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बर्न्स-“अमेरिका और भारत की साझी चिंता है चीन, मोदी-ओबामा कर सकते हैं बात”

एजेंसी/ वॉशिंगटन
अमेरिका में जब अगले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की मुलाकात होगी तो उनके बीच लगातार आक्रामक रुख अपना रहे चीन से ‘निपटने’ पर बातचीत हो सकती है। अमेरिका के एक पूर्व शीर्ष राजनयिक ने इस बात की तरफ इशारा किया और कहा क‍ि दोनों देशों के लिए चीन चिंता का विषय बन गया है।

भारत-अमेरिकी रिश्तों की हिमायत करते हुए अमेरिका के पूर्व विदेश उपमंत्री निकोलस बर्न्स ने कहा कि दोनों ही देश इस कशमकश से गुजर रहे हैं कि एशिया में मुखर हो रहे चीन से कैसे रिश्ता बनाया जाए। उन्‍होंने कहा, ‘जब वाइट हाउस में मोदी और ओबामा की मुलाकात होगी तो जो चीज उन्हें एक साथ बांधेगी वह एशिया में नए तौर पर मुखर चीन के बारे में उनकी साझी चिंता होगी।’

उन्‍होंने कहा कि चीन के व्यापक अंतरराष्ट्रीय वजन और प्रभाव के मद्देनजर कारोबार, वैश्विक आर्थिक स्थिरता और जलवायु परिवर्तन पर उसके साथ रिश्ता बनाने के सिवा दोनों देशों के पास और कोई रास्ता नहीं है। उन्होंने अमेरिकी अखबार ‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ में ‘संपादकीय’ लेख में कहा कि अमेरिका और भारत, वियतनाम, फिलीपीन्‍स और दक्षिण चीन सागर में स्परैटली और पारासेल द्वीपसमूह के दीगर दावेदारों पर चीन की दबंगई के समक्ष खड़ा होने की जरूरत समझते हैं।
बर्न्स ने कहा कि अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर भारत के साथ अमेरिकी सैन्य भविष्य को ज्यादा समेकित करने के लिए आधारशिला रखने में खास तौर पर प्रभावी रहे हैं। वह हाल की भारत यात्रा के दौरान वरिष्ठ भारतीय नेताओं के उस रुख में परिवर्तन से दंग रह गए जिन्होंने लंबे अरसे तक इस पर बहस की थी कि भारत के पारंपरिक गुटनिरपेक्षता के मद्देनजर उन्हें अमेरिका के साथ किस हद तक रिश्ता मजबूत करना चाहिए।

बर्न्स ने कहा कि दोनों देशों के बीच मतभेदों के बावजूद अपने ठोस लोकतांत्रिक आधारों के चलते भारत और अमेरिका इस सदी में वैश्विक प्रभाव डालने के लिए बेहतरीन स्थिति में हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत को ‘एक वास्तविक विश्व शक्ति’ में रूपांतरित करने की मोदी की मुहिम ओबामा और उनके पूर्ववर्ती जॉर्ज बुश के लक्ष्य को प्रतिबिंबित करता है कि एक मजबूत भारत अमेरिका के राष्ट्रीय हित में है।

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