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बोफोर्स की आंच पर एक बार फिर से सुलगता दिखाई दे रहा है राजीव का दामन

बोफोर्स कांड की आंच एक बार फिर से सुलगती दिखाई दे रही है। साल दर साल होने वाले नए खुलासों के बीच एक और धमाका हुआ है। इसमें दावा किया गया है कि गया है कि बोफोर्स तोपों की खरीद-फरोख्त के दौरान हुए लेन-देन की सारी जानकारी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी को थी। 31 साल बाद रिपब्लिक टीवी की इनवेस्टिगेटिव स्टोरी में  

स्वीडन के पूर्व चीफ इंवेस्टिगेटर ने दावा किया है। तीन बिंदुओं को नए खुलासे आधार बनाया गया है।” पहला, ”राजीव गांधी बोफोर्स डील में गैरकानूनी तरीके से हो रहे पेमेंट्स के बारे में जानते थे।”दूसरा, ”राजीव गांधी ने स्वीडिश पीएम से एक फ्लाइट में पेमेंट्स के बारे में चर्चा की थी।” तीसरे में बताया गया है कि ”राजीव चाहते थे कि बोफोर्स डील के बदले स्वीडिश पीएम भी फंड्स रिसीव करें।” चीफ इन्वेस्टीगेटर के मुताबिक, दलाली की रकम 64 करोड़ से कहीं ज्यादा थी।

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बोफोर्स की आंच पर एक बार फिर से सुलगता दिखाई दे रहा है राजीव का दामन  31 साल बाद ये हुआ खुलासा 

निजी चैनल ने पूर्व चीफ इन्वेस्टिगेटर से बातचीत के टेप रिलीज किए हैं। ये इन्वेस्टिगेटर हैं स्टेन लिंडस्टॉर्म। 71 साल के लिंडस्टॉर्म ने बताया कि जब बोफोर्स तोप घोटाले की जांच हो रही थी तो उस वक्त व्हिसलब्लोअर्स के साथ दिक्कत यह थी कि वे किसके सामने खुलासा करें। इस इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी में जर्नलिस्ट चित्रा सुब्रमण्यम से बातचीत में स्टेन से पूछा गया कि क्या आप हमसे अब इतने साल बाद बात करके जोखिम नहीं उठा रहे हैं तो स्टेन ने कहा कि मुझे नहीं पता कि मेरे बात करने पर मेरी जिंदगी को कोई खतरा है या नहीं है, अगर आप डरपोक हैं तो (बतौर इन्वेस्टिगेटर) इस करियर का क्या मतलब है? चित्रा ने जानेमाने जर्नलिस्ट अर्णब गोस्वामी को रिपब्लिक टीवी पर बताया- सच कभी न कभी बाहर आ ही जाता है। यह जर्नलिज्म के लिए हमारा कमिटमेंट है। हम इस खुलासे से पहले जानकारी जुटाने की काफी वक्त से कोशिश कर रहे थे। 

ये था पूरा मामला 
भारत सरकार ने भारतीय सेना के लिए 1986 में स्वीडन से बोफोर्स तोपें खरीदी थीं। तब 410 तोपें भारतीय सेना के लिए आई थीं। इस दलाली मामले में इटली के कारोबारी ओट्टावियो क्वात्रोच्चि की भूमिका रही। डील के लिए इसे बड़ी दलाली मिली। तब कांग्रेस नेता और फिर कांग्रेस छोड़कर जनता दल में गए वीपी सिंह ने राजीव गांधी पर तोपों की डील में दलाली खाने के आरोप लगाकर कांग्रेस सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। इस मुद्दे को लेकर वीपी सिंह व मुख्य विपक्षी दलों ने कांग्रेस सरकार और पीएम राजीव गांधी को घेरा जिसके चलते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई। बोफोर्स तोप दलाली मुद्दे के चलते वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। बाद में इस मामले की जांच सीबीआई को दी गई। हालांकि, 2004 में सी.बी.आई. रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट ने राजीव गांधी को क्लीन चिट दे दी थी।

जांच की अहम कड़ी थे बोफोर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर
स्टेन लिंडस्टॉर्म ने इस इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी में बताया कि कैसे बोफोर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर मार्टिन अर्ब्डो ने तब के पीएम रहे राजीव गांधी के रोल का खुलासा किया था। मार्टिन अर्ब्डो ही उस वक्त बोफोर्स केस की सबसे अहम कड़ी थे। स्टेन के मुताबिक, ”जनवरी 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी पीएम थे। भारत सरकार पर यह जवाब देने का दबाव था कि बोफोर्स केस में कोई तरक्की क्यों नहीं हुई? भारत सरकार ने तब स्वीडन को लेटर ऑफ रोगेटरी (अनुरोध पत्र) भेजा था। इसमें बोफोर्स फंड्स के बारे में सवाल पूछे गए थे। ये फंड्स स्वीडन की एक जगह कार्लस्कोगा भेजे गए थे। उस वक्त मैंने अर्ब्डो से फोन पर सवाल किए थे। अर्ब्डो को कैंसर था और उनका इलाज चल रहा था। 

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2003 की गर्मियों में मार्टिन अर्ब्डो ने मुझे फोन किया। उन्हें डर था कि अगर वे स्वीडन से बाहर निकले तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। वे फिनलैंड के आखिरी दौरे पर जाना चाहते थे। वे कह रहे थे कि क्या मेरे खिलाफ वॉरंट हटाया जा सकता है। तब मैंने कहा कि भारत के कहने पर इंटरपोल ने वॉरंट जारी किया है, मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता। बातचीत के दौरान मैंने उनसे उस डायरी के बारे में पूछा जो जांच के दौरान सामने आई थी और जिस वजह से भारत में सरकार गिरी थी। …बातचीत से लग रहा था कि मार्टिन अर्ब्डो पर यह दबाव है कि वे कुछ भी नया खुलासा न करें।”

 पहली बार राजीव गांधी के रोल का खुलासा किया
स्टेन लिंडस्टॉर्म के मुताबिक, ”1986 में अर्ब्डो फ्लाइट से भारत से लौट रहे थे। उस फ्लाइट में ओलाफ पाल्मे (तब के स्वीडिश पीएम) और राजीव गांधी थे। राजीव चाहते थे कि बोफोर्स के फंड्स ओलााफ को उन्हीं के इस्तेमाल के लिए मिलें। ओलाफ ने सुझाव दिए कि कुछ फंड्स बोफोर्स के नाम से इंडस्ट्री के डेवलपमेंट के लिए बनी एक फाउंडेशन के लिए दिए जाने चाहिए। अर्ब्डो ने बताया कि 50 मिलियन स्वीडिश क्रोनर इस फंड्स के तहत दिए जाएंगे। लेकिन इस पैसे के लिए नया फाउंडेशन बनाया गया। हमारी जांच का मकसद यह था कि यह पैसा कहां से कहां गया, इससे किसको फायदा मिला। यह पता चला कि 50 मिलियन में से 30 मिलियन स्वीडिश क्रोनर का इस्तेमाल कुछ फैक्ट्रीज और वर्कशॉप्स की मदद में किया गया। लेकिन ये सब फाउंडेशन को दिए गए पैसे की आड़ में किया गया।

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