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तीन तलाक सिर्फ इलेक्शन एजेंडा या फिर महिलाओं का सशक्तिकरण

ट्रिपल तलाक का मुद्दा इस चुनावी मौसम में फिर गरमा गया है। राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे को जमकर भुना रही हैं।

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का मतदान शनिवार से शुरू होने जा रहा है। इस बीच भाजपा ने ट्रिपल तलाक का मुद्दा उठा दिया है। इसके साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण की राजनीति तेज हो गई है। भाजपा ने चुनावी रैलियों में इस मुद्दे को जमकर उठाया। सबसे पहले केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस मुद्दे की राजनीति को गरमाया। उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद केंद्र सरकार ट्रिपल तलाक पर बहुत बड़ा फैसला कर सकती है।

सबसे बड़ी बात ये है कि ट्रिपल तलाक सिर्फ चुनावी एजेंडा है या फिर वाकई में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कदम उठाया जाएगा। हालांकि भाजपा इस मुद्दे को लेकर गंभीर नजर आ रही है क्योंकि सबसे पहले इस मुद्दे को भाजपा ने उठाया था। जब मुद्दा उठाया गया है तो इस पर राजनीति न हो ऐसा हो नहीं सकता।

भाजपा ने इस मुद्दे पर विरोधी पार्टियों को अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा तो कांग्रेस पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि भाजपा चुनाव में ध्रुवीकरण करने के लिए इस तरह की बयानबाजी कर रही है जो सही नहीं है। तो वहीं एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि उन्होंने तीन बार तलाक बोल दिया है एक तलाक पीएम मोदी को, एक तलाक अखिलेश यादव को और एक तलाक कांग्रेस को।

हालांकि इस मामले का फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है लेकिन चुनावी मौसम में इस मुद्दे को भाजपा भुनाना चाहती है।

इस गंभीर मामले पर भाजपा का कहना है कि तीन तलाक महिलाओं के सम्मान के खिलाफ है और इस पर रोक लगाने की सख्त जरूरत है। केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा, ‘यूपी विधानसभा चुनावों के बाद सरकार ट्रिपल तलाक पर बैन लगाने के लिए बड़ा कदम उठा सकती है।’ प्रसाद के मुताबिक, केंद्र सरकार ‘समाज के कुरीतियों’ को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रसाद ने यह भी कहा कि सरकार तीन बिंदुओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी यह मामला उठाएगी।

प्रसाद ने ट्रिपल तलाक को एक शोषणकारी प्रावधान बताते हुए कहा कि यह सवाल किसी ईमान या धर्म का नहीं बल्कि नारी न्याय, नारी समानता और नारी सम्मान का है। कोई भी कुप्रथा किसी आस्था का हिस्सा नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि दुनिया के 20 इस्लामी देश ट्रिपल तलाक की प्रथा को समाप्त कर चुके हैं। वहां इसे शरीयत में दखलंदाजी नहीं माना गया। ऐसे में भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में इस रिवाज को खत्म किया जाना शरीयत के खिलाफ कैसे हो सकता है।

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