दस्तक-विशेष

डूबती कांग्रेस में घमासान

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विवादों से घिरे डॉ. अशोक चौधरी को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से पिछले दिनों हटा दिया। चौधरी पार्टी तोड़ने के आरोपों के घेरे में थे। उन पर आरोप था कि वे जदयू और भाजपा के साथ मिलकर पार्टी तोड़ने में लगे हैं। अशोक चौधरी को हटाने पर कांग्रेस का एक खेमा मान रहा है कि इससे पार्टी का नुकसान होगा तो दूसरा पक्ष दावा कर रहा है कि कांग्रेस अब दुर्दिन से बाहर आ सकेगी। विधान पार्षद दिलीप चौधरी ने आलाकमान से मांग की है कि जिसे कांग्रेस अध्यक्ष पद का जिम्मा दिया जाए वह आया राम, गया राम न हो। ऐसा व्यक्ति हो जिसकी पृष्ठभूमि कांग्रेस की हो। अशोक चौधरी को इस तरह से हटाने को उन्होंने गलत बताया। उनका कहना था कि संगठन चुनाव के बाद भी उन्हें हटाया जा सकता था।

-दिलीप कुमार, पटना

बिहार कांग्रेस के अंदर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। महागठबंधन टूटने और सूबे में सत्ता से बाहर होने के बाद पार्टी को एकजुट रखना मुश्किल हो रहा है। पिछले दिनों यह स्थिति उत्पन्न हो गई थी कि कई विधायकों के पाला बदलने की चर्चा तेज हो गई थी। उनके जदयू में शामिल होने की बात कही जा रही थी। देश के अन्य राज्यों में जद्दोजहद कर रही देश की सबसे पुरानी पार्टी के सामने मुसीबत खड़ी होने पर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक को हस्तक्षेप करना पड़ा था। इसके बाद मामला सुलझा था। हालांकि कुछ दिन पहले ही प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक चौधरी को हटाकर आलाकमान ने यह संकेत दे दिया कि पार्टी विरोधी कार्य करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन इस कार्रवाई का भी विरोध होने लगा है। हाल यह है कि डूबती कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। इस नाव पर सवार अधिकतर नेता दूसरी पार्टी का दामन थामने को बेताब दिख रहे हैं।
कई सालों बाद गठबंधन के सहारे सूबे की सत्ता में शामिल रही कांग्रेस अब अपने दुर्दिन की ओर जाती दिख रही है। कोई ऐसा नेता नहीं दिख रहा जो पार्टी को राज्य में आगे बढ़ा सके। वह तो महागठबंधन की बैसाखी थी, जिसके सहारे उसके 27 विधायक जीतने में सफल रहे थे। अब स्थिति यह है कि पार्टी टूट की ओर बढ़ रही है। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विवादों से घिरे डॉ. अशोक चौधरी को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से पिछले दिनों हटा दिया। चौधरी पार्टी तोड़ने के आरोपों के घेरे में थे। उन पर आरोप था कि वे जदयू और भाजपा के साथ मिलकर पार्टी तोड़ने में लगे हैं। करीब सात विधायक उनके साथ बताए जा रहे थे। दल-बदल कानून आड़े आने के चलते योजना सफल नहीं हो सकी थी। चौधरी पर कार्रवाई तो हो गई है, लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि सूबे में कांग्रेस देर-सबेर टूट न जाए। क्योंकि सत्ता का लालच पार्टी के विधायकों के अंदर से गया नहीं है। उन्हें मालूम है कि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी 27 के आंकड़े तक भी नहीं पहुंचने वाली है। जो विधायक टूटने को तैयार हैं, उन्हें भी मालूम है कि अगली बार वे शायद ही जीतें। ऐसे में वे यह मौका जाने नहीं देना चाहते। खुद अशोक चौधरी प्रदेश अध्यक्ष से हटाए जाने के बाद खुश नहीं हैं। वे इस कार्रवाई का लगातार विरोध कर रहे हैं। उनके पक्ष में पार्टी के कई नेता खड़े भी हो रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि अंदर ही अंदर कुछ खिचड़ी भी पक रही है। जल्द ही कुछ सामने आएगा।
वैसे सोनिया और राहुल गांधी हर घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए हैं। पिछले दिनों जब पार्टी में घमासान की जानकारी मिली थी तब दोनों ने अलग-अलग अपने विधायकों से बातचीत की थी। बिहार के राजनीतिक हालात के बारे में जानकारी ली थी। इसके बाद से ही अशोक चौधरी को हटाने की अटकलें लग रही थीं।
