दस्तक-विशेष

नेताजी का निर्णय ही सर्वोपरि: शिवपाल

साक्षात्कार : शिवपाल सिंह यादव

राम कुमार सिंह/ विनय राय 

shivpal yadavशिवपाल यादव यानि समाजवादी पार्टी के सेनापति समाजवादी पार्टी और उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक ऐसा नाम है जो पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के भाई हैं और उनके सेकेंड लेफ्टिनेंट के तौर पर हमेशा उनके साथ रहते हुए राजनीति को नेताजी की नजरों से देखने की समझ रखते हैं।नेताजी क्या चाहते हैं या उनका अगला मूव क्या होगा ये शिवपाल यादव बिना कहे ही समझ जाते हैं। एक सहयोगी के रूप में नेताजी के कार्यों को अमली जामा पहनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शिवपाल मृदुभाषी तो हैं ही, मीडिया और ब्यूरोक्रेसी का एक बड़ा तबका उनका फैन है पार्टी के कार्यकर्ताओं पर भी उनकी पकड़ जबर्दस्त है। इसके बावजूद उनके विभागों के अधिकारी और कर्मचारी उनके नाम के भयमात्र से संयमित रहते हैं। नेताजी के साथ रहते हुए वे समाजवादी पार्टी के शुरुआती दौर से ही नेताजी के पसंदीदा सहयोगी बने रहे। पहले तो वे नेताजी के भाई होने के नाते केवल अनुज की ही भूमिका में उनके आगे-पीछे तैनात रहते थे पर इसी दौरान इमर्जेन्सी के समय समाजवादी आंदोलन में जब नेताजी इटावा जेल में बंद हुए तो बाहरी लोगों से संपर्क साधने का माध्यम बने। नेताजी की हर गोपनीय सूचनाएं और चिट्ठियों को पहुंचाने की जिम्मेदारी इनकी होती थी। इस दौरान दूसरे नेताओं से भी उनका मिलना-जुलना हुआ और राजनीति की समझ बढ़ने लगी। राजनीतिक सक्रियता में अचानक शिवपाल यादव की भूमिका एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में बन गयी और शिवपाल यादव अपनी राजनीति की शुरुआत भी यही से मानते हैं। नेताजी के जेल में बंद होने के समय रोज दिन में उनसे दो से तीन बार मुलाकात करना और बाहर आकर इमर्जेन्सी के खिलाफ चल रहे आंदोलन में नेताजी के विचारों को मूर्त रूप देना उनकी प्राथमिकता रही। इस कार्य को करते हुए उन्हें राजनीति की समझ आती गयी। जैन इंटर कॉलेज करहल जिला मैनपुरी में जहां नेताजी शिक्षण कार्य करते थे, वहीं से शिवपाल यादव ने कक्षा छह से लेकर इंटर तक की पढ़ाई की। वे गांव से चार किलोमीटर दूर कॉलेज पैदल ही जाया करते थे। नेताजी के पास एक मात्र साइकिल होती थी जिस पर कभी-कभी सवारी करने का अवसर इनको भी मिल जाया करता था। गांव से स्कूल तक सड़क न होने के कारण बारिश में जलभराव के कारण तीन-चार महीनों की यात्रा पैंट और पैजामे को कंधे पर टांग कर होती थी। गांव में बिजली न होने के कारण लालटेन जलाकर पढ़ाई करने वाले शिवपाल यादव पढ़ाई के दौरान छुट्टियां होने पर घर में खेती-बारी का काम भी स्वयं ही करते थे। यहां तक कि उन दिनों नेताजी के कपड़े धुलने और प्रेस करवाने का कार्य भी स्वयं ही एक प्रिय भ्राता की तरह सहर्ष करते रहते थे। नेताजी के प्रति उनकी श्रद्धा और हर छोटे-बड़े कार्यों में अपनी कार्यकुशलता ने उन्हें नेताजी का सबसे नजदीकी सहयोगी बना दिया पार्टी के शुरुआती दौर से हर मोर्चे का सिपहसालार इन्हीं को बनाया गया। नेताजी जब राजनीति की ऊंचाइयों पर पहुंच गये तो उसके बाद का हर उपचुनाव में शिवपाल यादव ने ही मोर्चा संभाला और हर किला फतह करते गये। उनकी कठिन मोर्चों पर होने वाली परीक्षा में उत्तीर्ण होने के कारण उनकी भूमिका पार्टी में प्रमुख सहयोगी की बनती चली गयी। नेताजी के पहलवानी से भी प्रभावित शिवपाल यादव खुद भी अखाड़े में दांव आजमाते रहे।

