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मुद्रा योजना के तहत 3.2 लाख करोड़ का हुआ एनपीए, RBI चिंतित…

रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एमके जैन ने मुद्रा कर्जों में एनपीए के स्तर में बढ़ोतरी को लेकर बैंकरों को आगाह किया है और उनसे ऐसे कर्जों की निगरानी के लिए कहा, क्योंकि सेक्टर में कर्ज में ऐसी अस्थायी बढ़ोतरी से पूरी व्यवस्था के लिए संकट पैदा हो सकता है। मुद्रा योजना में एनपीए 3.21 लाख करोड़ रुपये के स्तर से ज्यादा हो चुका है। छोटे और मझोले उद्योगों को सस्ते बैंक कर्ज मुहैया कराने के लिए वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुद्रा योजना की पेशकश की थी।

दिलचस्प है कि योजना की पेशकश के एक साल के भीतर तत्कालीन आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने योजना में संपत्ति की गुणवत्ता को लेकर आगाह किया था, लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उनकी चिंताओं को खारिज कर दिया था।

सूक्ष्मवित्त को लेकर सिडबी के एक कार्यक्रम में जैन ने कहा, ‘मुद्रा एक ऐसी योजना है, जिससे कई लाभार्थियों को गरीबी से बाहर निकलने में मदद मिली। हालांकि इनमें से कुछ कर्जदारों में गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) के स्तर में बढ़ोतरी से चिंताएं भी पैदा हुई हैं।’ उन्होंने कहा कि बैंकों को उनके मूल्यांकन के चरण में पुनर्भुगतान की क्षमता पर ध्यान केंद्रित करने और पूरी अवधि के दौरान कर्ज की करीब से निगरानी करने की जरूरत है।

सरकार ने जुलाई में संसद में बताया था कि मुद्रा योजना में एनपीए 3.21 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच चुके हैं। योजना में जून, 2019 तक 19 करोड़ कर्ज दिए जा चुके हैं। वहीं 3.63 करोड़ तक खाते मार्च, 2019 तक डिफॉल्ट कर चुके हैं।

मुद्रा योजना में 126 फीसदी बढ़ा बैड लोन
आरटीआई पर मिले जवाब के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019 में मुद्रा योजना में बैड लोन 126 फीसदी बढ़कर 16,481.45 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गए, जबकि वित्त वर्ष 2018 में यह 7,277.31 करोड़ रुपये के स्तर पर थे। जैन ने कहा, ‘कर्ज में अप्रत्याशित बढ़ोतरी से मुनाफा कम होने के कारण वित्तीय जोखिम खासे बढ़ गए हैं।’ उन्होंने कहा कि अग्रणी ई-कॉमर्स कंपनियों का अपने आपूर्तिकर्ताओं को कार्यशील पूंजी कर्ज उपलब्ध कराने के लिए बैंकों और एनबीएफसी समझौता करना भी खासा दिलचस्प है। इनमें से ज्यादातर कंपनियां सूक्ष्म और छोटे उपक्रम हैं।

कर्ज की लागत में आई कमी
असंगठित कारोबार के लिए जीएसटी को बड़ा झटका मानते हुए उन्होंने कहा, ‘डिजिटल मौजूदगी में सुधार के चलते एमएसएमई अब बैंकों, एनबीएफसी और एमएफआई के लिए आकर्षक ग्राहक बन गए हैं। इससे वित्त के अनौपचारिक स्रोतों पर उनकी निर्भरता भी कम हो गई है।’ उन्होंने कहा कि एमएसएमई के लिए कर्ज की लागत में भी खासी कमी आएगी, क्योंकि उधारी गिरवी पर आधारित होने के बजाय, नकदी प्रवाह पर आधारित होती जाएगी।

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