अशोक चौधरी को हटाने पर कांग्रेस का एक खेमा मान रहा है कि इससे पार्टी का नुकसान होगा तो दूसरा पक्ष दावा कर रहा है कि कांग्रेस अब दुर्दिन से बाहर आ सकेगी। विधान पार्षद दिलीप चौधरी ने आलाकमान से मांग की है कि जिसे कांग्रेस अध्यक्ष पद का जिम्मा दिया जाए वह आया राम, गया राम न हो। ऐसा व्यक्ति हो जिसकी पृष्ठभूमि कांग्रेस की हो। अशोक चौधरी को इस तरह से हटाने को उन्होंने गलत बताया। उनका कहना था कि संगठन चुनाव के बाद भी उन्हें हटाया जा सकता था। दूसरी ओर कांग्रेस सचिव रणजीत झा ने कहा कि कई वरिष्ठ लोगों की अनदेखी कर कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। पार्टी का यह फैसला वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी है। उन्होंने कहा कि डॉ. चौधरी को हटाने से पार्टी में हताशा है। इधर, बिहार यूथ कांग्रेस अध्यक्ष कुमार आशीष ने चौधरी को हटाए जाने का स्वागत किया।
बगावत की ओर अशोक चौधरी
अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद से ही डॉ. अशोक चौधरी के सुर बगावती हो गए हैं। उन्होंने खुद को पदमुक्त करने को दलितों का अपमान बताया। उन्होंने बिहार कांग्रेस प्रभारी सीपी जोशी पर कई आरोप लगाए। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि वे कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे। पार्टी में रहकर ही दलित विरोधी नेताओं का पर्दाफाश करेंगे। उनका कहना है कि जिस तरह से उन्हें हटाया गया वह ठीक नहीं। उनकी दो पीढ़ियों ने 70 साल तक कांग्रेस की सेवा की। अपने चार साल के कार्यकाल में किए गए कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि 20 सालों में जितने भी अध्यक्ष आए उन्होंने पार्टी को उस ऊंचाई पर नहीं पहुंचाया। विधानसभा में सदस्यों की संख्या 27 तक गई जबकि विधान परिषद में छह। आरोप लगाया कि पिछले छह महीने से उन्हें पार्टी से हटाने के लिए सीपी जोशी दबाव बना रहे थे। मैंने उन्हें साफ कर दिया था कि मैं राहुल गांधी के निर्देश पर ही इस्तीफा दूंगा। जिसके बाद एक व्यक्ति विशेष को अध्यक्ष बनाने के लिए मेरे खिलाफ साजिश रची गई। आलाकमान को गुमराह कर मुझे बदनाम किया गया। ये वे लोग हैं जिनकी वजह से असम, मणिपुर और बंगाल में कांग्रेस की हार हुई, वे लोग बिहार में भी लुटिया डुबाने की कोशिश में लगे हैं। कहा कि राहुल गांधी दलितों के घर भोजन कर संदेश देना चाहते हैं कि वे समानता के पक्षधर हैं। पर पार्टी के अंदर सीपी जोशी जैसे नेता भी हैं जो दलितों का अपमान करते हैं। कांग्रेस को यदि दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों की राजनीति करनी है तो पार्टी के अंदर इन तबके के लोगों के सम्मान की चिंता भी करनी होगी। डॉ. चौधरी ने कहा कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद जैसे नेता कांग्रेस नेताओं को चिरकुट कहते हैं। इस बारे में आलाकमान को सोचना चाहिए कि वे किसके साथ चलने की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा पार्टी प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से कहा था कि पार्टी को अकेले काम करना चाहिए। जब चुनाव होंगे तो किसके साथ एलायंस करना है तय किया जाएगा। उन्होंने कहा कि उनकी सम्मानजनक विदाई भी हो सकती थी, लेकिन साजिश रची गई। 17 साल से पार्टी की सेवा कर रहा हूं। साढ़े चार साल से प्रदेश अध्यक्ष हूं। मैंने पार्टी को बिहार में खड़ा करने के लिए बहुत कुछ किया है। लेकिन, इनाम के रूप में मुझे बदनामी और मानसिक तनाव के अलावा कुछ नहीं मिला। पार्टी तोड़ने की साजिश का झूठा आरोप लगाया गया। वैसे बिहार में कांग्रेसी विधायक नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच बंटे हुए हैं। कारण है कि मुस्लिम-यादव बहुल विधानसभा क्षेत्रों वाले कांग्रेसी विधायक लालू प्रसाद के खिलाफ जाकर अपना चुनावी भविष्य बिगाड़ना नहीं चाहते। उसी तरह सवर्ण और गैर यादव-मुस्लिम समाज की बहुलता वाले क्षेत्रों से जुड़े कांग्रेसी विधायक जेडीयू-बीजेपी गठबंधन के साथ रहने में अपना फायदा समझते हैं। इनके अलावा जो तात्कालिक लाभ के चक्कर में हैं, उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश ही पसंद हैं। देखा जाए तो देशभर में कांग्रेस के अंदर बगावत का सुर देखने को मिल रहा है। एक के बाद एक पार्टी के बड़े नेता साथ छोड़ रहे हैं। गुजरात से लेकर हिमाचल प्रदेश तक यही स्थिति है। कांग्रेस पूरे देश में लगातार सिकुड़ती जा रही है। इस बारे में आलाकमान को सोचना होगा कि आखिर क्या बात है कि पूरे देश में कांग्रेस का बुरा हाल है। नेता और कार्यकर्ता पार्टी से बिमुख होते जा रहे हैं। अगर इस पर चिंतन कर हल नहीं निकाला गया तो आने वाले दिनों में मुश्किल और बढ़ेगी।

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