स्कूल स्तर पर होने वाले कुश्ती के आयोजनों में खूब बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले शिवपाल यादव ने कुश्ती के जो दांव-पेंच नेताजी से सीखे उनका इस्तेमाल राजनीति में बखूबी करते रहे। जसवंत नगर से जब तक नेताजी चुनाव लड़ते रहे तब तक उनके एलेक्शन एजेंट शिवपाल यादव ही होते थे और जब मुलायम सिंह यादव लोकसभा चुनाव लड़े उसके बाद जसवंत नगर सीट खाली होने पर 1996 में पहली बार जसवंत नगर विधानसभा से चुनाव लड़कर विधायक बनने वाले शिवपाल यादव आज तक लगातार विधायक हैं।
अभी तक उनको कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा है। उनकी सांगठनिक क्षमता का लोहा तो विरोधी भी मानते हैं। उन्हें हर एक विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र का समीकरण कंठस्थ है। कार्यकर्ता चाहे जिस भी जिले से आया हो, उसे नाम व क्षेत्र से पहचानने में उन्हें तनिक भी देर नहीं लगती है। आज प्रदेश के कद्दावर मंत्री रहते हुए पार्टी में उनकी भूमिका कई विरोधाभासों के बाद भी महत्वपूर्ण बनी हुई है। उनका कहना है कि आज के राजनीतिक लोग तो लग्जरी गाड़ियों से चुनाव प्रचार करते हैं, हम लोग तो पार्टी के ऐसे कार्यकर्ता रहे हैं कि पैदल और साइकिल से चलकर पार्टी को मजबूत करने का काम किया है। कुछ समय बाद प्रचार के लिए एकाध बार किराये की जीप मिल जाया करती थी जिसका किराया देने के बाद भी धक्का फ्री में लगाना पड़ता था तब कहीं वह जीप चल पाती थी। उनके अनुसार उन्होंने जीरो से शुरुआत की। 2003 में जब बहुजन समाज पार्टी और भाजपा का अंतरविरोध उत्पन्न हुआ तो उस विरोध से उपजे समीकरण को समाजवादी पार्टी के पक्ष में खड़ा करके और बागियों को अपने साथ जोड़कर शिवपाल यादव का कौशल था कि उत्तर प्रदेश में फिर से समाजवादी पार्टी की सरकार बन गयी। बीते पिछले राजनीतिक जीवन के फ्लैशबैक की कहानी उन्हीं की जुबानी संपादक राम कुमार सिंह और राजनीतिक संपादक विनय राय से साझा की और हमारे सवालों के जवाब भी दिये। उनसे बातचीत के प्रमुख अंश-

कुछ अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में बताइये?
मैं एक साधारण किसान का बेटा हूं। मेरे घर में खेती-बारी ही प्रमुख व्यवसाय रही। खेती के साथ-साथ पशुपालन का कार्य भी घर में होता था। जिसकी जिम्मेदारी हम सब परिवार वालों की होती थी। पर एक बात थी कि हमारे घर में पिता जी का आदेश था कि घर में पली गाय-भैंसों से निकलने वाले दूध को बेचने की मनाही थी। उनका कहना था कि घर में जो मेहमान आते हैं, अगर घी-दूध बेच देंगे तो उनका क्या खिलाएंगे। हमारे पिताजी इस विचारधारा के थे कि गाय का दूध दूहते समय कभी भी चारों थन का दूध नहीं निकालने देते थे। उनका मानना था कि गाय के दो थन का दूध हमारे परिवार के लिए और दो थन का दूध गाय के बछड़े के लिए होना चाहिए। अगर सारा दूध हमी लोग ले लेंगे तो गाय अपने बछड़े को क्या पिलायेगी। तो ऐसी मानसिकता हमारे परिवार की पृष्ठभूमि की झलक तो आपको बता ही देगी।
आपकी पार्टी का चुनाव चिह्न साइकिल है और आपने बातचीत में ये भी कहा कि पिछले समय में साइकिल ही आपके परिवार का मुख्य सवारी का साधन थी तो क्या कभी ऐसा अवसर भी मिला कि साइकिल की सवारी नेताजी कर रहे हों और ड्राइविंग सीट पर आप हों?
हंसते हुए- हां ऐसा मौका कई बार आया। राजनीतिक जीवन के प्रारंभिक काल में जब हम राजनीतिक कार्यक्रमों में जाया-आया करते थे, प्राय: हम लोग तो पैदल ही जाते थे लेकिन नेताजी के पास एक साइकिल थी, वो उससे ही अपनी यात्रा करते थे पर कभी-कभी जब कार्यक्रम खत्म होने में विलम्ब हो जाता था तो एक ही साइकिल से हम लोग वापस आया करते थे। तब नेताजी बैठते थे और हम साइकिल चलाते थे।

