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महासमुंद-गरियाबंद से ओडिशा तक बन रहा नक्सलियों का नया कॉरिडोर

रायपुर. बस्तर, राजनांदगांव के बाद नक्सली अब महासमुंद से ओडिशा तक एक नया कॉरिडोर बना रहे हैं। इनकी एंट्री टुहलू नामक गांव के रास्ते छत्तीसगढ़ में हो रही है। यहां से ओडिशा बॉर्डर सिर्फ दो किलोमीटर की दूरी पर है। नक्सलियों के इस संभावित कॉरिडोर में आने वाले गांवों में भास्कर टीम पहुंची तो पता चला कि दो-चार की संख्या में नक्सली अक्सर इन गांवों से लगे जंगलों में दिखते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि जब वे जंगल जाते हैं तो कई पेड़ों पर अजीब से निशान भी दिखाई दे रहे हैं।
महासमुंद-गरियाबंद से ओडिशा तक बन रहा नक्सलियों का नया कॉरिडोर
गौरतलब है, छह साल पहले नक्सली नेता गोपन्ना की गिरफ्तारी और देवभोग रोड पर कांग्रेस के काफिले से ठीक पहले बम धमाकों से नक्सलियों ने दहशत फैलाई थी। हालांकि माना जाता रहा है कि महासमुंद और गरियाबंद जिले के ओडिशा सीमा से लगे इलाकों में ही नक्सल गतिविधियां सिमटी हुई हैं। इस बीच खुफिया एजेंसियों ने ऐसे दस्तावेज ब्रेक किए हैं, जिनसे पता चलता है कि नक्सली
बस्तर से नारायणपुर, कांकेर और धमतरी में नगरी सिहावा होते हुए यहां तक किसी रास्ते की तलाश में लगे हैं, जो सीधे ओडिशा जाता है। नक्सलियों के गरियाबंद से राजधानी की ओर बढ़ने के अंदेशे से फोर्स अलर्ट है।

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महासमुंद-गरियाबंद के जंगलों में सीआरपीएफ की बटालियनें तैनात हैं। फोर्स के अफसरों ने पुष्टि की कि जंगलों में बसे जिन गांवों में नक्सल मूवमेंट नहीं था, रास्ता तलाशने की सूचनाएं फूटने के बाद से ही इन गांवों में नक्सल गतिविधियों की सूचनाएं फोर्स तक पहुंच रही हैं। भास्कर टीम मालगांव से छुरा होकर कोमाखान से निकली और रास्ते में सांकरा, मोरेंगा तथा टुहलू में लोगों से बातचीत की गई।

