकर एक चमक आ जाती है और वह कभी नहीं पूछते कि क्यों देर हुई या क्यों नहीं बताया पहले आदि। तब लगता है कि मैं कितनी भाग्यशाली हूं कि कोई इस दुनिया में है, जो मेरे लिए अपनी नींद और चैन खो सकता है। यही तो है न प्रेम! मैं इसे ही प्रेम कहती हूं कि आप अपने साथी की परवाह करो, उसके हर सुख-दुख में साथ रहो, पर इतना भी साथ न रहो कि वह घुटन महसूस करे।

जरूरी है जताना

प्रेम आपकी कमजोरी भी होता है और मजबूती भी। जज्बाती होता है यह रिश्ता। हमारा कमिटमेंट टूट न जाए। ऐसा डर पैदा करने वाला अहसास बुरा नहीं है। यही जोड़े भी रखता है एक-दूसरे से। हालांकि इसी वजह से हमारे बीच खूब झगड़ा भी होता है। हम हर बार प्रॉमिस करते हैं कि अबकी बार एक-दूसरे को समय न देने या डिमांड पूरी न करने की वजह से झगड़ा नहीं होगा, पर यह प्रॉमिस पूरा नहीं होता। अंतत: लगता है कि यह भी प्रेम का ही रूप है।

डर को कर दें दफन

प्रेम में डर का अहसास स्वाभाविक है, पर यह डर ऐसा न हो कि आपके साथी के अकेलेपन, उसके स्वतंत्र व्यक्तित्व के दायरे में कोहराम मचा दे। प्रेम तो ऐसा होना चाहिए कि आपका साथी आपके साथ कंफर्ट महसूस करे। जब आप चाहें वह पास हो और जब जरूरी हो आपको स्पेस मिल सके। मैं यह इसलिए कह रही हूं कि क्योंकि हमने प्रेम विवाह किया है और प्रेम को परिभाषित करने की कोशिश की है। मैं काम के सिलसिले में अक्सर बाहर रहती हूं। पति हरदम साथ नहीं होते हैं, पर हरदम साथ रहता है हमारा प्रेम।

परिपक्वता मांगती है प्रेम

मैं नहीं समझ पाती कि लोग अपने पार्टनर की चीजों या जिंदगी को लेकर डिमांडिंग क्यों होते हैं और इसे ही प्रेम क्यों कहते हैं? यह प्रेम कतई नहीं हो सकता। यह महज किसी चीज पर मालिकाना हक जताने से ज्यादा कुछ नहीं। यदि मेरा पार्टनर ऐसा करे तो मैं बस उसके चेहरे की ओर देखकर हंस दूंगी। वैसे, मैं दावा कर सकती हूं कि ऐसा व्यक्ति मेरा पार्टनर नहीं हो सकता, जो प्रेम नहीं बस अपनी कमजोरी का प्रदर्शन करते हों। प्रेम तो परिपक्वता मांगता है, जो पार्टनर की व्यक्तिगत जिंदगी को ज्यादा तवज्जो देता है।

 

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