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बैंकों के लिए जी का जंजाल बने सिक्के, करेंसी चेस्ट में लगा अंबार

नोटबंदी के बाद बाजार में पहले से छपे छोटे मूल्य वर्ग के नोटों और सिक्कों के जरिए भले ही स्थिति काबू में रखने में मदद मिली हो, लेकिन सिक्के अब बैंकों का जी का जंजाल बनते जा रहे हैं। स्थिति यह है कि छोटे शहरों और कस्बों के करेंसी चेस्ट में भी 80-90 लाख रुपये तक के सिक्के जमा हो गए हैं। इनसे करेंसी चेस्ट में जगह की तंगी भी हो रही है।

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के एक करेंसी चेस्ट शाखा के प्रबंधक ने कहा कि इस समय एक तो कर्मचारियों की तंगी है, वहीं दूसरी ओर दिनभर में कोई न कोई ग्राहक एक थैली सिक्का जमा करने आ जाता है। नियमानुसार सिक्कों को लेने से इनकार किया नहीं जा सकता है, इसलिए मजबूरी में लेना पड़ता है। लेकिन, रकम की निकासी के लिए आए किसी ग्राहक को सिक्का दिया जाए, तो वह इसे लेने से मना कर देता है। इस वजह से करेंसी चेस्ट में सिक्का जमा करने पड़ते हैं। हालत यह है कि अब सिक्कों वाला रैक भर गया है और करेंसी चेस्ट के एक कोने में ही सिक्कों की थैलियों का ढेर लगा दिया गया है।
एक रुपये के छोटे सिक्के से कतरा रहे ग्राहक

इलाहाबाद बैंक के एक प्रबंधक ने बताया कि इन दिनों एक रुपये का छोटा सिक्का खूब जमा हो रहा है। दरअसल, इन दिनों दैनिक लेन-देन में कोई भी एक रुपया वाला छोटा सिक्का लेने से मना कर दे रहा है। इसी वजह से लोग इसे बैंक में जमाकर इससे निजात पा रहे हैं। प्रबंधक ने कहा कि बैंक में कोई नोट तो सदा के लिए रहता नहीं है, कोई ग्राहक नोट जमा कर जाता है तो उसे किसी निकासी वाले ग्राहक को दे दिया जाता है। लेकिन ग्राहकों द्वारा सिक्के न लेने से इन्हें जबरन करेंसी चेस्ट में रखना पड़ रहा है।

छोटे शहरों में भी 90 लाख के सिक्के

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक करेंसी चेस्ट के प्रबंधक ने कहा कि उनके यहां कुल नकदी रखने की सीमा 50 करोड़ रुपये है, लेकिन इस समय उनके यहां 100 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की नकदी जमा है। इस बारे में जब रिजर्व बैंक से बात की गई, तो केंद्रीय बैंक से करेंसी किसी और जगह भेजने का आश्वासन दिया गया। लेकिन असल दिक्कत तो सिक्कों की है। उनके यहां इस समय 90 लाख रुपये से भी ज्यादा के सिक्के हैं।

सिक्कों की गिनती आसान नहीं
पंजाब नेशनल बैंक के एक प्रबंधक का कहना है कि उनके यहां पहले लेन-देन के चार काउंटर थे। लेकिन कर्मचारियों की कमी की वजह से अब दो ही कैश काउंटर चल रहे हैं। ऐसे में यदि कोई ग्राहक एक थैली सिक्का लेकर आ जाता है तो एक-एक सिक्का हाथ से गिनना पड़ता है, जबकि नोट की गिनती तो मशीन से हो जाती है। सिक्का गिनकर लेने में देरी होती है, तो लाइन में पीछे के ग्राहक हल्ला मचाने लगते हैं।

नोट तो खराब हो जाते हैं पर सिक्के नहीं
अधिकारी का कहना है कि करेंसी नोट तो एक हाथ से दूसरे हाथ में गुजरने के दौरान खराब हो जाते हैं या कट-फट जाते हैं, लेकिन सिक्के में कुछ नहीं होता। पहले से जो सिक्के हैं, वो तो चल ही रहे हैं। साथ ही सरकार और भी सिक्के डालती है। उसकी भी आपूर्ति आती रहती है, जबकि इसे लेने वाला कोई नहीं है।

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