 
ग्रामीणों ने बताया कि यहां कई बार नक्सलियों के आने की खबर मिलती है, लेकिन पहचान नहीं हो पाती। इन गांवों की आबादी भी पांच-पांच सौ से ज्यादा नहीं है। टुहलू गांव घने जंगल में तथा ओडिशा सीमा से सिर्फ दो किमी दूर है। एक नाला दोनों राज्यों की सीमा है। इसे पार करते ही ओडिशा के फरफौद और सिलिगिड़ी गांव आते हैं। इनसे लगे दो और गांव हैं, सभी घने जंगलों में। इनकी आबादी दो-दो हजार के आसपास है। गांववालों ने दबी जुबान में कहा कि अक्सर ओडिशा से नक्सलियों के टुहलू आते हैं और जंगलों से होते हुए छुरा तथा गरियाबंद की ओर निकल जाते हैं। पहले पहचान नहीं हो पाती, जाने के बाद पता चलता है कि नक्सली आकर गए हैं।
अक्सर मिलती हैं आमदरफ्त की खबरें
गरियाबंद से ओडिशा की ओर मैनपुर, देवभोग, जुगाड़ जैसे गांवों में नक्सलियों ने कई बार खुली मौजूदगी दिखाई है। लेकिन गरियाबंद तथा वहां से राजधानी की ओर के गांवों में नक्सलियों का कोई मूवमेंट नहीं है। सारी गतिविधियां ओडिशा सीमा की ओर के गांवों में सिमटी हुई हैं। गरियाबंद के लोगों ने बताया कि सालभर के भीतर यहां से लगे मालगांव और पंटोरा में नक्सलियों के आने-जाने की खबरें आई हैं। मालगांव से छुरा होकर कोमाखान तक घने जंगलों में लोगों ने चार-छह वर्दीधारी नक्सलियों की टुकड़ी को रास्तों की पूछताछ करते हुए भी देखा है।
जंगल के पेड़ों पर निशान
छुरा, टुहलू, खैरट और फरफौद गांव के लोगों ने बताया कि नक्सली आसपास के गांववालों के साथ ही आ रहे हैं। जिनके साथ आते हैं, इन्हें रिश्तेदार बता देते हैं, इसलिए अलग से पहचान नहीं हो पाती। गांव में मवेशियों के गुम होने की बात कहकर ये जंगलों में निकल जाते हैं। जब तक गतिविधियों पर शक होता है, नक्सली जा चुके होते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि पिछले सालभर से यहां मीलों फैले जंगलों में कई पेड़ों पर अजीब निशान नजर आ रहे हैं। फोर्स के जानकारों के मुताबिक यह नक्सलियों के रास्ता बनाने की तकनीक है।
उपसरपंच को मार डाला
नक्सलियों ने गरियाबंद से ओडिशा सीमा तक दो-ढाई सौ गांवों में धमक बताने के लिए इसी साल खैरट के उपसरपंच दिनेश सोनवानी की गला काटकर हत्या कर दी थी। बताया जा रहा है कि तेंदूपत्ता की खरीदी-बिक्री का विवाद हुआ था, इसके बाद नक्सलियों ने उपसरपंच को मारा था। इस हत्या के बाद से नक्सल गतिविधियां कुछ तेज हुई हैं।
कैंप नहीं, सिर्फ टुकड़ियों में
टुहलू और ओडिशा की सड़क पर सीआरपीएफ की 37वीं बटालियन का कैंप है। यह चारों तरफ टिन की दीवारों से घिरा है। भास्कर टीम पहुंची तो जवान हथियारों के साथ अलर्ट हो गए। पूछताछ के बाद ही भास्कर को कैंप के भीतर जाने दिया गया। वहां के इंस्पेक्टर मलकीत सिंह ने बताया कि ऐसी सूचनाएं मिली हैं कि नक्सली छत्तीसगढ़ और ओडिशा सीमा के जंगलों में कोई कॉरीडोर या रास्ता बनाने की फिराक में हैं और इसीलिए घूमते दे्खे जाने लगे हैं। गांववालों ने भी पुष्टि की कि कुछ लोगों को भरोसे में लेकर नक्सली उनके रिश्तेदार बनकर जंगलों में सर्वे कर रहे हैं, लेकिन कैंप नहीं करते।
सड़क निर्माण की कड़ी जांच
सीआरपीएफ जवानों के मुताबिक बार्डर पर या जंगलों से महासमुंद की ओर जाने वाली कोई भी सड़क बन रही है, वहां सीआरपीएफ जवान बार-बार निरीक्षण कर रहे हैं। वजह यही है कि नक्सली इस दौरान सड़कों के नीचे बम रखकर तार दूर निकाल दें, जिसे जरूरत पर बैटरी से जोड़कर धमाका किया जा सके। बस्तर की सड़कों पर नक्सलियों ने इसी तरह से बारूद बिछा रखा है और अब तक सड़क पर ही सैकड़ों धमाकों में फोर्स खासा नुकसान उठा चुकी है।
 
उधर बस्तर में एक साथ खोले दो मोर्चे
राजनीतिक मोर्चे की कमान मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने खुद संभाल ली है। वे सप्ताहभर में दूसरी बार धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में लोगों के बीच गए। नारायणपुर के बोरावंड गांव में उन्होंने आदिवासियों से धनुष चलाना सीखा। उनके साथ समय बिताया। उन्होंने उज्जवला गैस योजना के तहत 19 के बजाय 50 महिलाओं को गैस कनेक्शन बांटे।
 
200 कोबरा कमांडो उतरे सुकमा में
बुर्कापाल में 25 जवानों की शहादत के बाद नक्सल ऑपरेशन तेज करने के लिए सीआरपीएफ के 200 कोबरा कमांडो गुरुवार को बस्तर पहुंच गए। बुधवार को वायुसेना के विशेष विमान एएल-76 से इन्हें रायपुर लाया गया था। सुकमा में 2000 कोबरा कमांडोज भेजे जाएंगे। इनके साथ आईईडी एक्सपर्ट भी हैं। जो नक्सलियों द्वारा बिछाई गई बारुदी सुरंगों का पता लगाएंगे। जल्द ही बड़ा आपरेशन शुरू होगा। सुकमा आपरेशन का मुख्य केंद्र होगा।
यह ऑपरेशन छह माह तक लगातार चलेगा। बारिश के दिनों में भी वेट एंड वाच के बजाए फोर्स हमलावर रुख अपनाएगी। इस पूरे आपरेशन की मानिटरिंग के लिए सीआरपीएफ के स्ट्रेटजिक कमांड को कोलकाता से रायपुर शिफ्ट कर दिया गया है। इसके मुखिया स्पेशल डीजी कुलदीप सिंह भी अपने 29 अधिकारियों के साथ रायपुर में काम सम्हाल लिया है। अभी 150 से अधिक अधिकारी और आएंगे।
 
इस आपरेशन में 24 घंटे एयर सपोर्ट के लिए राज्य सरकार ने दंतेवाड़ा के करली हवाई पट्टी से रात्रिकालीन हवाई सेवा शुरू करने की तैयारी पूरी कर ली है। अभी यह सुविधा जगदलपुर और बीजापुर में ही है। फोर्स की मदद के लिए जगदलपुर में वायुसेना के 5 एमआई-17 हेलिकाप्टर उपयोग में लाए जा रहे हैं।

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