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बड़ा फैसलाः गोमुख से हरिद्वार तक प्लास्टिक पर बैन

holy-ghats-of-haridwar-56401b624159c_exlstगंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने की मुहिम में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तराखंड में गोमुख से हरिद्वार तक प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का फैसला सुनाया है।

आदेश 1 फरवरी 2016 से लागू होगा। गंगा के इस बहाव वाले क्षेत्र में प्लास्टिक युक्त कैरी बैग, प्लेट, ग्लास, चम्मच और अन्य प्लास्टिक उत्पाद पूरी तरह प्रतिबंधित होंगे।

ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्राधिकरणों को तत्काल सीवेज प्रबंधन व्यवस्था दुरुस्त करने और कूड़ा फैलाने वालों पर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान किया है। इसके अलावा ग्रीन पैनल ने नदी के डूब क्षेत्र को लेकर भी सख्ती दिखाते हुए प्राधिकरणों को आदेश का पालन करने के निर्देश दिए हैं।

जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने बृहस्पतिवार को निर्मल गंगा से जुड़े मामले पर अपना आदेश सुनाया। चार चरणों में गंगा के मामले की सुनवाई ग्रीन पैनल कर रहा है। पहले चरण के तहत पहले भाग में एनजीटी ने गोमुख से हरिद्वार तक गंगा बहाव वाले क्षेत्र को लेकर फैसला सुनाया है। पहले चरण के दूसरे भाग में हरिद्वार से कानपुर तक गंगा के मामले पर अपना फैसला सुनाएगा।

एनजीटी ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही टेक्सटाइल मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह 15 दिन के अंदर प्लास्टिक बैग के संभावित और अन्य विकल्प उत्तराखंड सरकार को बताएं। ग्रीन बेंच ने कहा कि मंत्रालय राज्य सरकार को जूट और बायो डिग्रेडेबल मैटेरियल के बारे में सुझाव दें।

ग्रीन बेंच ने कहा कि यदि कोई होटल, धर्मशाला या आश्रम कूड़ा-कचरा और सीवेज गंगा या उसकी सहायक नदी में छोड़ता है तो उस पर प्रतिदिन पांच हजार रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया जाएगा।

वहीं प्लास्टिक प्रतिबंध के अलावा कोई भी किसी तरह का म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट यानी ठोस कचरा, निर्माण मलबा गंगा और उसकी सहायक नदी में फेंकता है तो पांच हजार रुपए का जुर्माना लगेगा।

बायोमेडिकल वेस्ट फेंकने पर 20 हजार रुपए जुर्माना
ग्रीन बेंच ने बायो मेडिकल वेस्ट फेंकने वाले अस्पतालों पर जुर्माने के तौर पर 20 हजार रुपए वसूलने को कहा है। बेंच ने कहा कि जुर्माने की यह राशि उत्तराखंड पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नगर निगम के जरिये वसूली जाएगी। यदि कोई अस्पताल जमीन, नदी, जलाशय या अन्य किसी स्थान पर इस तरह का कूड़ा फेंकता है तो वह जुर्माना भरेगा।

प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को करें बंद
ग्रीन बेंच ने कहा है कि गंभीर प्रदूषण फैलाने वाले और उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति के बगैर चल रहे उद्योगों को तत्काल प्रभाव से बंद किया जाए।

हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट लगाएं एसटीपी
नौ जल विद्युत परियोजनाओं को बंद करने को लेकर एनजीटी ने किसी तरह का आदेश नहीं दिया है। कहा गया कि सभी मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, इसलिए वे इस पर आदेश नहीं दे सकते। सभी जल विद्युत परियोजनाएं खुद का एसटीपी लगाएं और तीन महीने के भीतर इन्हें शुरू करें।

नदी किनारे बालू खनन को लेकर एनजीटी ने कहा कि मशीनों से (जैसे- जेसीबी आदि) से खनन नहीं होना चाहिए। प्राधिकरण उच्च और सख्त मानकों और नियंत्रण के साथ बालू खनन के लिए अनुमति दें।

दुरुस्त करें सार्वजनिक शौचालयों की व्यवस्था
राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि गंगा किनारे और कॉलोनियों में शौचालयों की व्यवस्था दुरुस्त होनी चाहिए। प्राधिकरण यह भी सुनिश्चित करें कि सभी शौचालय बायो डाइजेस्टर या एसटीपी से जुड़े हुए हों। इसके अलावा सरकार खास तौर से त्योहार के मौके पर तीर्थयात्रियों के लिए बायो-टॉयलेट को लेकर एक्शन प्लान भी तैयार करे।

गंगा से 100 मीटर का दायरा प्रतिबंधित क्षेत्र
एनजीटी ने कहा कि कम से कम गंगा के मध्य बिंदु से 100 मीटर की दूरी तक के क्षेत्र को इको सेंसेटिव जोन या प्रतिबंधित क्षेत्र बनाया जाए। इस क्षेत्र में कैंप समेत स्थायी और अस्थायी किसी भी तरह की संरचना नहीं बननी चाहिए। केवल उन बिंदुओं का चयन हो जहां से गंगा में राफ्टिंग करने वाले लोगों को पिक और ड्रॉप किया जा सके।

वहीं पहाड़ी क्षेत्र में गंगा के इस 100 मीटर दायरे के बाद और 300 मीटर से कम क्षेत्र को रेग्युलेटरी जोन बनाया जाए। गंगा के मैदानी भागों में नदी से 200 मीटर से अधिक और 500 मीटर से कम क्षेत्र को रेगुलेटरी जोन घोषित किया जाए।

एनजीटी के निर्देश में खर्च होंगे 180 करोड़
गंगा को स्वच्छ करने के लिए केंद्र ने उत्तराखंड सरकार को 258 करोड़ रुपए दिए थे। इसमें अब तक 78 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। ग्रीन बेंच ने कहा कि शेष 180 करोड़ रुपए उनके निर्देश के अधीन खर्च होंगे। इसमें एसटीपी इंस्टॉल करने संबंधी और अन्य कार्य शामिल होंगे।

 

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