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धनतेरस, धन्वन्तरी तथा दीवाली पूजा कथा व वैज्ञानिक पहलू

डा० भरत राज सिंह

brsinghधार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस दिन का विशेष महत्त्व है। शास्त्रों में वर्णन है कि धनतेरस दीपावली त्यौहार आने की पूर्व सूचना देता है | भारत वर्ष में सर्वाधिक धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहार दीपावली का प्रारंभ धनतेरस से हो जाता है। इसी दिन से घरों की लिपाई-पुताई प्रारम्भ कर देते हैं। दीपावली के लिए विविध वस्तुओं की ख़रीद आज की जाती है। इस दिन से कोई किसी को अपनी वस्तु उधार नहीं देता। इसके उपलक्ष्य में बाज़ारों से नए बर्तन, वस्त्र, दीपावली पूजन हेतु लक्ष्मी-गणेश, खिलौने, खील-बताशे तथा सोने-चांदी के जेवर आदि भी ख़रीदे जाते हैं।

 धनतेरस व धन्वन्तरी तथा दीवाली पर्व का महत्व

प्रचलित कथा के अनुसार एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे, लक्ष्मी जी ने भी साथ चलने का आग्रह किया। एक स्थान पर भगवान विष्णु लक्ष्मी से बोले-‘जब तक मैं न आऊं, तुम यहाँ ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं | परन्तु लक्ष्मी जी से रहा न गया, पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही दूर पर सरसों का खेत दिखाई दिया, उससे वह मुग्ध हो गईं और उसके फूल तोड़कर अपना शृंगार किया और आगे चलीं। आगे गन्ने (ईख) का खेत खड़ा था। लक्ष्मी जी ने चार गन्ने लिए और रस चूसने लगीं। चोरी के अपराध में तुम उस किसान की 12 वर्ष तक इस अपराध की सज़ा के रूप में सेवा करो।’ ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। लक्ष्मी किसान के घर रहने लगीं। 12 वर्ष बाद वारुणी पर्व के दिन भगवन विष्णू लक्ष्मी जी को लेने आये और किसान को गंगा स्नान के लिए चार कौरियों के साथ भेज दिया किसान ने लक्ष्मी जी को वापस भेजने के लिए मना कर दिया | तब भगवान ने किसान से कहा- ‘इन्हें कौन जाने देता है, परन्तु ये तो चंचला हैं, कहीं ठहरती ही नहीं, इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था, जो कि 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तब लक्ष्मीजी ने कहा-‘हे किसान! तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं जैसा करो। कल तेरस है, मैं तुम्हारे लिए धनतेरस मनाऊंगी। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सांयकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपया भरकर मेरे निमित्त रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी। मैं इस दिन की पूजा करने से वर्ष भर तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वे दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं और भगवान देखते ही रह गए। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी भांति वह हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा करने लगा।

vastu-kuber-siddhiयह भी पौराणिक कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरी‍ अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। उन्होंने देवताओं को अमृतपान कराकर अमर कर दिया था। तभी से धन्वन्तरी पूजा की जाने लगी  और स्वास्थय के लिए धनतेरस के दिन से आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता  धन्वन्तरि भगवान का वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज द्वारा पूजन कर धन्वन्तरि जयन्ती मनाया जाता है। 

