अन्तर्राष्ट्रीय

मधुमक्खी के छत्ते जैसी है सूर्य की सतह, पहली बार सामने आई खूबसूरत तस्वीर

अमेरिकी द्वीप पर जब दुनिया की सबसे बड़ी टेलिस्कोप (डेनियल के. इनोये) ने जब काम शुरू किया तो अपनी निगाह सूर्य की सतह पर गढ़ा दी। नतीजतन, दुनिया के सामने पहली बार वे तस्वीरें आईं जिनमें सूर्य की सतह सोने की तरह चमकती और मधुमक्खी के छत्ते की तरह फैलती व सिकुड़ती दिखाई दे रही है। यह दृश्य पहले कभी नहीं देखा गया, क्योंकि आग उगलते गोले पर इसे असंभव माना लिया गया।

टेलिस्कोप ने पहली बार सूर्य को निहारने की तस्वीरें बुधवार देर रात जारी हुई हैं। रिपोर्ट कहती है कि सूर्य की सतह का पैटर्न मधुमक्खी के छत्ते के सेल की तरह है जो पूरे सूर्य की सतह पर दिखाई देते हैं। जब ये सिकुड़ते और फैलते हैं तब इनके केंद्र से प्रबल ऊष्मा निकलती हैै। ये सेल (कोशिकाएं) टेक्सास प्रांत के आकार की हैं।

वैज्ञानिकों ने कहा कि सूर्य के कोरोना (सूर्य का बाहरी वायुमंडल) का अभूतपूर्व विस्तार और सौर धमाके निश्चित ही पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करते हैं। शोधकर्ता प्रोफेसर जेफ कुन ने कहा, यह वास्तव में गैलीलियो के समय से जमीन से सूर्य का अध्ययन करने की मानव क्षमता की सबसे ऊंची छलांग है। ये तस्वीरें कोरोना में चुंबकीय क्षेत्रों को मैप करने में मदद करेंगी। टेलिस्कोप के निदेशक थॉमस रिम्मेले ने कहा, अब तक की सबसे हाई रिजोल्यूशन तस्वीरें बताती हैं कि सूर्य की सतह उजाड़ और खतरनाक हैं।

और प्रभावशाली होगा टेलिस्कोप
तस्वीर लेने वाला टेलीस्कोप हवाई द्वीप माउई पर स्थित है। अगले कुछ महीनों में यह टेलीस्कोप और अधिक प्रभावशाली हो जाएगा जब उसमें कुछ और उपकरण जोड़ दिए जाएंगे। यह दूरबीन सूरज के चुंबकीय क्षेत्र के विस्तार के अध्ययन में मददगार साबित हो सकता है। वैज्ञानिक जेफ कुन के मुताबिक, इन नए उपकरणों से हमें यह जान पाने की उम्मीद है कि सूर्य पृथ्वी पर किस तरह का प्रभाव डालता है।

हर 14 सेकेंड पर होती है उथल-पुथल
इस डेनियल के. इनोये टेलिस्कोप ने 10 मिनट का एक वीडियो भी बनाया है। इससे यह पता चलता है कि हर 14 सेकेंड में सूर्य की सतह पर एक टर्बुलेंस यानि भीषण उथल-पुथल होती है। ये वीडियो करीब 20 करोड़ वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल कवर करता है। यह क्षेत्रफल किसी भी बड़े शहर या छोटे देश के बराबर का है।

270 करोड़ साल पहले हमारी पृथ्वी के वातावरण से टकराए थे सूक्ष्म उल्कापिंड
आज से लगभग 270 करोड़ साल पहले पृथ्वी से टकराने वाले सूक्ष्म उल्कापिंडों के नमूनों की पड़ताल करने वाले एक नए अध्ययन में पाया गया है कि प्रारंभिक पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक थी।

पिछले अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि उल्कापिंड यहां ऑक्सीजन से टकराए थे, लेकिन यह बात उन सिद्धांतों और सबूतों का खंडन करती है जो बताता है कि पृथ्वी का प्रारंभिक वातावरण ऑक्सीजन से रहित था।

सिएटल के यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के शोधकर्ता और इस अध्ययन के प्रथम लेखक ओवेन लेहमर ने कहा, ‘हमने अध्ययन में पाया कि इन सूक्ष्म उल्कापिंडों को वातावरण में उच्च स्तर की कार्बन डाइऑक्साइड का सामना करना पड़ा था।

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