पहली बार मंत्री कब बने?
2003 में समाजवादी पार्टी की सरकार जब उत्तर प्रदेश में बनी तब मैं पहली बार कृषि मंत्री बनाया गया। मंत्री पद जब तय किये जा रहे थे तो मेरी इच्छा थी कि मुझे पीडब्ल्यूडी और सिंचाई जैसे विभागों का मंत्री बनाया जाये पर नेताजी ने कहा कि इन विभागों को चलाने के लिए तकनीकी सूझबूझ की जरूरत पड़ती है। तो मैंने कहा कि मैं खेती-बारी जानता हूं, तो उसी से जुड़ा विभाग मुझे दे दीजिए और मैं पहली बार उत्तर प्रदेश का कृषि मंत्री बनाया गया। और उसके साथ ही मंडी परिषद का विभाग भी दिया गया।

फिर दुबारा आप लोक निर्माण और सिंचाई मंत्री कैसे बने?
जब मैं कृषि मंत्री था तो मंडी परिषद विभाग की जिम्मेदारी भी मेरे पास थी और मंडी विभाग के अंतर्गत आने वाली सड़कों का निर्माण हमारे द्वारा कराया गया। नेताजी कई कार्यक्रमों में जब जाते थे तो वहां के लोग उनसे ये कहा करते थे कि मंडी विभाग की सड़कें बहुत अच्छी बनी हैं तो नेताजी ने सवाल किया सड़कें तो पीडब्ल्यूडी विभाग अच्छा बनाता है, मंडी परिषद की सड़कें कैसे अच्छी हो सकती हैं? तो लोगों ने कहा कि नहीं, मंडी परिषद की सड़कें पीडब्ल्यूडी से भी अच्छी बनी हैं। इसी बीच जब कुसुम राय ने पार्टी छोड़ी तब उनके पास सिंचाई और लोक निर्माण विभाग हुआ करते थे। उसी के बाद पार्टी के लोगों की तारीफ से प्रभावित होकर नेताजी ने मुझे लोक निर्माण और सिंचाई विभाग का मंत्री बनाया।

प्रदेश में बेमौसम बारिश से बेहाल किसानों के लिए मुआवजे के नाम पर राजनीति हो रही है?
राज्य सरकार ने बारिश के बाद तुरंत राहत पहुंचाने के लिए 200 करोड़ रुपये आपदा फंड से बांटे। बारिश प्रभावित इलाकों का मुआयना करने के बाद प्रदेश सरकार की आरे से 1133 करोड़ रुपये जिलों में सहायता राशि के तौर पर भेजा गया। जबकि केन्द्र से 7700 करोड़ रुपये की मांग की गयी लेकिन लगातार केन्द्रीय मंत्रियों के नुकसान का जायजा लेने के बावजूद केन्द्र से एक रुपया भी प्रदेश को नहीं मिला है। सिर्फ इतना ही नहीं जिस रकम को लेकर केन्द्रीय गृृहमंत्री श्रेय लेने में जुटे हैं उसके बारे में भी आपको बता दें। दरअसल फरवरी, मार्च 2014 में प्रदेश में ओलावृृष्टि हुई थी उसके लिए प्रदेश सरकार की ओर से 12 मई 2014 को 365.28 करोड़ के मुआवजे की मांग की थी जिसमें 13 फरवरी 2015 को केन्द्र सरकार की ओर से 32 करोड़ रुपये रिलीज किये गये। यानि कि 2014 में मांगी गयी रकम 2015 में दी गयी। अब आप ही बताइये कि क्या केन्द्र की जिम्मेदारी नहीं है।

