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दिव्यांग को 8 किमी तक ठेले पर ढोना पड़ा पिता का शव, पैसे न होने से नहीं हुआ अंतिम संस्कार

बाराबंकी : जिले में त्रिवेदीगंज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बदइंतजामी के चलते दिव्यांग पुत्र को अपने बीमार पिता को इलाज के लिए ठेले पर रखकर हॉस्पिटल लाना पड़ा, निःसंदेह सरकार और स्वास्थ्य विभाग बेहतर व्यवस्था का लाख दावा कर ले, लेकिन सिस्टम की खस्ताहाल व्यवस्था गरीबों के लिए अभिशाप बन रही है। मिली जानकारी के अनुसार दिव्यांग पुत्र राजकुमार को अपनी छोटी बहन मंजू के साथ बीमार पिता मंशाराम (50) को न केवल हॉस्पिटल तक लाने के लिए ठेले का सहारा लेना पड़ा, बल्कि बीमार पिता की मौत के बाद पिता की लाश को भी ठेले से ही वापस भी ले जाना पड़ा, क्योंकि हॉस्पिटल में पिता की जान नहीं बचाई जा सकी।
पिता की मौत के दुखी दिव्यांग पुत्र की व्यथा यहीं नहीं खत्म हुई, मौत के बाद पिता के शव को ले जाने के लिए भाई-बहन को हॉस्पिटल के बाहर घंटों भटकता पड़ा और जब उनकी मदद के लिए कोई नहीं आया, तो थक हारकर आंखों में आंसू लिए दिव्यांग पुत्र और उसकी छोटी बहन के साथ पिता के शव के ठेले पर लादकर वापस आठ किमी पैदल चलकर लोनी कटरा पहुंचा। कटरा पहुंचने पर भी दिव्यांग की दुश्वारियां कम नहीं हुईं, गरीब दिव्यांग पुत्र के पास पिता के अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे, लिहाजा अंतिम संस्कार भी नहीं हो सका। हालांकि गांव वाले पैसे का इंतजाम कर शव के अंतिम संस्कार कराने की बात जरुर कही है, लेकिन मंगलवार सुबह तक शव का अंतिम संस्कार नहीं हो सका।
जिले के सीएमओ रमेश चंद्र ने बताया कि किसी ने भी 108 एम्बुलेंस पर फोन कर सूचना नहीं दी। अगर सूचना मिलती तो बीमार व्यक्ति को तुरंत अस्पताल पहुंचाया जा सकता था और जहां तक शव ले जाने की बात है तो उसे एम्बुलेंस में नहीं ले जाया जा सकता, उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल में ही बस दो शव वाहन हैं, सीएचसी स्तर पर शव वाहन की व्यवस्था नहीं है। सीएचसी पर मौजूद डॉ प्रदीप कुमार ने कहा कि मरीज जब तक यहां पहुंचा तब तक उसकी मौत हो चुकी थी, सीएचसी से शव वापस भेजने की कोई व्यवस्था नहीं है, वहीं, प्रधान प्रतिनिधि सत्यदेव साहू ने बताया कि बाहर होने के कारण सहायता के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं पहुंच सके। सीएचसी अधीक्षक मुकुंद पटेल ने कहा, “ मैं जिला मुख्यालय पर डीएम की मीटिंग में था, यदि मौजूद होता तो जरुर शव वापस भिजवाता, चाहे इसके लिए अपने निजी खर्च से व्यवस्था ही क्यों न करनी पड़ती।

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