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चीनी उपकर 100 रुपए बढ़ाने की तैयारी

sugarनई दिल्लीः केंद्र सरकार ने मिलों द्वारा बेची जाने वाली चीनी पर उपकर में करीब 100 रुपए प्रति क्विंटल का इजाफा करने की योजना बनाई है। सरकार इस पैसे का इस्तेमाल गन्ना किसानों के खातों में सीधे 4.5 रुपए प्रति क्विंटल भेजने की अपनी महत्त्वाकांक्षी योजना के लिए करेगी। खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने पिछले सप्ताह लोक सभा में चीनी उपकर (संशोधन) विधेयक, 2015 पेश किया था, जिससे केंद्र को ऐसे उपकर की सीमा वर्तमान 25 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 200 रुपए करने की शक्ति मिलेगी। इस समय केंद्र सरकार चीनी पर 24 रुपए प्रति क्विंटल की दर से लगाती है, जबकि इसकी अधिकतम सीमा 25 रुपए प्रति क्विंटल है। अधिनियम में संशोधन से सरकार वास्तविक उपकर को बढ़ाकर 124 रुपए प्रति क्विंटल कर पाएगी, क्योंकि उसके बाद केंद्र को 200 रुपए प्रति क्विंटल तक का उपकर लगाने की शक्ति मिल जाएगी। अधिकारियों ने कहा कि सरकार ने 100 रुपए प्रति क्विंटल उपकर बढ़ाकर करीब 2,500 करोड़ रुपए जुटाने की योजना बनाई है। यह राशि केंद्र के 4.50 रुपए प्रति क्विंटल का उत्पादन प्रोत्साहन देने से पडऩे वाले खर्च की भरपाई के लिए पर्याप्त होगी।
उत्पादन प्रोत्साहन पर नकदी हस्तांतरण का सालाना खर्च करीब 1,147 करोड़ रुपए आने का अनुमान है। हालांकि सूत्रों ने कहा कि चीनी पर 100 रुपए प्रति क्विंटल के भारी-भरकम उपकर से इसकी खुदरा कीमतों में इजाफा नहीं होगा, क्योंकि उपकर तभी संग्रहित किया जाएगा, जब खुदरा कीमतें कम होंगी। उत्पादन से संबंधित प्रत्यक्ष प्रोत्साहन तभी किसानों के खातों में हस्तांतरित किया जाएगा, जब कीमतें कम होंगी और मिलें किसानों को भुगतान की स्थिति में नहीं होंगी। संसद में संशोधन के लिए रखे गए विधेयक में कहा गया है, ”किसानों को गन्ने के बकाया का समय से भुगतान सुनिश्चित करने के लिए बढ़ती देनदारियां और वित्तीय हस्तक्षेपों के कारण उपकर की दर में बढ़ौतरी जरूरी हो गई है।” पिछले महीने एक बड़ी पहल करते हुए आर्थिक मामलों की केंद्रीय कैबिनेट कमेटी (सीसीईए) ने अक्तूबर से शुरू हुए सीजन 2015-16 के लिए गन्ना किसानों को 4.5 रुपए प्रति क्विंटल की उत्पादन सब्सिडी सीधे उनके खाते में भेजने का फैसला किया था। इस पहल से नकदी की किल्लत झेल रही मिलों को बढ़ते बकाया का भुगतान करने में मदद मिलेगी क्योंकि अब उन्हें 230 रुपए प्रति क्विंटल की उचित एवं लाभकारी कीमत (एफआरपी) से इतनी कम राशि चुकानी होगी। मिलों पर अब भी किसानों के करीब 6,500 करोड़ रुपए बकाया हैं।

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