गोमती की सफाई को लेकर सरकार ने जो वादा किया था क्या लगता है वो वक्त पर पूरा हो सकेगा?
गोमती नदी की सफाई कुड़ियाघाट से गोमती बैराज तक 8 किलोमीटर के दरम्यान पहले फेज में होनी है। इसके लिए कुड़ियाघाट पर गोमती के बीचोबीच बांध बनाकर गोमती की रफ्तार रोक दी गयी है। गोमती बैराज के गेट खोलने से अब कुड़ियाघाट और गोमती के बीच नदी का जलस्तर कम होते ही 35 जेसीबी मशीनों की मदद से अगले एक महीने तक गोमती में जमा गाद को बाहर निकलने का काम भी शुरू हो गया है। 600 करोड़ की इस परियोजना में गोमती के किनारे सौंदर्यीकरण करके इसका लुक लंदन की टेम्स नदी की तरह किया जायेगा लेकिन फिलहाल इस काम में लम्बा वक्त लगेगा। फिर भी हम कह सकते हैं कि जल्द गोमती की सूरत बदली नजर आयेगी।

पानी को लेकर कई राज्यों में युद्ध जैसे हालात हैं, आपकी सरकार अन्य राज्यों के लिए पानी मुहैया कराएगी?
उत्तर प्रदेश सरकार का धर्म जनता की सेवा करना है। हमने दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल से मीटिंग के दौरान साफ कर दिया है कि दिल्ल्ी की जनता को जितने पानी की जरूरत है उसको हम देने को तैयार हैं। यह फैसला राजनीति नहीं बल्कि मानवता के दृृष्टिकोण से हमने लिया है।

अभी आपकी दिल्ली के मुख्यमंत्री के साथ ओखला जमीन विवाद को लेकर बैठक हुई। क्या बातचीत से समाधान निकलने की गुंजाइश है?
बातचीत से समाधान निकलेगा ऐसी मुझे उम्मीद है। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री के साथ जो बैठक हुई उसमें दिल्ली की मांग नाजायज है। दिल्ली सरकार का दावा है कि जमीन उनकी है और कब्जा यूपी सरकार का है जबकि हमारा दावा है कि जमीन भी हमारी है और कब्जा भी हमारा है। इसलिए अगर सच्चाई के धरातल पर बातचीत होगी तो इसका समाधान एक क्षण में हो जायेगा लेकिन सियासत होगी तो इसका समाधान निकलने में मुश्किल होगी?

क्या ओखला जमीन को लेकर इससे पहले भी संवाद की स्थिति पैदा हुई है।
्रयूपी सरकार से दिल्ली सरकार ने मेट्रो स्टेशन के लिए जमीन की मांग की थी जिसको यूपी सरकार ने स्वीकार करते हुए उपलब्ध कराया था। कामनवेल्थ गेम और खेल गांव के लिए सरकार को जमीन की जरूरत थी जिसकी मांग दिल्ली की सरकार ने की थी। हमारी सरकार ने जमीन उपलब्ध कराया। इसलिए हमारा तर्क है कि हमारी जमीन थी इसलिए पूर्व की सरकार ने मांगी। बेहतर होगा कि विकास कार्यों के लिए बैठकर समाधान ढूंढ़ लिया जाये।
गंगा की सफाई को लेकर केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें कई योजनायें चला रही हैं, क्या उम्मीद है गंगा साफ हो जायेगी?
गंगा सफाई को लेकर मैंने केन्द्र को पत्र लिखा था। जितने भी नदियों में गंदा पानी आता है वो सिर्फ कानपुर से ही नहीं बल्कि काली नदी, हिंडन नदी से भी आता है। इसके साथ दिल्ली के 17 नालों का पानी भी गंगा में आता है। जब तक गंदे पानी पर रोक नहीं लगेगी, तब तक गंगा साफ नहीं हो पाएगी। अधिकारियों को भी कड़े निर्देश दिये जायें और गंदे पानी को गंगा में जाने से रोका जाये तब गंगा की सफाई संभव हो सकेगी।

बिजली के फोरम पर सरकार क्या कर रही है क्योंकि ये हमेशा से ही मुद््दा रहा है?
बिजली के मामले में कहीं न कहीं अधिकारियों की कमी है। कुछ अधिकारियों का राजनीतिकरण हो गया है क्योंकि बिजली होने के बाद भी अधिकारी बिजली देने से आनाकानी कर रहे हैं। पिछली सरकार में पांच सााल जो बिजली पर काम होना चाहिए था वो नहीं हुआ जिसका खामियाजा भी हमें भुगतना पड़ रहा है लेकिन हमारी कोशिश है कि इस बार भी हम 16 घंटे से ज्यादा बिजली जनता को उपलब्ध करायें। बिजली की व्यवस्था सुधारनी पड़ेगी क्योंकि बिजली के बिना अब जीवन संभव नहीं है। इसलिए हमारी सरकार बिजली उत्पादन के क्षेत्र में व्यापक काम कर रही है जिसका परिणाम आप को जल्दी ही दिख जायेगा।

