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भारत पाकिस्तान की सीमा पर रहने वाले नागरिकों का दर्द : एक ही बार में हमें मार क्यों नहीं डालते!


नई दिल्ली : लाइन आॅफ कंट्रोल पर पाकिस्तान की ओर से सीज़फायर का उल्लंघन बदस्तूर जारी है, लेकिन पुलवामा हमले के बाद से हालात और ज्यादा बिगड़े हैं. पिछले एक हफ्ते से गोलीबारी की घटनाएं बढ़ी हैं. सीमा पार से तकरीबन रोजाना ही वक्त-बेवक्त भारतीय गांवों और चौकियों पर फायरिंग हो रही है. पाकिस्तान की इस हरकत से स्थानीय लोगों का जीना मुहाल हो गया है. मौत रोज गांववालों के सिर पर नाचती है. लिहाजा जिंदगी बचाने के लिए लोग अपना घर-बार और मवेशियों को बेसहारा छोड़कर सुरक्षित जगहों पर शरण लेने को मजबूर हो गए हैं. जंग जैसे हालात के बीच लाइन आॅफ कंट्रोल पर रहने वाले लोग दरअसल जिंदगी जी नहीं रहे, बल्कि जिंदगी काट रहे हैं. लाइन आॅफ कंट्रोल के पास पुंछ के सालोत्री गांव की रहने वाली रकमत बी (50) की ही कहानी सुनिए. भारी गोलीबारी के बीच रकमत बी टिन शेड वाले मिट्टी के घर में अपने पांच साल के पोते को सुलाने की कोशिश कर रही थीं, जो शायद गोली की आवाज से सिहमकर उठ गया था. बंदूखें अपेक्षाकृत खामोश होने या गोलीबारी हल्की होने पर रकमत बी पोते को सुलाकर दूसरे कमरे में आराम करने जाती ही हैं कि फिर से गोली चलने की आवाज आने लगी. पाकिस्तान की तरफ से दागा गया गोला सीधा रकमत बी के घर पर गिरा, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई. मरने वालों में रकमत बी की बहू और पोता-पोती शामिल थे. पोती सिर्फ 9 माह की थी. रकमत बी का घर पुंछ सेक्टर से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर है. पुंछ जम्मू-कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा भी है. यहां के हालात इस कदर बदतर हैं कि हर दिन हर घंटे कहीं न कहीं गोलीबारी की आवाज सुनाई देती है. बीते कुछ दिनों से तो हालात और भी ज्यादा चिंताजनक हुए हैं. यहां दोनों तरफ से लॉन्ग रेंज के मोर्टार दागे जा रहे हैं, जिससे सीमा के पास रहने वाले लोग हर रोज मौत का सामना कर रहे हैं. इन लोगों को बखूबी पता है कि उनका इलाका डेंजर ज़ोन में आता है. वो यहां से दूर जाना भी चाहते हैं, मगर उनका कहीं और ठिकाना भी नहीं है. रकमत बी कहती हैं, ‘मैं अल्लाह से लगातार दुआ कर रही थी की बम और गोले की आवाज़ रुक जाए. लेकिन आवाजें लगातार बढ़ रही थी और पहले से ज्यादा तेज हो रही थी. अचानक एक गोला आ गिरा और एक ही झटके में मेरा घर बर्बाद हो गया.’ पाकिस्तान की ओर से दागे गए गोले में रकमत बी की बहू और पोता-पोती की जान चली गई, जबकि उनका 27 साल का बेटा मोहम्मद यूनिस जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है. रकमत बी आगे बताती हैं, ‘जानती हूं हमारा इलाका खतरे से खाली नहीं है. मोर्टार शेलिंग (तोप से गोलाबारी) से बचा-खुचा भी खत्म हो सकता है. लेकिन, जाए तो जाए कहां? मैंने पूरी जिंदगी यहीं गुजार दी और अब कहां जाऊंगी? क्या करूंगी?’ रकमत बी का बेटा मोहम्मद यूनिस परिवार में इकलौता कमाने वाला था. मजदूरी करके जो थोड़े पैसे मिलते थे, उससे किसी तरह पूरे परिवार की रोजी-रोजी चलती थी. फिलहाल वह जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है. अगर ये जंग जीत भी गया, तो भी कभी काम नहीं कर पाएगा. उसे बाकी जिंदगी बिस्तर पर ही बितानी पड़ेगी. ये बताते हुए रकमत बी रो पड़ती हैं. शनिवार को जब सरकार के अधिकारी गांव का दौरा करने पहुंचे, तो लोगों के सब्र का बांध टूट गया. लोगों ने इलाके से दूसरी जगह शिफ्ट कराने के लिए अधिकारियों के सामने गुहार भी लगाई. इसके बाद प्रशासन ने कुछ इन लोगों को दूसरी जगह अस्थायी तौर पर शिफ्ट भी करा दिया है. फिलहाल इन लोगों के रहने और खाने का इंतजाम एक स्कूल में किया गया है, लेकिन कुछ दिनों बाद उन्हें फिर अपने पुराने ठिकाने लौटना ही पड़ेगा. सरकार और प्रशासन के इस रवैये से सीमा पार रहने वाले स्थानीय लोगों में काफी आक्रोश हैं. रकमत बी के बहू और पोते-पोती के मातम पुर्सी में आए अब-रजाक खाकी कहते हैं, ‘हमारे नेता जंग की बात करते हैं. क्या वो इसका मतलब भी जानते हैं? हम दिनभर कड़ी मेहनत करते हैं, तब जाकर दो वक्त के खाने का जुगाड़ हो पाता है. हम इस उम्मीद से हर चुनाव में वोट डालते हैं कि नई सरकार हमें इस मौत के जाल से निकालेगी. लेकिन, नहीं होता. कुछ भी नहीं होता ऐसा.

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