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रोटोमैक के बाद अब इस कंपनी पर लगा 4000 करोड़ रुपये न चुकाने का आरोप

उत्तर प्रदेश के कानपुर में रोटोमैक ग्लोबल के बाद अब एक और कंपनी लक्ष्मी कॉटसिन लिमिटेड पर बैंकों का करीब 4000 करोड़ रुपये का लोन न चुकाने का आरोप लगा है। डिफेंस प्रॉडक्शन के बाद कंपनी 13 साल पहले कपड़ा बनाने के काम में उतरी थी। वॉलमार्ट समेत दुनिया की कई नामी कंपनियों को यह कंपनी अपने उत्पाद सप्लाई करती है।रोटोमैक के बाद अब इस कंपनी पर लगा 4000 करोड़ रुपये न चुकाने का आरोप

वहीं, कंपनी के एमडी डॉ. एमपी अग्रवाल का कहना है कि मीडिया में मनगढ़ंत खबरें चलाई जा रही हैं। कंपनी ने जिन फैक्ट्रियों के लिए लोन लिया था, वहां उत्पादन  चल रहा है। 

25 साल पुराना इतिहास 

साल 1993 में कानपुर में लक्ष्मी कॉटसिन लिमिटेड की नींव डाली गई। शुरुआत में कंपनी बुलेटप्रूफ जैकेट्स +के अलावा कई प्रतिरक्षा उत्पाद बनाती थी। 2005-06 में कंपनी डेनिम कपड़े के उत्पादन में उतरी। इसके लिए बैंकों से करीब 85 करोड़ रुपये का लोन लिया गया। काम सफल रहा तो रुड़की और हरियाणा में भी यूनिटें लगाई गईं। 2006 में कंपनी ने अपनी उत्पादन क्षमता दोगुनी कर दी। 2010 में टेक्निकल टेक्सटाइल के उत्पादन के लिए कंपनी ने सेंट्रल बैंक से 693 करोड़ रुपये, इक्विटी बाजार से 200 करोड़ और अपनी तरफ से 100 करोड़ रुपये के निवेश का खाका तैयार किया। 

वॉलमार्ट को करते हैं सप्लाई 
लक्ष्मी कॉटसिन में बना स्पेशल तौलिया वॉलमार्ट  को खासतौर पर सप्लाई किया जाता है। दुनिया की कई और दिग्गज कंपनियों को लक्ष्मी कॉटसिन से उत्पादों की सप्लाई होती है। कंपनी ने एक समय फायरप्रूफ कपड़े का मार्केट में बड़े पैमाने पर विज्ञापन किया था। 

कंपनी में यहां से बढ़ीं मुश्किलें 

बकौल एमपी अग्रवाल, सेंट्रल बैंक ने लोन के अलावा पूंजी बाजार की जिम्मेदारी ली। लेकिन पूंजी बाजार से रकम न मिलने के कारण आधा प्रतिशत ब्याज पर 175 करोड़ का लोन दिया। 8-10 महीने देर से उत्पादन शुरू हुआ, लेकिन पूंजी की कमी ने हालात मुश्किल कर दिए। बैंकों से मिले फंड का इस्तेमाल ब्याज  चुकाने में हुआ। 

इस बीच तकनीकी उन्नयन के लिए सरकार से मिलने वाली सब्सिडी न आने से कंपनी संकट में आ गई। 2012 में लोन रीस्ट्रक्चर किया गया। जून-2013 में पैकेज की स्वीकृति हुई। सेंट्रल बैंक फाइनैंशल सर्विसेज लिमिटेड ने 164 करोड़ रुपये की जरूरत बताई, लेकिन काफी कोशिशों के बावजूद लोन नहीं मिला। जून-2014 तक कंपनी ने ब्याज चुकाया है। जून-2015 में सारे बैंक खाते एनपीए हो गए। कर्ज का मूलधन 2675 करोड़ रुपये है। ब्याज मिलाकर यह रकम 4400-4500 करोड़ रुपये के आसपास होगी। 

कंपनी चलाने के लिए 200 करोड़ रुपये का लोन मांगा गया, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। बीआईएफआर के बाद बैंकों ने 2015 में ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी) में 3960 करोड़ रुपये का केस दायर किया है। बैंकों के समूह का हिस्सा न होने के बावजूद एक महीने पहले आईएफसीआई  ने एनसीएलटी में केस भेजा, लेकिन इसे स्वीकृति नहीं मिली है। 

कंपनी का दावा, फैक्ट्रियां चल रहीं 
एमपी अग्रवाल अग्रवाल के अनुसार, बैंकों ने कंपनी को विलफुल डिफॉल्टर नहीं माना है। जिन फैक्ट्रियों के लिए लोन लिया गया, वहां उत्पादन हो रहा है। पिछले साल कंपनी ने 300 करोड़ रुपये का टर्नओवर किया था। कुछ निवेशकों से बात जारी है। पूंजी आ गई तो लोन चुकाने के साथ वापस काम रफ्तार पकड़ेगा। कंपनी ने लोन का पैसा इधर-उधर नहीं लगाया है। बैंकों ने कंपनी की दो फैक्ट्रियां बेची भी हैं। नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में अब तक कोई केस नहीं गया है, क्योंकि बैंक को कंपनी के रिवाइवल की उम्मीद है। 

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