कानून व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े किये जा रहे हैं, आखिर क्या वजह है कि कानून व्यवस्था के मुद््दे पर आप बेहतर काम नहीं कर पा रहे हैं जिसकी वजह से नेता जी भी कई बार नाराजगी जाहिर कर चुके हैं?
हम अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन नेताजी और बेहतर चाहते हैं। ये तो अच्छी बात है कि हमें नेताजी के अनुभव का लाभ मिल रहा है। विपक्ष कुछ नहीं कर पा रहा है, इसलिए हम ही पक्ष और विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। नेताजी को अगर कुछ कहना होता है तो सबके सामने कह देते हैं। हमारी लोकतांत्रिक पार्टी है, हम उनका सम्मान करते हैं। कानून व्यवस्था पर हमने पहले से ही बेहतर काम किये हैं। विपक्ष केवल बदनाम करने के लिए भ्रामक प्रचार कर रहा है। जिस बदायूं की घटना को लेकर विदेशों तक में हमारी सरकार को बदनाम किया गया अब उसका सच आपके सामने है।

नेताजी की सरकार और अखिलेश यादव की सरकार में आप किसको बेहतर मानते हैं?
अखिलेश सरकार तो अच्छा काम कर रही है लेकिन नेताजी को बहुत अनुभव था। जब नेताजी मुख्मयंत्री थे तब तुरंत फैसले लिये जाते थे। अखिलेश पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो शुरू में फैसले लेने में थोड़ी देरी करते थे। नौकरशाही में भी कमी थी। अफसर फैसले में देरी करवाते थे। लेकिन मुख्यमंत्री अब समझ चुके हैं। पहले से फैसले लेने भी तेजी आयी है, विकास की कई नयी योजनायें तेजी से चल रही हैं।

सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि सरकार ठीक से काम नहीं कर रही है?
देखिये, सरकार अपने हर विभाग में अच्छा काम कर रही है। पिछली सरकार ने कोई काम नहीं किया जिसकी वजह से हमें दोगुना काम करना पड़ रहा है। बिजली हो या सड़क, किसी भी विभाग में कोई काम नहीं हुआ है। लेकिन अब काम तेजी से हो रहा है। थोड़ी बहुत लापरवाही अधिकारी भी कर रहे हैं। फाइलें लटकाई जा रही हैं लेकिन अब अधिकारियों से भी काम निकालना होगा।

अधिकारी बेलगाम हैं, समयबद्ध तरीके से काम नहीं करते जिसके चलते जनता दर-दर भटकने को मजबूर है। आपकी सरकार ऐसे अधिकारियों की जवाबदेही तय करेगी जो निरंकुश हो चुके हैं?
व्यवस्था पुरस्कार और दण्ड के सहारे चलती है। हमने और हमारी सरकार ने ये तय किया है कि जो अधिकारी कर्मचारी अच्छा काम करेंगे उन्हें पुरस्कार देंगे और जो लापरवाही बरतेंगे उन्हें दंडित भी किया जायेगा। उदाहरण आपके सामने है, सैकड़ों अधिकारी जिन्होंने अच्छा काम किया है उन्हें प्रमोशन दिया गया, पुरस्कृृत भी किया गया, जिन्होंने अच्छा काम नहीं किया, उन्हें निलंबित भी किया गया।

भ्रष्टाचार सिस्टम का अंग बन गया है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए आपने अब तक क्या प्रयास किये हैं, क्योंकि जो विभाग आपके पास है उनमें सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार से जुड़े सवाल खड़े हुए हैं?
आरोप में काफी हद तक सच्चाई है और इसको दूर करने के लिए हम काफी हद तक प्रयास भी कर रहे हैं। उदाहरण देना चाहूंगा कि पहले बाढ़ के समय बाढ़ रोकने के उपाय किये जाते थे जिसके चलते ज्यादातर पैसा ठेकेदार, अधिकारी और मंत्रियों की जेब में जाता था लेकिन हमने अब तय किया है कि बाढ़ आने से पहले बाढ़ के उपाय किये जायेंगे और बाढ़ खत्म होने के बाद क्षति का आकलन करके उसके हिसाब से काम किया जायेगा जिससे विभाग में जो काम हुआ हो वो जमीन पर भी नजर आये।