वैज्ञानिक पक्ष

उपरोक्त कथा से यह स्पष्ट होता है कि त्रयोदसी अर्थात 13 संख्या का कोई विशेष महत्व है | कृष्ण-पक्ष की त्रोयोदास्मी को चन्द्र दर्शन नाम-मात्र ही रहता है | शरद पूर्णिमा के दिन पूर्ण-चन्द्र के द्वारा सूर्य की परावर्तित किरणों के गुणों का व्याख्यान अमृत वर्षा से की गयी है| अतः कृष्णा पक्ष के 13वे तिथि को परावर्तित किरणों की मात्रा बहुत कम होती है और अमृत-पान का एक पक्ष (15 दिनो का) करीब बीतने को आ गया है | ऐसे में शरद पूर्णिमा की खीर के 12 दिन के सेवन से स्वास्थ्य पूर्णतः ठीक हो जाता है इस लिए धन्वन्तरी औषधि के जनक की जयंती कृष्णा पक्ष की 13वी तिथि को मनाई जाती है | स्वस्थजनो के यंहा  धनधान्य की बढ़ोत्तरी होने जाने से भगवन धन्वन्तरी जी की पूजा व अर्चना का प्रावधान प्रकाश-दीप जला कर व खुसिया  मनाकर किया जाता है | यमराज की पूजा आकस्मिक निधन से बचने के लिए तथा अमावस्या के दिन पूर्ण प्रकाश पैदा करने हेतु मिटटी के दीपो को तेल की बत्तियो के साथ लगाकर जलाने से एक तरह अँधेरे से प्रकाश की तरफ बढने तथा दूसरी तरफ कीट-पतंगों के नष्ट होने से शरीर  स्वस्थ व निरोगी हो जाता है | घर में धनधान्य में बढोत्तरी हेतु लक्ष्मी माँ की पूजा अर्चना का प्राविधान शास्त्रों में इन्ही तर्कों के परिपेक्ष्य में किया गया प्रतीत होता है |

आइए इस हर्ष उल्लास के पर्व धनतेरस, धन्वन्तरी तथा महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना के इस प्रकाश के त्यौहार दीवाली को पूरे परिवार के साथ खुशियों के साथ मनाये और समाज में भाई-चारा व एकता का सन्देश प्रेषित करे |  

धनतेरस पूजन कैसे करें

अ) कुबेर पूजन विधि

  • शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गादी बिछाएं अथवा पुरानी गादी को ही साफ कर पुनः स्थापित करें।
  • पश्चात नवीन बसना बिछाएं।
  • सायंकाल पश्चात तेरह दीपक प्रज्वलित कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करते हैं।

ब) यमराज पूजन विधि

  • इस दिन वैदिकदेवता यमराज का पूजन किया जाता है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं की जाती अपितु रात्रि होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है।
  • इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता हैं इस दीप को जमदीवा अर्थातयमराज का दीपक कहा जाता है।
  • रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर, चार बत्तियां जलाती हैं। दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए।
  • जल, रोली,फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर स्त्रियां यम का पूजन करती हैं। चूंकि यह दीपक मृत्यु के नियन्त्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, अत: दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन तो करें ही, साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो।

धन की देवता कुबेर मन्त्र जाप

  ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नमः

इस मन्त्र का जाप आप रोज की पूजा में सुबह शाम करे. इस मन्त्र का जाप 108 बार करना चाहिए तथा जाप के दौरान कुबेर देव का ध्यान करे. मन्त्र जाप के समाप्ति के पश्चात यदि हनुमान चालीसा का पाठ किया जाय तो यह अति उत्तम होता है|

सावधानियाँ

  • सावधान और सजग रहें। असावधानी और लापरवाही से मनुष्य बहुत कुछ खो बैठता है।विजयादशमी और दीपावली के आगमन पर इस त्योहार का आनंद, ख़ुशी और उत्साह बनाये रखने के लिए सावधानीपूर्वक रहें।
  • पटाखों के साथ खिलवाड़ न करें। उचित दूरी से पटाखे चलाएँ।
  • मिठाइयों और पकवानों की शुद्धता, पवित्रता का ध्यान रखें ।
  • भारतीय संस्कृतिके अनुसार आदर्शों व सादगी से मनायें। पाश्चात्य जगत का अंधानुकरण ना करें।
  • पटाखे घर से दूर चलायें और आस-पास के लोगों की असुविधा के प्रति सजग रहें।
  • स्वच्छ्ता और पर्यावरण का ध्यान रखें।
  • पटाखों से बच्चों को उचित दूरी बनाये रखने और सावधानियों को प्रयोग करने का सहज ज्ञान दें।

 

 

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