दस्तक-विशेष

अंतरिक्ष में भारत की लंबी छलांग

एक साथ 104 उपग्रहों का सफल प्रमोचन

शुकदेव प्रसाद

इस उड़ान में पीएसएलवी ने एक साथ 104 उपग्रहों की ध्रुवीय कक्षा में सफल स्थापना करके एक अभिनव रिकार्ड बनाया जिससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का गौरववर्धन हुआ है जिस पर दुनिया हतप्रभ और विस्मित-विमूढ़ है। हमारे धु्रवीय राकेट (पीएसएलवी-सी9) ने 28 अप्रैल, 2008 को एक साथ दस उपग्रहों का सफल प्रमोचन करके एक नया इतिहास रचा था, इस प्रक्षेपण में दो स्वदेशी उपग्रह ‘कार्टोसैट-2ए’ और आइएमएस (इंडियन मिनी सैटेलाइट) और आठ विदेशी उपग्रह थे जो क्रमश: जापान, कनाडा, डेनमार्क, जर्मनी, नीदरदैंड के थे। बीस मिनटों की यात्रा में हमारे धु्रवीय राकेट ने सभी उपग्रहों का सफल प्रमोचन करके एक नया इतिहास रचा। उस समय हल्की-फुल्की सी खबर मीडिया में थी कि रूस ने कभी 13 उपग्रहों का एक साथ सफल प्रमोचन किया था लेकिन इस बावत रूस ने स्वीकारोक्ति नहीं दी। इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. जी माधवन नायर ने इस पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा था कि हमें जानकारी नहीं है कि अंत में इसका क्या परिणाम रहा?
बहरहाल, आगे चलकर ‘नासा’ के नाम वर्ष 2013 (19 नवंबर) में एक साथ 29 उपग्रहों और रूस के खाते में वर्ष 2014 (19 जून) में 37 उपग्रहों का एक साथ प्रक्षेपण का रिकार्ड दर्ज है। इसरो ने भी 22 जून, 2016 को (पीएसएलवी-सी-34) एक साथ 20 उपग्रहों का सफल प्रमोचन करके एक अभिनव रिकार्ड बनाया। उपग्रहों के इस बेड़े में 3 स्वदेशी और 17 विदेशी उपग्रह थे जिसमें अमेरिका के ही 13 उपग्रह (स्काईसैट जेन 2-1 और 12 डोव उपग्रह) थे। अब हमारी राकेट प्रणाली तकनीकी दृष्टि से इतनी परिपक्व हो चुकी है कि सारी दुनिया हमारे धु्रवीय राकेट पर भरोसा करने लगी है और अपने उपग्रहों के प्रमोचन के लिए उद्यत है।
बताते चलें कि हमारे धु्रवीय राकेट की पहली और एक मात्र उड़ान (पीएसएलवी-डी 1) जो 20 सितंबर 1993 को श्रीहरिकोटा से आयोजित की गई थी, विफल रही। इस उड़ान में राकेट के साथ सवार हमारा उपग्रह ‘आई आर एस-1ई’ भी विनष्ट हो गया था। इस झटके से उबर कर हमने नई प्रणाली को मजबूत करने का काम किया और फिर उसके बाद हमारे धु्रवीय राकेट तकनीक ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। धु्रवीय राकेट की सद्य: उड़ान ‘पीएसएलवी-सी37’ के पूर्व तक हम 79 विदेशी और 42 स्वदेशी उपग्रहों का सफल प्रमोचन कर चुके हैं। अपनी दूसरी सफल उड़ान के बाद पीएसएलवी अपने नाम स्थापित किए नाना कीर्तिमान जिसमें ‘चंद्र’ और ‘मंगल’ मिशन की कामयाबियां बेमिसाल हैं। अंतत: वह ऐतिहासिक क्षण आ ही गया जिसका हमें अरसे से इंतजार था। हमारे ध्रुवीय राकेट पीएसएलवी-सी 37 ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा (आंध्र) से 15 फरवरी 2017 को प्रात: 9:28 बजे उड़ान भरी और उसने 104 उपग्रहों को भिन्न-भिन्न कक्षाओं में कुशलतापूर्वक स्थापित करके एक अभिनव विश्व रिकार्ड बनाया। लिफ्ट ऑफ के 29 मिनटों के अंतराल में मिशन संपूरित हुआ और हमारे धु्रवीय राकेट ने सभी 104 उपग्रहों की उनकी भिन्न-भिन्न कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापना की। अंतरिक्ष संधानों के इतिहास में इससे पूर्व कभी ऐसा नहीं हुआ था। न भूतो:।
