राजनीति

यूपी चुनाव 2017: तो अमर सिंह सपा से बाहर, शिवपाल से छिन गया सियासी रुतबा

इस फैसले के विरोध में मुलायम सिंह यादव चुनाव आयोग पहुंचे और अधिवेशन को अवैध व फर्जी ठहराया। मगर 16 जनवरी की शाम चुनाव आयोग ने पक्ष, विपक्ष की दलीलों का हवाला देते हुए समाजवादी पार्टी के चुनाव निशान साइकिल व पार्टी पर अखिलेश यादव को अधिकार दे दिया यानी अधिवेशन के निर्णय सही थे। ऐसे में अधिवेशन में पास प्रस्ताव के मुताबिक अमर सिंह सपा से बाहर हो गए। शिवपाल का प्रदेश अध्यक्ष पद चला गया, मंत्री पद पहले ही छीना जा चुका था।

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…शिवपाल ने सब खोया !

समाजवादी पार्टी के इस संग्र्राम में मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव ने रुतबा, पद, अधिकार सब कुछ खो दिया। पहली बार जब उन्हें मुलायम ने सितंबर 2016 में प्रदेश अध्यक्ष बनाया तब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनके लोक निर्माण, सिंचाई जैसी तीन महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए। मुलायम के दखल से जैसे-तैसे कुछ विभाग वापस हुए। मगर जब रार और बढ़ी तो मुख्यमंत्री ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। तमाम कार्यकर्ता जो सुबह-शाम उनके पक्ष में नारेबाजी करते थे, वह विरोध में सड़क पर उतार आए। कुछ अरसे की खामोशी के बाद ऐसा प्रतीत हुआ कि मुलायम सिंह यादव ने सब कुछ नियंत्रित कर लिया है, मगर आग पर सिर्फ राख पड़ी थी। 28 दिसंबर को प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद कलह फिर सड़क पर आई और एक जनवरी के विशेष अधिवेशन में शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया। उनके स्थान पर एमएलसी नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। इसके बाद भी मुलायम ने हार नहीं मानी और चुनाव आयोग गए। 16 जनवरी को अखिलेश के पक्ष में आयोग के निर्णय के साथ उनका रहा-सहा रुतबा भी चला गया। अब वह क्या कदम उठाएंगे? इस पर सबकी नजर है। उनकी करीबियों का कहना है कि शिवपाल अब भी वही करेंगे जो मुलायम सिंह यादव कहेंगे। उनका निर्णय ही अंतिम होगा।

राम गोपाल, नरेश, किरनमय का कद बढ़ा

अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद मिलने के बाद सपा के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव द्वारा प्रो.राम गोपाल यादव, किरनमय नंदा और नरेश अग्र्रवाल का निष्कासन भी स्वत: रद हो गया। दरअसल, इन तीनों सांसदों को राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद मुलायम ने पार्टी से निकाल दिया था। कहा जा रहा है कि सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अब इन तीनों नेताओं की नए सिरे भूमिका तय कर सकते हैं।

मुलायम पर टिकी निगाहें

अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मान्यता मिलने और उनकी मुलायम सिंह से मुलाकात के बाद अब निगाहें मुलायम के कदम पर होंगी। पिता-पुत्र के बीच क्या बात हुई? इसका खुलासा तो नहीं हुआ मगर माना जा रहा है कि मुलायम ने उन्हें आशीर्वाद दिया है। बावजूद सियासी विश्लेषकों का कहना है कि जब तक मुलायम सिंह की ओर से कोई टिप्पणी न आए तब तक रहस्य बना रहेगा। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का कहना है कि यह सब पिता-पुत्र व विदेशी रणनीतिकारों की स्क्रिप्ट का हिस्सा है। मुलायम पुत्र के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाने जा रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो मुलायम के पास मोटे-मोटे तीन विकल्प हैं। पहली तो यह कि बेटे अखिलेश को अध्यक्ष मानते हुए खुद के लिए चुने गए संरक्षक के पद स्वीकार लें। दूसरे यह कि वह चुनाव आयोग के इस फैसले को अदालत में चुनौती दें, जैसा कि सुबह उन्होंने यह कहकर संकेत भी दिया था कि मामला अदालत तक जाएगा। तीसरा यह कि वह लोकदल की ओर से मिल रहे निमंत्रण को स्वीकार कर उनके सिंबल पर अपने प्रत्याशी उतारें और उनका प्रचार करें। मुलायम की राजनीति को समझने वालों का कहना है कि मुलायम इस मामले मे कम से कम अदालत जाने से गुरेज करेंगे। पार्टी, कार्यकर्ता, सरकार का पहले ही अखिलेश के पक्ष में हस्तांतरण हो चुका है, ऐसे में वह इससे इतर भी कोई फैसला ले सकते हैं।

अमर को ऐसे निर्णय का अंदेशा था?

चुनाव आयोग का फैसला आने से पहले ही राज्यसभा सदस्य अमर सिंह इंग्लैड चले गए। कहा जा रहा है कि वह इलाज के लिए गए हैं। लेकिन एक तबका यह भी कह रहा है कि उन्हें अखिलेश के पक्ष में फैसला आने का अंदेशा हो गया था, लिहाजा वह विदेश चले गए।

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