ये तो बात सिंचाई की हुई, लोक निर्माण विभाग के लिए क्या किया जा रहा है?
धारणा के आधार पर हम कोई मूल्यांकन नहीं करते हैं। हम जनता से खुली अपील करते हैं कि जहां भी सड़क बन रही हो और मानक का पालन नहीं किया जा रहा हो तो वो हमसे गोपनीय शिकायत कर सकते हैं। हम उस पर कार्रवाई करेंगे। कई बार पक्षपातपूर्ण आरोप भी लगते हैं ऐसे मौके पर हम आपको बताना चाहेंगे कि 2007 में जब हमारी सरकार गयी थी और मायावती के नेतृृत्व में नयी सरकार बनी थी तो उन्होंने हमारे समय में बने सभी सड़कों की जांच करायी थी और जांच रिपोर्ट में ये पाया था कि 2003 से 2007 के दौरान मेरे मंत्री रहते हुए जितने कार्य कराये गये थे वो सभी मानक से भी बेहतर थे। आपको यकीन नहीं आता तो आरटीआई के जरिये जानकारी हासिल कर सकते हैं। हमें अफसोस है कि मीडिया आरोपों की चर्चा खूब करती है लेकिन सच सामने आने के बाद उसका प्रचार नहीं करती क्योंकि किसी भी मीडिया ने मायावती सरकार ने जो मेरे सरकार के समय के कामों की जांच करायी थी, उस जांच में क्या निकला उसकी विस्तृृत रिपोर्ट जनता के सामने नहीं रखी।

भ्रष्टाचार की शिकायतों पर सरकार गंभीर नहीं लगती क्योंकि कई बार लोकायुक्त ने भी इस सवाल को उठाया है?
मैं खुली चुनौती देता हूं कि मेरे विभाग में अगर किसी भी अधिकारी, कर्मचारी के खिलाफ कोई भी प्रमाण हो तो आप सीधे हमको दें, कार्रवाई करने में हम देर नहीं करेंगे। हमने देखा है कुछ लोग केवल चर्चा करते हें, कुछ लोग अधिकारियों को परेशान करने के लिए शिकायत करते हैं और बाद में मुकर जाते हैं क्योंकि जिस पैसे को लेकर भ्रष्टाचार होता है वह देश के गरीब लोगों का पैसा है।

सड़कों की स्थिति बहुत खराब है, सड़क में गड्््ढा है या गड््ढे में सड़क, तय करना मुश्किल हो गया है?
जिन सड़कों की आप बात कर रहे हैं वह केन्द्र की हैं, राज्य की सड़कों को लेकर हमने निर्देश दे दिये हैं कि कहीं भी सड़क में गड््ढे न हों और नेशनल हाईवे के लिए भी मैंने केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी से बात की है। हमको उम्मीद है कि जल्द ही ये भी समस्या खत्म हो जायेगी।

महागठबंधन बनाने का ऐलान हुआ जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष नेताजी घोषित हुए किन्तु रामगोपाल जी का बयान इस निर्णय पर सवाल उठा रहा है?
नेताजी हम लोगों से सबसे अनुभवी हैं, उनके निर्णय की व्याख्या करने का अधिकार किसी को नहीं है। जो फैसला लिया गया है वो उनकी मौजूदगी में लिया गया, फिर इस पर जो कुछ भी कहना होगा नेताजी ही कहने के लिए अधिकृत हैं।

राष्ट्रीय दल में आप अपनी भूमिका कहां देखते हैं?
राष्ट्रीय दल के रूप में हम सभी लोग भाजपा जैसी साम्प्रदायिक पार्टी को बेनकाब करने का काम करेंगे, भाजपा झूठों की पार्टी है, उसका सच अब जनता के सामने आने भी लगा है। वैसे तो नेताजी ने हमको उत्तर प्रदेश में काम करने की जिम्मेदारी सौंपी है आगे जो भी उनका आदेश होगा उसका पालन करूंगा।
अमर सिंह पार्टी में आ रहे हैं या नहीं?
अमर सिंह जी से हमारे पारिवारिक रिश्ते हैं, उनके पार्टी में आने का निर्णय भी नेताजी ही लेंगे उनकी नेताजी से बात होती रहती है, अगर कोई निर्णय होना है तो उसका हम सबको इंतजार है।

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