इन उपग्रहों में 3 भारतीय और 101 विदेशी उपग्रह हैं। भारतीय उपग्रहों में सर्व प्रमुख हमारा सुदूर संवेदी उपग्रह ‘कार्टोसैट-2डी’ है (भार 714 किग्रा), दो नैनो उपग्रह- आइ एन एस-1ए और 1बी हैं जिनके भार 9-9 किग्रा. के हैं। सारे उपग्रहों का कुल भार 1378 किग्रा है। ध्रुवीय राकेट की सद्य: सफल उड़ान में एक अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘प्लेनेट’ के ही 88 उपग्रह हैं जिनमें प्रत्येक का भार 5-5 किलोग्राम है। इन लघु क्यूब सैट्स को ‘डोव’ या ‘फ्लाक-3 पी’ भी कहा जाता है। इन 88 उपग्रहों का एक साथ प्रमोचन भी एक रिकार्ड ही है। ‘प्लेनेट’ ने 15वीं बार अपने डोव उपग्रहों का प्रमोचन किया है। एक नजरिए से देखा जाय तो डोव उपग्रहों की संख्या अब 100 हो चुकी है। 12 डोव उपग्रह या ‘फ्लाक-2 पी’ पहले से ही अंतरिक्ष में चक्कर काट रहे हैं। इनकी भी स्थापना हमारे धु्रवीय राकेट (पीएसएलवी-सी 34) ने 22 जून, 2016 को की थी। नासा के अवकाश प्राप्त वैज्ञानिकों द्वारा स्थापित कंपनी प्लेनेट ने दूसरी बार इसरो की सेवा ली है।
डोव उपग्रहों की निर्माता एक अमेरिकी कंपनी प्लेनेट इंकारपोरेशन है जिसका मुख्यालय सैन फ्रांसिस्को में है। यह अंतरिक्ष एजेंसी अपने उपग्रहों से पूरी पृथ्वी का छायांकन करती है और सुदूर संवेदी आंकड़ों की बिक्री करके धनोपार्जन करती है। इस प्रक्षेपण में एक और अमेरिकी कंपनी के ‘लीमर’ शृंखला के 8 उपग्रहों का भी प्रक्षेपण किया गया है।
‘लीमर’ श्रृंखला के नैनो उपग्रहों का निर्माण एक और अमेरिकी कंपनी स्पायर ग्लोबल इंकारपोरेशन ने किया है, इसका भी मुख्यालय सैन फ्रांसिस्को में है। इस प्रकार हम देखते हैं कि 104 उपग्रहों के बेड़े में 96 उपग्रह तो अमेरिका के ही हैं, तीन भारतीय उपग्रह और शेष 5 उपग्रह क्रमश: नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, इजरायल, कजाखस्तान, और संयुक्त अरब अमीरात के हैं जो मात्र तकनीकी प्रदर्शक हैं। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नवत है-
1. नीदरलैंड द्वारा निर्मित ‘पीएस 3’ उपग्रह जिसका भार 3 किलोग्राम है।
2. स्विट्जरलैंड द्वारा निर्मित ‘डीडो-2’ उपग्रह जिसका भार 4.2 किलोग्राम है।
3. इस्राइल निर्मित ‘बीजीयूसैट’ उपग्रह जिसका भार 4.3 किलोग्राम है।
4. कजाखस्तान निर्मित ‘अल-फाराब़ी-1’ जिसका भार मात्र 1.7 किलोग्राम है।
5. संयुक्त अरब अमीरात निर्मित ‘नाइफ़-1’ जिसका भार 1.1 किलोग्राम है। ये सभी उपग्रह मात्र तकनीकी प्रदर्शक हैं।
ऐसी भरोसेमंद प्रणाली का कोई विकल्प भी नहीं है। इसरो की ख्याति इस बात में भी है कि इसने अत्यंत सीमित और लघु बजट में कई मिशनों को अंजाम दिया है जो कोई दूसरा राष्ट्र कर ही नहीं सकता था।
मसलन यह कि हमारे चंद्रयान का बजट मात्र 386 करोड़, मंगलयान का बजट मात्र 450 करोड़ रुपये का था और इतना ही नहीं, भारत ने अमेरिकी जीपीएस के पैटर्न पर अपनी जो नैविगेशन प्रणाली विकसित की है, उसका कुल बजट मात्र 1420 करोड़ रुपये है। इसमें 7 उपग्रहों का संजाल है जो भारत की मुख्य भूमि केसाथ 1500 किमी. के इर्द-गिर्द के दायरे के जल, नभ और थल के चप्पे-चप्पे पर अपनी नज़र रख रहे है। ध्रुवीय राकेट की सद्य: उड़ान 39वीं और लगातार 38वीं सफल उड़ान थी जिसमें इसके एक्स-एल (एक्सट्रा लार्ज) संस्करण का इस्तेमाल किया गया। ध्रुवीय राकेट चार चरणीय राकेट है जिसके पहले और तीसरे चरण में ठोस तथा दूसरे और चौथे चरण में द्रव प्रणादेकों का इस्तेमाल होता है। इसके स्टैंडर्ड मॉडल में पहले चरण के साथ संलग्न 6 बूस्टरों में प्रत्येक में 9 टन ठोस प्रणोदक भरा जाता है लेकिन पेलोड अधिक होने पर (उपग्रहों का भार 1100 किग्रा. से अधिक) राकेट को अधिक शक्ति देने के लिए इसके प्रत्येक बूस्टर में 12 टन प्रणोदक प्रयुक्त किया जाता है। इसी को ध्रुवीय राकेट का एक्स एल वर्जन कहते हैं जिसका इस्तेमाल हम ‘चंद्रयान-1’ और ‘मार्स आर्बिटर मिशन’ में सफलतापूर्वक कर चुके हैं। वैसे एक्स-एल वर्जन का हम 16 बार इस्तेमाल कर चुके हैं। 

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