ज्ञान भंडार

जमीन अधिग्रहण की लपटों में सुलगता झारखंड …

img_20161004101032RANCHI : सरकारी Road Show या Invest अभियान के दावे चाहे जो हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ग्रामीण सरकारी और अन्य परियोजनाओं के लिए अपनी पैतृक भूमि को अधिग्रहित होने से बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

कुल मिलाकर झारखंड में बेहद अराजकता और अशांति का स्थिति बनी हुई है और राज्य के लोग उसे ‘झारखंड का सिंगूर’ कहने को मजबूर हैं, जो कि पड़ोसी राज्य बंगाल में टाटा की छोटी कार परियोजना नैनो के लिए तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार की ओर से किए गए भूमि अधिग्रहण के विरोध का प्रतीक है। बता दें कि इसी सिंगूर के कारण बंगाल में तीन दशकों से सत्ता पर काबिज रहे वाम मोर्चा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था।
एनटीपीसी के बड़कागांव परियोजना स्थल पर चार ग्रामीणों की हत्या के बाद से गांव के लोगों के गुस्से को बढ़ा दिया है और विपक्षी पार्टियों को इसका फायदा उठाने का मौका मिल गया है। ठीक उसी तरह जिस तरह सिंगूर में हुआ था और टाटा को अपनी छोटी कार परियोजना वापस लेनी पड़ी थी।
घटना के कारण झारखंड पुलिस को फिर से बर्बर और असंवेदनशील होने का तमगा मिला है, क्योंकि एक महीने के भीतर ही यह दूसरा मौका था, जब पुलिस ने लोगों पर गोलियां बरसाई। विभिन्न हलकों से स्वतंत्र एजेंसी की ओर से जांच कराने और मृतकों के करीबियों को 25 लाख रुपए का मुआवजा और नौकरियां देने की मांग उठ रही है।
विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता योगेंद्र साव ने कहा कि राज्य सरकार एनटीपीसी परियोजना के लिए जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण करने की कोशिश कर रही है। भूमि की दर स्पष्ट नहीं है। वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जबरदस्ती भगाया जा रहा है, ताकि वन भूमि एनटीपीसी को दी जा सके।
बाबूलाल मरांडी और सुबोध कांत सहाय जैसे वरिष्ठ नेताओं ने ग्रामीणों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए परियोजना स्थल का दौरा भी किया है।
2004 में 1.3 करोड़ टन उत्पादन क्षमता वाले पनकरी बारवाडीह, छत्ती बरियातू और केरेदारी कोयला ब्लॉकों की पहचान की गई थी। परियोजना के लिए 8,100 एकड़ भूमि के अधिग्रहण की जरूरत थी, जिसमें से 4,000 एकड़ रैयतों से, 2,900 एकड़ वन भूमि से और 1,200 एकड़ सरकारी जमीन से अधिग्रहित करने की योजना थी। इससे 8,745 परिवारों के प्रभावित होने का अंदेशा था और इसके लिए 8 लाख रुपए प्रति एकड़ का मुआवजा तय किया गया था। 
क्या कहते हैं आकंडे
* 2007 में दो बार जनवरी और जून में फिर से विरोध प्रदर्शन हुए, जिसकी वजह से सैकड़ों ग्रामीणों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। विरोध प्रदर्शन बार-बार चलते रहे। जुलाई 2013 में जब लोगों ने निर्माण स्थल पर काम रोकने की कोशिश की तो पुलिस ने गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। 
*14 अगस्त, 2015 को पुलिस और ग्रामीणों के बीच फिर से झड़पें शुरू हो गईं, जब उन्होंने ढेगा बस्ती में निर्माण कार्य रोकने की कोशिश की उस समय उत्तेजित भीड़ ने निजी और सरकारी वाहनों में आग लगा दी, पुलिस की गोलीबारी में 6 ग्रामीण घायल हो गए।
 

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